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________________ प्रकाशिका टीका तृ०३वक्षस्कारः सू० २६ भरतराज्ञः दिग्यात्रावर्णनम् ८३५ राया णट्टमालगस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सदावेइ सदावित्ता जाव सिंधुगमो णेयव्वो जाव गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेइ ओअवित्ता अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ पडिच्छित्ता जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता दोच्चंपि सखंधावाखले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयसंधोवारनिवेसे जेणेव बाहिरिया उव्वट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरहइ पच्चोरुहिता अग्गाइं वराई स्यणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव अंजलिं कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावित्ता, अग्गाइं वराई श्यणाई उवणेइ । तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाई वराई रय गाइं पडिच्छई पडिच्छित्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारित्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो सेसंपि तहेव जाव विहरइ, तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सदावेई सदावित्ता एवं वयासी गच्छण्णं भो देवाणुप्पिया ! खंडगप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहांडेइ विहाडित्ता जहा तिमिसगुहाए तहा भाणियव्वं जाव पियं मे भवउ, सेसं तहेव जाव भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ, ससिव्व मेहंधयारनिवहं तहेव पविसंतो मंडलाइं आलिहइ, तीसेणं खड्गप्पवायगुहाए बहुमज्झदेसभाए जाव उम्मग्गणिमग्गजलाओ णामं दुवे महाणईओ तहेव नवरं पच्चस्थिमिल्लाओ कडगाओ पबूढाओ समाणीओ पुरथिमेणं गंगं महाणई समप्पेंति सेसं तहेव णवरि पच्चथिमिल्लेण कूलेणं गंगाए संकमवत्तव्यया तहेव त्ति, तएणं खडगप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया महया कांचाखं करेमाणा करेमाणा सरसर स्सगाई ठाणाई पच्चोसक्कि જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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