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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० ३७ नन्दनवनस्वरूपवर्णनम् ४५७ अत्रान्तरे 'ण' खलु 'महं एर्ग' महदेकं सिद्धाययणे' सिद्धायतनं 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तं एवं एवम्-अनन्तरसूत्रोक्तभद्रशालवनानुसारेण 'चउद्दिमि' चतुर्दिशि पूर्वादिदिक्चतुष्टये प्रतिदिगे. कैकमिति 'चतारि' चत्वारि 'सिद्धाययणा' सिद्धायतनानि प्रज्ञप्तानि, तथा 'विदिसामु' विदिक्षु ईशानादिकोणेसु 'पुक्खरिणीओ' पुष्करिण्यः प्रज्ञप्ता: आसाम् 'तंचेव' तदेव भद्रशालवनोक्तमेव 'पमाणं' प्रमाणं-विष्कम्भादिमानम् 'सिद्धाययणाणं' सिद्धायतनानाम् 'पुक्खरिणीणं च' पुष्कारिणीनां च बहुमध्यदेशभागवर्तिनः 'पासायवडिंसगा' प्रासादावतंसका; 'तहचेव' तयैव भद्रशालवनवर्तिनन्दापुष्करिणीगतप्रासादावतंसकवदेव 'सकेसाणाण' शक्रेशानयोः-शके. न्द्रसम्बन्विन ईशानेन्द्रसम्बन्धिनश्च भणितव्याः, अयमाशयः यथा भद्रशालवने शकेन्द्रसम्बन्धिन आग्नेय नैर्ऋत्यकोणवर्तिनः प्रासादावतंसकाः उकाः तथेशानेन्द्रसम्बन्धिनो वायव्येशान. आदि क्रिया पदों ग्रहण हुआ है । इन पदों की व्याख्या पंचम सूत्र में की गई है। (मंदरस्स णं पञ्चयस्स पुरथिमेणं एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्ण ते) इस मन्दर पर्वत की पूर्वदिशा में एक विशाल सिद्धायतन कहा गया है (एवं चउदिसिंच तारि सिंद्धाययणा विदिसासु पुक्खरिणीओ तंचेव पमाणं) मेरु पर्वत की पूर्वदिशा में भी एक एक सिद्धायतन कहा गया है इस तरह कुल सिद्धायतन पूर्वादि दिशाओं में से एक दिशा में एक एक के होने से ४ प्रतिपादित हुए हैं। (विदिसासु पुक्खरिणीओ तंचेव पमाणं) तथा इस कथन के अनुसार विदिशाओं में ईशान आदि कोनों में पुष्करिणियाँ प्रतिपादित हुई है। इन पुष्करिणियों के विष्कंभादि के प्रमाण भद्रशाल वन की पुष्परिणियों के विष्कंभादि के प्रमाण जैसा ही कहा गया है तथा (सिद्धाययणाणं) सिद्धायतनों का विष्कंभादि प्रमाण भी भद्रशाल के प्रकरण में कथित सिद्धायतन के प्रमाण जैसा ही कहा गया है। (पुक्खरिणीणं च पासायवडेंसगा तह चेव) पुष्करिणि. यों के बहुमध्यदेशवर्तिप्रासादावतंसक भद्रशालवनवर्ती नन्दा पुष्करिणिगत प्रासादावतंक के जैसे ही हैं। (तहचेव सक्केसाणाणं तेणं चेव पमाणेणं) મેરુ પર્વતની પૂર્વ દિશામાં જેવું સિદ્ધાયતન કહેવામાં આવેલ છે. આ પ્રમાણે પૂર્વ વગેરે सारेया हिशामेमा - सिद्धायतन छ तेथी इस यार सिद्धायतन। थयां 'विदिसासु पुखिरिणीओ तं चेव पमाणे' तम४ २४यन भु४५ पिहिशमांश २ मा पुष्४. રિણીઓ પ્રતિપાદિત થઈ છે. એ પુષ્કરિણીઓના વિષ્કભાદિના પ્રમાણ ભદ્રશાલવનની પુષ્ક (२) योन विमानाप्रमाणे छतमा 'सिद्धाययणाण' सिदायतनाना fel प्रभा ५९ सद्रशासना ४२मा प्रथित सिद्वायतनाना प्रभावत् छ.'पुक्खरिणी णं च पासाय वडे सगा तहचेव' पुरिणीमाना मामध्य देशपति प्रासादायत सी ५६ मद्रशासनवती नन्। Y४२त प्रासाविस ४ छ. 'तहचेव सक्केसाणाणं तेणं चेव पमाणेणे' એ પ્રાસાદાવતં કે શક અને ઈશાનના છે એટલે કે જેમ ભદ્રશાલ વનમાં આનેય અને જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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