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________________ ५५२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे येषां ते तथा (जाव अप्पेगइया सयसहस्सपत्तहत्यगया) यावत्पदेन (अप्पेगइया कुमुहत्थगया अप्पेगइया नलिंग हत्थगया अप्पेगइया सोगंधिय हत्थगया, अप्पेगइया पुंडरी यहत्थगया, अपेगइया सहस्सपत्तहत्थगया (इति संग्राह्यम्, तथा च अप्येके कुमुदहस्तगताः, अप्येके नलिनहस्तगताः, अप्येके सौगन्धिकस्तगताः, अप्येके पुण्डरीकहस्तगताः अप्येके सहपत्र हस्तगताः, अप्येके शतसहस्रपत्र हस्तगताः, लक्षपत्रकमलहस्तगताः (भरहं रायाणं पिट्टओ अणुगच्छति ) भरतं राजानं पृष्ठतः पृष्ठतः पृष्ठभागे क्रमेण अनुगच्छन्ति अनुअनुयान्ति । (तरणं तस्स भरहरूस रण्णोब हुईओ) ततः सामन्त नृपानुगमनानन्तरम् तस्य भरस्य राज्ञः सम्बन्धिन्यो बहुव्यो दास्यो भरतं राजानं पृष्ठतः पृष्ठतोऽमुगच्छन्ति इतिपूर्वेण सम्बन्धः कास्ता इत्याह (खुज्जा चिलाइ वामणि वडभीओ बब्बरी बउसिआओ । जोfreeहवियाओ ईसिणियारू किणियाओ ॥१॥ लासिअलउसिज्ज दमिलीसिंहलि तह आरबी पुलिंदीअ । पक्कणि बहलिमुरंडी सबरीओ पारसीओओ ॥२॥ - के हाथ में उत्पल था ( जाव अप्पेगइया सयसहरसपत्त हत्थगया ) यावत् कितनेक व्यक्तियो के हाथ में कुमुद था, कितनेक व्यक्तियों के हाथ में नलिन था, कितनेक व्यक्तियों के हाथ में सौगंधिक था कितनेक व्यक्तियो के हाथ में पुण्डरीक था, कितनेक व्यक्तियों के हाथ में सहस्त्र पत्तों वाला कमल था और कितनेक व्यक्तियो के हाथ में शत सहस्त्र पत्तों वाला कमल था (तएणं तस्स भरहस्स रण्णो वहईओ खुज्जा चिलाइवामणि वडमी ओ बब्बरीबडसियाओ जोणिय पल्हवियाओ इसिणिय थारु फिणियाओ ॥ १ ॥ - लासिअल सिज्न दमिली सिंहलो तह आरबी पुलिंदीअ । एक्कणि बहलिमुरंडी सबरीओ पारसीओ अ || २ || इन सब सामन्त नृपो के पीछेવા) યાવત્ કેટલાક મનુષ્યેાના હાથેામાં કુમુદે હતાં, કેટલાક માણસેાના હાથમાં નલિન હતાં, કેટલાક મનુષ્યેાના હાથેામાં સૌગધિકા હતા, કેટલાક મનુષ્યેાના હાથેામાં પુડરિકા હતાં, કેટલાક મનુષ્યેાના હાથેામાં સહસ્રદલ કમળા હતાં અને કેટલાક મનુષ્યાનાં હાથામાં शत- सहसहा उमजेो इतां (तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहूईओ खुजा चिल्लाइ वामणिवडीओ वम्बरीब उसियाओ, जोणिय पल्हवियाओ ईसिणिय थारु किजियाओ ॥ १ ॥ लासिअल उज्जिदमिलीतह आरबी पुलिदीअ । पक्कणि बहलि मुरंडी सबरीओ पारसीओअ २ अप्पेइया सोगंधिय हत्थ १ यहाँ यावत्पद से "अप्पेगइया कुमुयहत्थगया, अप्पेगइया नलिण हत्थगया, या अप्पेगइया पुंडरीय हत्थगया, अप्पेगइया सहस्तपत्त हत्थगया" इस पाठ का यद्यपि कमल के ही भेद है, परन्तु इनमें क्यार भेद है यह अन्य ग्रन्थों में लिखा जा चुका है अतः वहाँ संग्रह हुआ है ये सब से यह विषय जान लेना चाहिये . १ अहीं यावत्पथी "अप्पेगइया कुमुदहत्थगया, अप्पेगइया, नलिण हत्थगया, अप्पेगईया सोगंधिय हत्थगया, अपेगइया पुंडरीय हस्थगया, अप्पेगइया सहस्तपत्त हत्थग्रया' પાઠના સ`ગ્રહ થયા છે. એ બધાં જો કે કમળના જ પ્રકારા છે, છતાંએ એમનામાં શે ભેદ છે. એ વાત અન્ય ગ્રન્થામાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવી છે એથી તે ગ્રંથામાંથી એ વિષે જાણી લેવું જોઈએ. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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