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________________ حد یه اسم سوم محیح ४३८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे (उत्तरिल्ले) औत्तराहे उत्तरदिग्भवे (अंजणगे) अञ्जनके अजननामकपर्वते (अट्ठाहियं) अष्टाह्निकं महिमानं करोति (तस्स) तस्येशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सम्बिन्धिनः (लोगपाला) लोकपालाः (चउसु) चतुर्यु (दहिमुहगेसु) दधिमुखकेषु दधिमुखपर्वतेषु (अट्टाहियं) अष्टाहिकं महामहिमानं कुर्वन्ति (चमरो अ) चमरश्वासुरेन्द्रोसुरराजः (दाहिणिल्ले) दाक्षिणात्ये दक्षिणदिग्भवे (अंजणगे) अजनके अञ्जनपर्व ते अष्टाह्निकं महामहिमानं करोति (तस्स) तस्य चमरस्यासुरेन्द्रस्यासुरराजस्य सम्बन्धिनः (लोगपाला) लोकपालाः (दहिमुहगपव्वएसु) दधिमुखकपर्वतेषु अष्टाह्निकं महामहिमानं कुर्वन्ति (बलि)वलिः वैरोचनेन्द्रो वैरोचनराजः (पच्चस्थिमिल्ले) पश्चिमे (अंजणगे) अञ्जनके अजनपर्वते अष्टाह्निक महामहिमानं करोति (तस्स) तस्य बलेः सम्बन्धिनः (लोगपाला) लोकपालाः (दहिमुहगेसु) दधिमुखकेषु दधिमुखपर्वतेषु अष्टाह्निकं महामहिमानं कुर्वन्ति (तए) ततः-तदन्तरं शनादिबलिययेन्तेन्द्राणामष्टानिक महामहिमकरणानन्तरम् (णं) खलु (ते) ते पूर्वोक्ताः (बहवे) बहव अनेके (भवणवइवाणमंतर जाव) भवनपति व्यन्तर यावत् भवनपतिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकाः (अट्टाहिआओ) अष्टाह्निकान् (महामहिमाओ) महामहिमानः, मूले प्राकृतत्वात्स्त्रीत्वम् (करेंति) कुर्वईशान ने उत्तरदिशा के अञ्जन नाम के पर्वत पर अष्टान्हिक महोत्सव किया 'तस्स लोगपाला च उसु दहिमुहेसु अद्राहियं करें ति" देवेन्द्र देवराज ईशान के चार लोकपालों ने चार दधिमुख पर्वतों पर अष्टान्हिक महोत्सव किया; "चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगे तस्सलोगपाला दहिमुहपव्वएसु" असुरेन्द्र असुरराज चमर ने दिक्षिण दिशा के अञ्जनपर्वत पर अष्टान्हिक महोत्सव किया और उसके लोकपालों ने चार दधिमुखपर्वतों पर अष्टान्हिक महोत्सव किया "बली" वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि ने "पञ्चस्थिमिल्ले अंजणगे तस्त लोगपाला दहिमुहगेसु" पश्चिम दिशा के अंजन पर्वत पर अष्टान्हिक महोत्सव किया और उसके चार लोकपालों ने दधिमुख पर्वतों पर अष्टान्हिक महोत्सव किया, तएणं ते बहवे भवणवइवाणमंतर जाव अट्टाहियाओ महामहिमाओ करें ति" इस तरह जब शक से लेकर बलितक के इन्द्र अष्टान्हिका महोत्सव कर महोत्सव या 'इसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अढाहियं देवेन्द्र देव शान उत्तर ईशानन नाम पर्वत ५२ मटा महोत्सव श्य[ . 'तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहेसु अठ्ठाहिय करें'ति' हेवेन्द्र ३१२।४ शानना या सापाला यार धिभुम पत। ५२ अाणि महोत्सव या 'चमरोअदाहिणिल्ले अंजणगे तस्स लोकपाला दहि ggggg અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરે દક્ષિણ દિશાના અંજની પર્વત પર અષ્ટાહિક મહોત્સવ કર્યો અને તેના કપાલાએ દધિમુખ પર્વત પર અષ્ટાહિક મહોત્સવ કર્યો वैशियनेन्द्र वैशयने २।०१ मखिये 'पच्चथिमिल्ले अंजणगे तस्स लोगपाला दहिमुहगेसु' પશ્ચિમ દિશાના અંજની પર્વત પર અષ્ટાહિક મહોત્સવ કર્યો અને તેના ચાર લોકપાલેએ धिभु५ ५ तो ना ५२ अट1९६४ महात्सया . 'त एणं ते बहवे भवण जाव अट्टाहियाओ महामहिमाओ करें ति मा प्रमाणे न्यारे ४थी माडी मात सुधीना ते बहवे भवणवइ वाणमंतर જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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