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________________ प्रकाशिकाटीका द्वि० वक्षस्कार सू.० ५४ षष्ठारकस्वरूपनिरूपणम् ४५३ हायमाणे२ एत्थणं दूसमदसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो तीसे णं भंते समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आयार भावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा !काले भविस्सइ हाहामूए भंभाभूए कोलाहलभूए समाणुभावेण य खरफरसंधूलिमइला दुबिसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाइंति इह अभिक्खणं धूमाहिति अ दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुसतमपडलणिरालोआ समयलुक्खयाए णं अहिअं चंदा सीअंमोच्छिहिति अहिअसूरिआ तविस्संति, अदुत्तरं च णंगोयमा! अभिक्खणं अरसमेहा विरसमेहा खारमेहा खत्तमेहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा अजवणिज्जोदगा वाहिरोगवेदणोदीरणपरिणामसलिला अमगुण्णपाणिअगा चंडा निलपहततिक्खधाराणिवातपउरं वासं वसिहिंति, जे णं भरहे वासे गामागरणगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमगयं जणवयं चउप्पयगवेलए खहयरे पक्विसंधे गामारण्णप्पयारणिरए तसे अ पाणे बहुप्पयारे रुक्सगुच्छगुम्मलयवल्लेिपवालंकुरमादीए तणवणस्सइकाइए ओसहीओ अ विद्धं सेहिति पव्ययगिरि डोंगरुत्थलभट्ठिमादीए अवेयड्व. गिरिवज्जे विरावेहिंति, सलिलबिलविसमगत्तणिण्णुण्णयाणि अ गंगासिंधुवेज्जाइं समीकरेहिंति, तोसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए केरिसए आगा रभावपडोआरे भविस्सइ ?, गोयमा! भूमी भविस्सइ इंगा. लभूआ मुम्मुरभूआ छारिअभूआ तत्तकवेल्लुअमूआ तत्तसमजाइभूआ धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणयबहला चलणिबहुला बहणं धरणि गोअराणं सत्ताणं दुणिक्कमायावि भविस्सइ । तोसेणं भंते ! समाए भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ ?, गोयमा ! मणुआ भविस्संति दुरूवा दुव्यणा दुगंधा दुरसा दुफासा अणिट्ठा अकंता अप्पिआ असुभा अमणुण्णा अमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिहस्सरा अकंतस्सरा अपियस्सरो अमणामस्सरा अमणुण्णस्सरा अणादेज्जवयण. पच्चायाता णिल्लज्जा कूडकवडकलहबंधवेरनिरया मज्जायातिकमप्पहाणा જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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