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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे होरं भकिणित खरमुहिमुगुदसंखिप पिरलीवच्चगपरिवाइणि वंसवेणुविपंचि महति कच्छविभिरियारिगसिरिंगतलतालकंसताल करघाणुत्थिएण' यमकसमकभम्भाहोरम्भाक्वणिता स्वरमुखो सुकुन्दशखिका पिरलीवच्चकपरिवादिनी वंशवेणुविपश्ची महती कच्छपी भारती रिगसिरिकातलतालकांस्यतालकरध्मनोत्थितेन, तत्र 'जमगसमगे' ति-युगयद्वाद्यमानेभ्यः भम्भा-ढक्का, होरम्भा-महाढक्का, क्वणिता-काचिद् बीणा खरमुखोकाहलीति प्रसिद्धाः, मुकुन्दो मुरजविशेषः, शखिका-लघुशङ्खरूपा पिरलीवच्चको-तृणरूपवाद्यविशेषौ, परिवादिनो सप्ततन्त्रीवोणा वंशः-प्रसिद्धः, वेणुवंश विशेषः, विपञ्ची तितन्त्री वीणा महतीसप्ततन्त्रीका कच्छपी-कच्छपाकारो वाद्यविशेषः, भारतीवीणा, रिगसिरिका-घयमाणवादित्रविशेषः, तलं-हस्तपुटं तालाः वाद्यविशेषः, कांस्पतालाः-प्रसिद्धाः, करध्मानं -परस्परं हस्तताडनम् एतेभ्यो वादितवाद्यविशेषेभ्य उस्थितेन निःसृतेन उत्पन्ने नेत्यर्थः 'महया सदसणिणादेणं' महता शब्दसन्तिनादेन तत्र महता विपुलेन शब्दसन्निनादेन ध्वनिप्रतिध्वन्यात्मकेन 'सयलमवि सईसजनों द्वारा घोडों को ताडनां के निमित्त प्रयुक्त किये गये कोड़ो का आबाज भर्स रही थी। तथा ( जमगसमग भंभा होरंभ किणित खरमुहि मुगुंदसंखियपिरली वच्चग परि वाइणि वंसवेणु विपंचि महतिकच्छ विभिरिया रिगसिरिगतलतालकंसतालकरधाणुस्थिएण) एक साथ वजाये गये भंभा-ढक्का, होरभ्भा-महाढक्का, कूणिता-वीणा, खर मुखी-काहलो, मुकुन्द - मुरज विशेष, शशिका-छोटी शंखी, पिरली, वच्चक(ये दोनों वाद्यविशेष घासके तृणों से बनाये जाते हैं) परिवादिनी-सप्ततन्त्री वीणा,वंश-वांसुरी, वेणु-विशेष प्रकार की वांसुरी, विपञ्चो-वीणा महती-कच्छपी-सात तारोंवाली कच्छपकेजैसे आकार की वीणा-तमूरा, भारती वीणा, रिगसिरिका घिसने पर जो वजता है ऐसा वाद्यविशेष, तल हथेली को आवाज, जिसे ताल कहा जाता है कांस्यताल एवं करध्मान-आपस में हाथों का ताडन इन सबके उम्पन्न हुए (महया सद्द सन्निनादेन) विपुल शब्दों की ध्वनि एवं प्रतिध्वनि होतोजारहो थो इस से (सयलमवि जीवलोयं હતો. સાઈ સે વડે ઘડાઓની તાડના–નિમિત્ત જે કોડાએ ફટકારી રહ્યા હતા તેનો અવાજ थ इते तमr (जमग-समग भंभा होरंभ किणित खरमुहि मुगुद संखियपिरलीवच्चग परिवाइणि वंसवेणुविपंचि महति कच्छविभिरियारिगसिरिग तलतालकंसतालकर धाणुन्थिएण) श्री साथे 43वामा मामा -6 २ मा - महादॐ1, इशिता-वी॥ परभुडी-सी, भुन्ह-४२२४ विशेष, श(५४-छोटी-शमी, विसी, पथ्य (मेयो सन्न વાદ્ય-વિશેષ ઘાસના તૃણેથી બનાવવામાં આવે છે.) પરિવાદિની–સતત~ી વીણા,-વંશ વાંસળી વેણુ-વિશેષ પ્રકારની-વાંસળી, વિપચી-વણ, મહતી-કુછવી–સાતતારોવાળી છપ જેવા આકારવાળી વીણા, તંબૂર, ભારતી વિણ, રિગસિરિકા-ઘસવાથી જે વાગે છે એ જાતનું વાઘવિશેષ, તલ-હથેળીને અવાજ કે જેને તાલ કહેવામાં આવે છે, કાંસ્યતાલ તેમજ કરभान-५२२५२ ३।। नुतन, ये सभी पत्र येसरी (महया सद्दसन्निनादेन) विधुस शहाने पनि भने प्रतिपान Ave २हो तो. मेथी (सयलमवि जीवलोयं पुरयते) જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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