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________________ ५१४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तीयभागस्य बहुमध्यदेशभागे, 'एत्थणं विणीआ णामं रायहाणी पण्णत्ता' अत्र खलु एतादृशे किल क्षेत्रे विनीता अयोध्या नाम्नी राजधानी प्रज्ञप्ता । साधिक चतुर्दशाधिक योजनशताङ्कोत्पत्ति प्रकारः प्रदर्यते-तथाहि भरतक्षेत्रम् पर्वशत्यधिकपश्वशतानि ५२६ योजनानि षट् ६ कला योजनैकोनविंशतिभागरूपा विस्तृतम, अस्मात् पश्चाशत् ५० योजनानि वैताब्यगिरिव्यासरूपाणि शोध्यन्ते, जातम् ४७६ २ कलाः,दक्षिणोत्तरभरतार्द्धयो विभजनया एतस्याः २३८२, कलाः, इयतो दक्षिणार्द्धभरतव्यासाद् 'उदीणदाहिणवित्थिन्ना' इत्यादि वक्ष्यमाणवचनात् विनी ताया विस्ताररूपाणि नव योजनानि शोध्यन्ते, जातम् २२९ ३ कलाः, अस्य बहुमज्झदेसभाए ) और दक्षिणार्ध भरत के मध्यम-तृतीय भागके बहुमध्य देशभाग में ( एत्थ णं विणीआ णाम-रायहाणी पण्णत्ता ) विनीता नाम की एक बहुत प्रसिद्ध राजधानी कही गई है । ११४ योजन को उत्पत्ति का प्रकार ऐसा है-भरत क्षेत्र का विस्तार ५२६६ योजन का है वैताढ्य पर्वतका व्यास चौडाइ ५० योजन का है सो इसे भरत क्षेत्र के वि स्तार में से घटादेनेपर ४७६६ योजन रह जाते हैं. दक्षिणार्ध भरत और उतरार्ध भरत में इन्हें विभक्त करने पर२३८, योजन आते हैं । अब दक्षिणार्ध भरत व्यास में से विनीता के विस्ताररू प नौ योजन घटाने पर२२९२- आते हैं । इसके मध्य भाग में नगरी हे सो इस प्रमाण को आ धा करने पर ११४ योजन प्रमाण आजाता है बचे हुए एवं योजन के १९ -भाग करने पर और उनमें ३ कलाओं को मिलाने पर हुए-२२ को आधा करने पर ११ कला आजाती है यह विनोता नामकी नगरी (पाईण पडीणायया ) पूर्व से पश्चिम तक लम्बी है ( उदीणदाहिणवित्थिन्ना) રહે છે. દક્ષિણા ભારત અને ઉત્તરાર્ધ ભારતમાં એમને વિભક્ત કરીએ તે ૨૩૮-૩૧૯ જન થાય છે. હવે દક્ષિણાર્ધ ભરતવ્યાસમાંથી વિનીતાના વિસ્તાર રૂ૫ નવ યજન બાદ કરીએ તો ૨૨૯-૩૧૧ આવે છે. એના મધ્યભાગમાં નગરી છે. તે આ પ્રમાણને અધું કરીએ તો ૧૧૪ યોજન પ્રમાણ આવી જાય છે. શેષ તેમજ જનાના ૧૯ ભાગ કરવાથી અને તેમાં ૩ કલાઓ ઉમેરવાથી ૨૨ થયા અને હવે ૨૨ ના બે ભાગ કરીએ તો તેના અધી ૧૧ કલાઓ मापी गय छे. मे पिनी नामे नगरी (पाईण पडीणायया) पूर्वथा पश्चिम सुधी हामी જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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