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________________ ४५६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे (इकारसमाए) एकादशभागान् (जोयणस्त) योजनस्य (अंतो) अन्त:-अभ्यन्तरवर्ती (गिरिपरिरए) पिरिपरिरयः-मेरुपर्वतपरिधिः (ण) खलु अस्तीति शेषः, अथात्र पद्मवरवेदिकादिकमाह-से णं एगाए) इत्यादि तद् नन्दनवनं खलु एकया (पउमवरवेइयाए) पावरवेदिकया (एगेण य) एकेन च (वणसंडेणं) वनषण्डेन (सव्वओ) सर्वतः सर्वदिक्षु (समंता) समन्तात्सर्वविदिक्षु (संपरिक्खि ते) सम्परिक्षिप्तं-परिवेष्टितं विद्यत इति शेषः, तयोः पद्मवर वेदिकावनषण्डयोः (वण्णओ) वर्णकः-वर्णनपरपदसमूहोऽत्र बोध्यः, स च चतुर्थपञ्चमसूत्रतो ग्राह्यः, सच किम्पर्यन्तो ग्राह्य इति जिज्ञासायामाह-'जाव देवा आसयंति' यावदेवा आसते 'देवा आसते' इति पदपर्यन्तो वर्णको ग्राह्यः, अत्र यावत्पदसङ्ग्राह्यपदसङ्गहः पञ्चमसूत्रात्कर्तव्यः, तत्र-'देवा' इत्युपलक्षणं, तेन 'सयंति, चिट्ठति' इत्यादिनां ग्रहणम्, एवं पदानां व्याख्या पञ्चमसूत्रव्याख्यातोऽवसे या, अथात्र सिद्धायतनानि वर्णयितुमुपक्रमते-'मंदरस्स णं पव्वयस्स' इत्यादि-मन्दरस्य मेरोः खलु पर्वतस्य 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्येन-पूर्वदिशि 'एत्य' अत्रतिणि य सोलसुतरे जोयणसए अट्टय इक्कारसभाए जोयणस्स अंतोगिरि परिरयेणं) तथा इस गिरिका भीतरी परिक्षेप २८३१६ योजन का और एक योजन के ११ भागों मे से आठ भाग प्रमाण है। (से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते) वह नन्दन वन एक पद्मवर वेदिका से और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है (वण्णओ जाव देवा आस यंति) इस पद्मवर वेदिका और वनषण्ड का वर्णक यहां पर कहलेना चाहिये इसे जानने के लिये चतुर्थ और पंचम सूत्र देखिये यहां पर यह वर्णन 'आसयंति' पद कहा गया है यहां यावत्पद से जो पद संगृहीत हुए हैं वे पंचम सूत्र से जाने जा सकते हैं । "आसयंति" यह पद उपलक्षण रूप है इससे “सयंति चिटुंति" सहस्साई तिष्णिय सोलसुत्तरे जोयणसए अट्टय इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरि परिर येणं' तभक २रिना महरन परिक्ष५ २८3१६ यो सामने से योजना ११ लागीमांधी 218 माग प्रमाण छ. 'से णं एगाए पउमवरवेइयाए ऐगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खि ते' मा नन्हन बन ४ ५१२ वी मने से वनम थी थामेर मात छ. 'वण्णओ जाव देवा आसयंति' २॥ ५१२ व मन वनमा १४ વિષે અહીં અધ્યાહત કરી લેવું જોઈએ. એ સબંધમાં જાણવા માટે ચતુર્થ અને પંચમ सूत्रमा ज्ञासुमो ने गो. मी २ प न 'आसयंति' ५४थी सद्ध छे. ही યાવત પદથી જે પદે સંગૃહીત થયા છે તે અહીં પંચમ સૂત્રમાંથી જાણી શકાય તેમ છે. 'आसयंति' मा ५६ ५सक्ष ३५ छ. अनाथी सयंति चिटुंति वगेरे यापहोनु ३५ थय छ.स. पहानी व्याच्या ५यम सूत्रमा ४२वामा मावी छ. 'मंदरस्स णं पव्ययस्स पुरथि मेणं एत्थणं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते' मा ४२ ५वती पूर्व शाम से विm सिद्धायतन सा छे. 'एवं चउदिसि च तारि सिद्धाययणा विदिसासु पुक्खरिणीओ तं चेव पमाणं જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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