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________________ प्रकाशिकाटीका द्वि०वक्षस्कार सू. ५१ अस्थिसंचयन विध्यनन्तरिक विधिनिरूपणम् ४३७ खल (ते) ते ( बहवे ) बहवः अनेके (भवणवइ जाव वेमाणिआ) भवनपति यावद्वैमानिकाः ( भवन पतिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकाः (देवा) देवाः (तित्थगरस्स) तीर्थकरस्य जिनस्य (परिणिव्वाणमहिमं) परिनिर्वाणमहिमानं मोक्षगमनोत्सवं (करेंति) कुर्वन्ति (करिता) कृत्वा (जेणेव ) यत्रैव मूले सप्तम्यर्थे तृतीया प्राकृतत्वजन्मा बोध्या (नंदीसरवरे) नन्दीश्वरः तदाख्यः (दोवे) द्वीपः (तेणेव ) तत्रैव अत्रापि मूले प्राकृतत्वादेव सप्तम्यर्थे तृतीया (उवागच्छंति) उपागच्छन्ति (तए) ततः तदन्तरं भवनपत्यादीनां नन्दीश्वरद्वीपोपगमनानन्तरम् (णं) खलु (से) सः पूर्वोक्तः (सक्के) शक्रः (देविदे) देवेन्द्रः (देवराया) देवराजः ( पुरच्छिमिल्ले) पोरस्त्य - पूर्वदिग्भवे (अंजणगपव्वए) अञ्जनकपर्वते ( अट्ठाहिअ ) अष्टाह्निकम् अष्टाभिर्दिनैः सम्पाद्यम् ( महामहिमं) महामहि - मान महोत्सव (करेंति) कुर्वन्ति सम्पादयन्ति (तए) ततः शक्रस्याष्टाह्निक भगवन्निर्वाण महिमकरणानन्तरम् (णं) खलु (सक्क्स्स) शक्रस्य (देविंदस्स) दवेन्द्रस्य (देव - रायस्स) देवराजस्य सम्बन्धिनः ( चत्तारि ) चत्वारः (लोगपाला) लोकपालाः (चउसु) चतुर्षु (दहिमुहगपचएस) दधिमुखकपर्वतेषु (अट्ठाहियं) अष्टाह्निकं ( महामहिमं) महामहिमानं (करेंति) कुर्वन्ति (ईसाणे ) ईशानः (देविंदे) देवेन्द्रः (देवराया) देवराजः से लेकर वैमानिक तक के चतुर्विध निकाय के देवों ने तीर्थकर भगवान् के निर्वाण कल्याण की महिमा मोक्ष गमन का उत्सव किया "करिता जेणेव नन्दी सरवरे दीवे तेणेव उवागच्छन्ति' मोक्षगमन का उत्सव करने के बाद वे चतुर्विध निकाय के देव फिर जहां पर नन्दीश्वर नामका द्वीप था वहां पर गये "तए णं सक्के देविंदे देवराया पुरच्छिमिल्ले अंजणगफन्वए - अट्ठाहियं महामहिम करेंति' वहां जाकर देवेन्द्र देवराज शक्र ने पूर्वदिशा में स्थित अंजनक पर्वत पर अष्टाह्निका महोत्सव - जो कि आठ दिनों तक लगातार होता रहता है- किया " तरणं सक्कस्स देविदस्स देवरायस्स चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहगपव्वसु अट्ठाहियं महामहिमं करें ति" इसके बाद देवेन्द्र देवराज शक्र के चार लोकपालों ने चार दधिमुख पर्वतों पर अष्टान्हिका महोत्सव किया "ईसाणे देविंदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहियं" देवेन्द्र देवराज गरस परिणिव्वाणमहिमं करेइ' त्यार माह ते समस्त लवनयतिथी भांडीने वैभानिङ सुषी ના ચતુવિધ નિકાયના દેવાએ તીર્થંકર ભગવાનના નિર્વાણ કલ્યાણની મહિમાની-મેાક્ષગમनोत्सवनी आयोना री 'करिता जेणेव नंदीसरवरे दीवे तेणेव उवागच्छंति' भोक्ष ગમનના ઉત્સવ બાદ તે ચતુર્વિધ નિકાયના દેવા જ્યાં નંદીશ્વર નામે દ્વીપ હતા ત્યાં ગયા 'त एणं सक्के देविंदे देवराया पुरच्छिमिल्ले अंजणगपव्वए अट्ठाहिअं महामहिमं करें ति ત્યાં જઈને દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્ર પૂર્વ દિશામાં સ્થિત મજનક પર્વત પર અષ્ટાંહ્નિકા એટલે हे आठ दिवस सुधी लगातार उनवाते रहे छे-ते महोत्सनी योन्ना १२ 'तएण सक्कस्स देविंदस्स देवरायस्स चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहगपव्वसु अठ्ठाहिअं महामहिमं करेति' त्यार माह हेवेन्द्र देवरान शनायार सोउपाये यार दधिमुख पर्वत पर मष्टाहि જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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