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________________ प्रकाशिका टीका तु. वक्षस्कार सू. • १ भरतवर्षनामकारणनिरूपणम् ५१५ च मध्यभागे नगरोत्यईकरणे ११४ चतुर्दशोत्तरयोजनशतम् जातम् अवशिष्टस्यैकस्य योजनस्य एकोनविंशतिभागेषु कलात्रयक्षेत्रे सति जाताः २२ तदर्द्धम् ११ एकादश कला इति, तामेव विशेषणै विशिनष्टि- 'पाईण पडीणायया' इत्यादि । 'पाईण पडीणायया' पूर्वापरयो दिशोरायता 'उदीणदाहिणवित्थिन्ना' उत्तरदा क्षिणयो विस्तीर्णा 'दुवालस जोयणायामा' द्वादशयोजनायामा ‘णवनोयणविस्थि. ण्णा' नव योजनविस्तीर्णा 'धणवइमतितिणिम्माया' धनपतिमत्या उत्तरदिक पालबुद्धया निम्मिता, निपुणशिल्पिविरचितस्यातिसुन्दरत्वात् 'चामीयरपागारा' चामीकरप्राकारा स्वर्णमयप्राकारयुक्ता 'णाणामणिपंचवण्णा कविसोसगपरिमंडियाभिरामा' नानामणिपञ्चवर्णकपिशीर्षकपरिमण्डिता अतएवाभिरामा मनोहरा 'अलकापुरीसंकासा' अलकापुरीसंकाशा-धनदपुरीसन्निभा ‘पमुइयपकीलिया' प्रमुदितप्रकीडिता, प्रमुदितजनपोगात् नगर्यापि तात्स्थ्यात् तद्वयपदेश' इति न्यायात् प्रमुदिता तथा प्रक्रीडिता और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ी है. (दुवालसजोयणायामा ) इस तरह इसको लम्बाई १२-योजन की है (णवजोयण विस्थिणा ) और नौ योजन को इसकी चौड़ाई है । (घगवइमति णिम्मया ) कुवेर ने उत्तर दिशा के अधिपति ने-इसे रचा है ( चामीयरपागारा) स्वर्णमय-प्राकार से यह यु. क्त है. ( णाणामणि पंचवण्ण कविसोसगपरिमडियामिरामा ) पांचवर्णवाले अनेक मणियों से इसके कगुरे बने हुए हैं उनसे यह परिमाडित हैं अतः देखने में यह बड़ी सुन्दर लगती है. (अलका पुरी संकासा ) इसलिये यह ऐसी प्रतीत होती है कि मानो यह धनद-कुवेर-को ही नगरी है. ( पमुइय पक्कोलिया ) यहां पर रहने वाले सदा प्रसन्नचित-रहते हैं और अनेक प्रकार की क्रीडाओं के रसमें सराबोर-रहते हैं-इस कारण यह नगरो भो उनके सम्बन्ध से प्रमुदित और प्रकीडित बनी रहती है. ( पच्चक्खं देवलोगभूया ) देखने वालों के लिये यह नगरी साक्षात् देवलोक के समान लगती है.(रिद्धस्थिमियसमिद्धा) यह नगरी विभव, भवन आदि के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए हैं इसमें रहने वालों को स्वचक और परचक्र का बिलकूल भय नहीं रहता है तथा धन छ, (उदीणदाहिणबित्थिन्ना) भने उत्तरथी इक्षिर सुधी पाणी छ. (दुवालसजोयणायामा) मा प्रभारी अनी मा १२ योनी छे. (णबजोयणवित्थिण्णा) भने न योरन २दी सेना पण छ. (घणवइमति णिम्मया) उत्तर दिशान मधिपति मेरे सनी २यना | छ. (चामीयरपागारा) व भय प्राथी ये युरत छ. (णाणामणि पंचवण्ण कविसीसगपरिमंडियाभिरामा) पांय १ वाणा अने भरिमाथा साना सराय। मनसा छ. तमनाथ में परिभाजित छे. मेथी नाम से पूष सुद२ मा छे. (अलकापुरी संकासा) येथी ये मेवी प्रतीत थाय छ : d मे धन- २-जी नगरी छ, (पमुइय पक्कोलिया) मई २३ना२। सो प्रसन्नचित्त २ छ भने अने। अनी ક્રીડાઓના રસમાં મગ્ન રહે છે. એથી આ નગરી પણ તેમના સંબંધથી પ્રમુદિત અને प्रीडित २९ छ, (पच्चक्ख देवलोगभूया) नेनाराम भाटे से नारी साक्षात देवासी दाणे, (रिस्थिमियसमिद्धा) मे नगी पिप, लपन मा 43 समृद्धि सम्पन्न या જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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