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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू०१३ सर्वाभ्यन्तरमण्डलायामादिनिरूपणम् १७७ मुपसंक्रम्य-संप्राप्य 'चारं चरइ' चारं गतिं चरति करोति ॥ यथा पूर्वानुपूर्वीव्याख्याना भवति तथा पश्चानुपूर्व्यपि व्याख्यानाङ्ग भवतीति पश्चानुपूर्व्या पृच्छन्नाह-'सच्चबाहिरएणं' इत्यादि, 'सव्वबाहिरएणं भंते ! चंदमंडले' सर्वबाह्यं खलु भदन्त ! चन्द्रमण्डम् 'केवइयं आयामविक्खंमेणं' कियदायामविष्कम्भाभ्याम् 'केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते कियता-कियत्प्रमाणकेन परिक्षेपेण प्रज्ञप्तं कथितमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगं जोयणसयसहस्सं' एक योजनशतसहस्र लक्षैकयोजनमित्यर्थः 'उच्च सट्टे जोयणसए' षट्पष्टानि योजनशतानि षष्ट्यधिकानि षड्योजनशतानीत्यर्थः 'आयाम विक्खंभेणं' आयामविष्कम्भाभ्यां दैर्घ्य विस्ताराभ्यां सर्वबाह्यं चन्द्रमण्डल प्रज्ञप्तम् , एक योजन लक्षं पष्टयधिकानि षड योजनशतानि १००६६० एतावत्प्रमाणकाभ्यायामविष्कम्भाभ्यामित्यर्थः। तत्रोपपत्तिस्तु जम्बूद्वीपो लक्षप्रमाणकः उभयोःप्रत्येकं त्रीणि योजनशतानि वृद्धि करता हुआ सर्व बाह्य मंडल पर पहुंच कर अपनी गति करता है-यही बात 'दो दो तीसाइं जोयणयाई परिरयवुड़ि अभिवढेमाणे २ सच्ववाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरई' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। अब गौतमस्वामी पूर्वानुपूर्वी के अनुसार चन्द्रमंडल के आयामादिसम्बन्ध में पूछकर और उसका उत्तर प्राप्त कर पश्चानुपूर्वी के अनुसार इसी सम्बन्ध में प्रभु से पूछते हैं-'सव्व. बाहिरएणं भंते! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते' हे भदन्त । पश्चानुपूर्वी के अनुसार सर्व बाहय चन्द्र मण्डल का आयाम और विष्कम्भ कितना है और परक्षेप कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! एग जोयणसयसहस्सं छच्च सहे जोयणसए आयामविक्खंभेणं हे गौतम ! सर्वबाहय चन्द्रमंडल का आयाम और विष्कम्भ १ लाख ६ सौ साठ योजन का है इसे यों समझना चाहिये जम्बूद्वीप का विस्तार १ लाख योजन का है तथा प्रत्येक पार्श्व भाग ३३० योजन का है दोनों का जोड १ लाख કરતે સર્વબાહ્ય મંડળ ઉપર પહોંચીને પિતાની ગતિ આગળ ધપાવે છે. એજ વાત 'दो दो तीसाई जोयणसयाई परिरयवुदि अभिबद्धेमाणे २ सव्वबाहिर मंडलं उबसंकमित्ता चार चरई' ॥ सूत्र द्वारा ४८ ४२वामा मापी छे. १३ गौतमस्वामी पान. પૂવ મુજબ ચન્દ્રમંડળના આયામાદિ વિશે પ્રશ્ન કરીને અને તે સંદર્ભમાં ઉત્તર મેળવીને ५श्वानुता भुम मा समयमा प्रभुने पूछे छे–'सव्वबाहिरएणं भंते ! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं केवइयं परिवखेवेणं पण्णत्ते' हे महत! पश्चानुका भुराम समाहर ચન્દ્રમંડળને આયામ અને વિષ્કસ કેટલું છે અને પરિક્ષેપ કેટલો છે? એના જવાબમાં प्रभु छ-'गोयम! ! एगं जोयणसयसहस्स छच्च सटे जोयणसए आयामविक्खंभेणं હે ગૌતમ ! સર્વબાહ્ય ચન્દ્રમંડળના આયામ વિષ્ક ૧ લાખ ૬ સે ૬૦ એજન જેટલો છે. આને એવી રીતે સમજવું જોઈએ કે જંબુદ્વીપને વિસ્તાર એક લાખ જન એટલે ज० २३ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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