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प्रकाशिकाटीका द्वि० वक्षस्कार सू. ६० सुषमदुष्षमाकालनिरूपणम्
५०५ (पडिवज्जिस्सइ)प्रतिपत्स्यते प्राप्तो मविष्यति । अस्याः समाया भागत्रयं भवतीति तद् दर्शयतिसाणं' इत्यादि ।(सा णं समा तिहा विभज्जिस्सइ)सा खलु समा त्रिधा विभक्ष्यते सा सुषमदुरुषमारूपा समा भागत्रयेण विभक्ता भवति । तत्र प्रत्येकमागं नामनिर्देश पूर्वकमाह-'पढमे तिभागे, इत्यादि । (पढमे तिभागे मज्झिमे तिभागे, पच्छिमे तिभागे) प्रथमस्त्रिभागो, मध्यमस्त्रिभागो पश्चिमस्त्रिभाग इति । 'त्रिभाग' इत्यस्य 'तृतीयो भाग इत्यर्थः । एवं सुषमदुष्षमायाः समाया भागत्रयं प्रदर्श्य सम्प्रति प्रथमत्रिभागस्याकारभावं जिज्ञासमानो गौतमस्वामी पृच्छति -'तीसे णं भंते' ! इत्यादि । (ती से णं भंते । समाए) तस्याः खलु भदन्त ! समायाः (पढमे तिभाए) प्रथमे त्रिभागे (भरहस्स वासस्स) भरतस्य वर्षस्य (केरिसए) कीदृशकः (आगारभावपडोयारे) आकारभावप्रत्यवतारो (भविस्सइ) भविष्यति ? । भगवानाह-(गोयमा !) गौतम ! (बहुसमरमणिज्जे) बहुसमरमणीयो (जाव) यावद् (भविस्सइ) भविष्यति । अत्र यावत्पदेन स एव वर्णनक्रमः संग्राह्यो योऽवसपिण्या: सुषमदुषमा समा निरूपणावसरे भरतक्षेत्रस्य वर्णनक्रमो वर्णित इति । मनुष्याणां विषये गौतमप्रश्नो भगवदुत्तरं च अवसर्पिण्या: के तीन भाग होंगे (पढमेतिमागे, मज्झिमे ति भागे, पच्छिमे तिभागे) इन मेंएक प्रथम विभाग होगा द्वितीय मध्यम त्रिभाग होगा और तृतीय पश्चिम त्रिमाग होगा इनमें से जो 'पढमेतिमाए' प्रथम त्रिभाग है-तीसरा भाग है- (तीसेणं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभाव. पडोयारे भविस्सइ) हे भदन्त ! उस प्रथम त्रिमाग में भरत क्षेत्र का स्वरूप कैसा होगा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है- (गोयमो ! बहु समरमणिज्जे जाव भविस्सइ) हे गौतम ! प्रथम त्रिभाग में भरत क्षेत्र का भूमिभाग बहुत समरमणीय होगा। यहां यावत्पद से वही वर्णन क्रम संग्राह्य हुआ है जो अवसर्पिणी के सुषमा आरक के दुषमा आरक के निरूपण के समय में भरत क्षेत्र का वर्णित किया गया है(मणुयाणं जा चेव ओसप्पिणी ए पच्छिमे वत्तव्वया सा भाणियव्वा कुलगरबज्जा उसभसामिवज्जा)अवसर्पिणीसम्बन्धी सुषम दुप्पमा के पश्चिम त्रिभाग में जैसा मनुष्यों का वर्णन किया गया है वैसा ही वर्णन कुल करके वर्णन को और ऋषभस्वामी के वर्णन को छोड़ कर यहां पर भी करलेना चाहिये. क्यों कि अवसर्पिणी के सुषमदुष्षमा के पचिम विभाग में जिन दण्डनीतियों प्रवृत्ति कुलकरों ने की है और ऋषभस्वामी ने जो अन्तपाक आदि क्रिया ओं का और शिल्प विमा यशे मेमांथा रे (पढमे तिभाए) प्रथम त्रिमा मातत्रिले माछे, (तीसेणं भते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) हे महन्त ! ते प्रथम त्रिभागमारतक्षेत्रनु स्१३५ वुशे ? अनासपासमा प्रभु ४३ छ-(गोयमा बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ) गौतम! प्रथम विलामा मरतक्षेत्रनो भूमिमा मासभरभणीय शे. અહીં યાવત પદથી તે પ્રમાણે જ વર્ણન કમ સંગ્રાહા થશે કે જે પ્રમાણે અવસર્પિણીના सुषम-दुषमा मा२ना नि३५९ समयमा भरतक्षेत्र न ४२वामा व्यु छे. (मणुयाणं जा चेवओसप्पिणीए पच्छिमे वत्तव्वया सा भाणियव्वा कुलगरवज्जा उसमसामिवज्जा) भवસર્પિણી સંબંધી સુષમ દુષમાના પશ્ચિમ ત્રિભાગમાં જેવું મનુષ્યાનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે,
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર