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________________ ७७६ ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सर्वलक्षणोपेतत्वात् विशिष्टलष्टः मनोहरः यद्वा विशिष्टः अति भारतया एकदण्डेन दुर्बहत्वात् प्रतिदण्डसहितः ईदृशच्चयो लष्टः काञ्चनमयः सुपुष्टोऽतिभारसहस्रत्वात् दण्डो यत्र तत्, तथा, तथा 'मिउरायय वट्ट लट्ठ अरविंदकणियसमाणरूवं' मृदुराजत वृत्तलष्टारविन्दकर्णिका समानरूपम्, तत्र मृदु कोमलं घृष्टमृष्टत्वात् राजतं रजतसम्बन्धि वृत्तलष्ट यदरविन्द तस्य कर्णिका बीजकोशस्तेन समानं श्वेतत्वावन्तत्वाच्च रूपम् आकारो यस्य ततया, तथा 'वस्थिपए से पंजरविराइयं' वस्तिप्रदेशे पजरविराजितम् वस्तिप्रदेशो नाम छत्रमध्यभागवर्ती दण्ड प्रक्षेपस्थानरूपः तत्र पञ्जरेण पनराकारेण विराजितम् चः समुच्चये तथा 'विविहभत्तिचित्तं' विविधभक्तिचित्रम्, तत्र विविधाभिः भक्तिभिः विच्छित्तिभीरचना प्रकारैश्चित्रं चित्रकर्म यत्र तत् तथा पुनश्च कीदृशम् 'मणिमुत्तपवालतत्ततवणिज्ज पंचवणियधोयरयणरूवरइयं' मणिमुकामवालतप्ततपनीय पञ्चवर्णिकधौतरत्नरूपरचितम्, तत्र मणयः चन्द्रकान्तादयः मुक्ताप्रवाले प्रसिद्ध तप्तं मूवोत्तीर्ण यत्तपनीयं रक्तसुवर्ण पञ्चवर्णिकानि शुक्लनीलादिपञ्चवर्णयुक्तानि धौतानि शाणोत्तारेण दीप्तिमंति जाने के कारण एक दण्ड के द्वारा धारण योग्य नहीं हो सकता है इसलिये एक एक दण्डेवाला होने से यह विशिष्ट लष्ट था । इसमें जो दण्ड लगे हुए थे वे अति भार सहनेवाले होने के कारण अति सुपुष्ट थे और सुवर्णनिर्मित थे. ( मिउराययवट्ट लट्ठ अरविंदकण्णिअसमाणरूवं ) यह छत्र ऊँचा और गोल था-इसलिये इसका आकार चांदी के बने हुए मृद गोल कमल की कणिका के जैसा था ( वत्थिपएसे अ पंजरविराइयं ) यह बस्ति प्रदेश में जिसमें दण्ड पोया हुआ रहता है उस बस्ति प्रदेश में अनेक शलाकाओं से युक्त हो जाने के कारण पंजर के जैसा-पीजरे के जैसा-प्रतीत होता था. ( विविह भत्तिचित्त ) इस छत्र में अनेक प्रकार के चित्रों की रचना हो हो रही थी उससे यह बड़ा सुहावना लगता था. (मणिमुत्तपवालतत्ततवाणिज्जपंचवणियघोयरयणरूवरइयं ) इसमें पूर्णकलशादिरूपमङ्गल्य वस्तुओं के जो कार बने हुए थे वे चन्द्रद्रकान्त आदि मणियों से, मुक्ताओं से, प्रवालो લક્ષણોથી યુક્ત હોવા બદલ એ સુપ્રાસ્ત હતું. વિશિષ્ટ લષ્ટ મનહર હતું અથવા આટલું વિશાલ છત્ર દુર્વહ થઈ જવાથી એક દંડ દ્વારા ધારણ યોગ્ય ન હોતું. એથી એ અનેક દંડવાળું હોવાથી એ વિશિષ્ટ લષ્ટ હતું. એમાં જે ઠંડો હતા તે અતિભારને ખમી શકતા होयाथी मति सुपुट हता. मन सुवर (नभित ता. (मिउराययवट्ट लट्ठ अरविंदण्णि असमाणरूवं) से छ नत अने जो तु. मेथी मेनी मा२ यांहीथी निर्मित भृगौण भजनी २३ तो. (वस्थिपएसे अ पंजरविराइअ) से पास्तप्रदेशमा પરવવામાં આવે છે. તે વસ્તિ પ્રદેશમાં અનેક શલાકાથી યુક્ત હોવાથી પાંજરા જેવું सागत (विविहभत्तिचित्त) ये छत्रमा भने प्राना यिनी श्यना ४२वामा भावी इती. मेथी से मतीय सेडाभातु . (मणिमुत्तपवाल तत्त तवणिज्जपंचवपिणयधोयरयणरूवरइय) मेमा ५७ शाह ३५ भगण पस्तुयाना रे मारे। अनेसा છે તે ચન્દ્રકાંત વગેરે મણિઓથી મુક્તાએથી, પ્રવાલેથી તપ્ત સંચામાંથી બહાર કાઢેલા જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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