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________________ ६२६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे निर्विष्टं लब्धमिति कि करवाणीत्यादि तु प्राग्योजितमेव । 'सो देव कम्मविहिणा खंधावारणरिंदवयणेणं । आवसहभवणकलियं करेइ सव्वं मुहुत्तेणं ॥२॥ तद् वर्द्धकिरत्नम् देवकर्मविधिना देवकृत्यप्रकारेण चिन्तितमात्रकार्यकरण रूपेणेत्यर्थः स्कन्धावारं नरेन्द्रवचनेन आवासा राज्ञां गृहान् भवनानीतरेषां तैः कलितं करोति सर्व मुहूर्तन निविलम्बमित्यर्थः 'करेत्ता' कृत्वा 'पवरपोसहघरं करेइ' प्रवरपौषधगृहं करोति-श्रेष्ठ पौषधशालां निर्माति ‘करित्ता' कृत्वा 'जेणेव भरहे राया जाव एतमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ' यत्रैव भरतो राजा यावत्पदात् तत्रैवोपागच्छति एतां राज्ञां पूर्वोक्ताम् आज्ञप्तिकाम् आज्ञा क्षिप्रमेव शीघ्रमेव राज्ञे प्रत्यर्पयन्ति समर्पयन्ति 'सेसं तहेव जाव मज्जनघराओ पडिणि क्खमइ' शेषं तथैव पूर्ववदेव यावत् पदात् स राजा स्नानाथ मज्जनगृह प्रविष्टवान् स्नपितः सन् यथा धवलमहामेघानिर्गतश्चन्द्र इव सुधाधवली कृतमज्जनगृहात् प्रतिनिष्काके अनुसार अनेक गुणों से युक्त ऐसा वह भरत चक्री का स्थपितरत्न-वर्द्धकिरत्न कि जिसे भरत चक्री ने तप एवं संयम से प्राप्त किया है कहने लगा-कहिये मैं क्या करूं-(सो देवकम्मविहिणाखंधावारणरिंदवयणेणं-आवसहभवनकलियं करेइ सव्वं मुहेत्तणं) इस प्रकार कहकर वह राजा के पास आगया और उसने चिन्तित मात्र कार्य करने की अपनी शक्ति के अनुसार नरेन्द्र के लिए प्रासाद और दूसरों के लिए भवनों को एक मुहूर्त में तयार कर दिया (करेत्ता पवर पोसहघरं करेइ) यह सब काम एक ही मुहूर्त में निष्पन्न करके फिर उसने एक सुन्दर पौषधशाला तैयार करदी-(करित्ता जेणेव भरहे राया जाव एयमाणत्तियं विप्पामेव पच्चप्पिणइ) यथोचित रूप से पौषधशाला निष्पन्न करके फिर वह जहाँ पर भरतचक्री थे वहां गया और राजा को पूर्वोक्त आज्ञाको पूर्ति को खवर शीघ्र ही उन्हे कर दी. (सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) इसके बाद का शेष कथन पूर्वोक्त रूप से ही है यावत् वह स्नानगृह से बाहिर निकला यहाँ तक का यहों यावत्पदसे " स राजा स्नानाथ मज्जनगृहं प्रविष्टवान् स्नापितः सन् यथा धवलमहामेघान्निर्गतश्चन्द्र इव सुधा धवलीकृत मज्जनगृहात् प्रतिनिष्क्रामति" इस पाठ का ભરતચીએ તપ તેમજ સંયમથી પ્રાપ્ત કરેલ તે છે–તેવકીરત્ન કહેવા લાગ્ય–બેલે હું શું ४२ ? (लो देवकम्पविहिणा खंधावारणरिंदवयणेण-आवसहभवणकलियं करेइ सव्वं मुहुत्तेणे) ॥ प्रमाणे ४०२ ते २0 पासे आप गयो, मने तो पोती (यतितमात्र કાર્ય કરવાની દૈવી શક્તિ મુજબ નરેન્દ્ર માટે પ્રાસાદ અને બીજાઓ માટે ભવનો એક भूइत्तमा निमित शहा (करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ) ये मधु आम ४०४ भूह तभा नि०५-न रीने ५छी तेथे ४ सु४२ पौषधशा तैया२ ४२दीधी. (करित्ता जेणेव भरहे राया जाव एयमाणत्तिय खिप्पामेव पच्चप्पिणइ) यथायित ३५मा पौषध नियन કરીને પછી તે જ્યાં ભરતકી હતાં ત્યાં ગયા અને રાજાની પૂર્વોક્ત આજ્ઞા પૂરી કરી છે, मेवी शनने सूचना माथी. (सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) मेन छीनु थन પૂર્વોક્ત રૂપમાં જ છે. યાવત્ સ્નાનગૃહમાંથી બહાર નીકળે, અહીં સુધીને અટો યાવત્ पहथा "स राजा स्नानाथै मज्जनगृहं प्रविष्टवान् स्नपितः सन् यथा धवलमहामेधान्निग જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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