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________________ ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे असोगपुण्णाग चूयमंजरीणवमालिअबकुलतिलगकणवीरकुंद कोज्जयकोरंटयपत्तदमणयवरसुरहिसुगंधगंधिअस्स) पाटलमल्लिकचम्पकाशोकपुन्नागाम्रमजरीनवमालिका बकुलतिलककणवीरकुन्दकुब्जककोरण्टकपत्रदमनकवरसुरभिसुगन्धगन्धितस्य इत्यादि षष्ठयन्तपदानां (पुष्पनिकरस्य) इत्यग्रेण सम्बन्धः, तत्र पाटलं-पाटलपुष्पम् मल्लिका-विचकिलपुष्पम् (वेली) इति भाषायां प्रसिद्धम्, चम्पकाशोकपुन्नागाः प्रसिद्धाः आम्रमञ्जरी बकुलः केसरः तिलको यः स्त्रीकटाक्षनिरीक्षितो विकसति तत्पुष्पम्, कणवीरकुन्दे प्रसिद्ध कुब्जकं कूब इति नाम्ना वृक्षविशेषस्तत्पुष्पम्, कोरण्टकं-तन्नामक पुष्पविशेषः पत्राणि मरुचक पत्रादीनि दमनकः स्पष्टः एतैर्वरसुरभि:-अत्यन्त सुरभिः तथा सुगन्धाः शोभनर्णास्तेषां गन्धो यत्र स तथा तस्य (कयग्गहगहियकरयलपब्भविप्पमुक्कस्स) कचग्रहग्रहीतकरतलप्रभ्रष्टविप्रमुक्तस्य युवत्याः पञ्चाङ्गुलिभिः केशेषु ग्रहणं कचग्रहः तन्न्यायेन गृहीतस्तथातदनन्तरं करतलाद्विप्रमुक्तः सन् प्रभ्रष्टः (पतितः) तस्य (दसद्धवण्णस्स) दशावर्णस्य पञ्चवर्णस्य (कुसुमणिगरस्स) कुसुमनिकरस्य पुष्पपुञ्जस्य (तत्थ चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकर करेत्ता) तत्र चित्रं जानत्सेधप्रमाणमात्रम् अवबकुलतिलग करणवीर कुंद कोज्जय कोरंटय पत्तदमणयवरसुरहि :सुगन्धगन्धिअस्स कयग्गहगहियकरयल पब्भविप्पमुक्कस्स दसवण्णस्स - पुप्फणिगरस्स) हर एक मंगल द्रव्य के चित्र के भितर बनाये गये प्रत्येक वर्ण पर उसने पाटल पुष्पों को गुलाब के फूलों को चढ़ाया। मल्लिका मोधरा - के पुष्पों को चढाया, चम्पक वृक्ष के पुष्पों को चढाया , अशोक वृक्ष के पुष्पों को चढाया, पुन्नाग वृक्ष के पुष्पो को चढाया, आम्र वृक्ष की मंजरी चढायी, नवमल्लिका, बकुल, तिलक, कणवीर-कनेर-कुन्द-कुन्जक, कोरंट, मरुबा, और दमनक इन सबके पुष्पों को चढाया । ये सब पुष्प अपनी सुगंधित गंध से महक रहे थे-अर्थात् ताजे थे-कुम्हलाये हए नहीं थे । जिस प्रकार सदय होकर युवा पुरुष अपनी तरुण भार्या के राति काल में बहुत धिमे से हाथ द्वारा केशग्रह कर लिया करता है और बाद में उसे छोड़ देता है । उसी प्रकार से चढाते समय भरत राजा ने उन पुष्पो को पांचो अंगुलियो से पकड़ कर के उन लिखित वर्णादि के ऊपर मंगलए) स्वस्ति १, श्रीवत्स 3, नन्धावत्त 3, १ भान ४, मद्रासन ५, मत्स्य ६, ६, १४७ भने ४५ ८, ये 418 द्रव्याने (आलिहिता) समीर (काऊणं करेइ) उवयारंति) तभन तेमनी म४२ ५४२ पनि समान या प्रमाणे तेमनी ६५२ यो (कि ते) भ (पाडलमल्लिअ चंपगअसोक पुण्णागचूअमंजरिणवमालिएचकुलतिलगकण वीरकुंदकोज्जयकोरंटयपत्तदमणयवए सुरहिसुगंधगंधिमस्स कयरगहगहिअकरयलपन्भविष्प मुक्कस्स दसद्धवप्णस्स पुष्फणिगरस्स) ६२४ ४२४ भद्र०यना यिनी मनापामा આવેલા દરેક દરેક વણ ઉપર તેણે પાટલ પુછપે ચઢાવ્યાં, મલ્લિકા-મોગરાના પાપે ચઢાવ્યાં ચમ્પક વૃક્ષના પુપે ચઢાવ્યાં, અશોક વૃક્ષના પુષ્પ ચઢાવ્યાં, પુન્નાગ વૃક્ષના પુષ્પ ચઢાવ્યાં साम्रवृक्षनी भरा यावी, नवमलस, पु, dिas, ४५११२ उनेर, उन्ह, vs કરંટ, મરુઆ અને દમનક એ સર્વના પુષ્પ ચઢાવ્યાં. એ સર્વે પે તાજા હતાં, પ્લાન જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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