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________________ प्रकाशिकाटीद्वि० वक्षस्कारसू. ५० कलेवरा णिचि तोपरिस्थापनानन्तरिकशक्रादिकार्यनिरूपणम् ४३३ 'देवराया' देवराजः 'भागवओ' भगवता 'तित्थयरस्स' तीर्थकरस्य 'उवरिल्लं' उपरितनं 'दाहीणं' दक्षिणं 'सक' सक्थि - ऊरुम् दक्षिणभागस्थोरुसम्बन्ध्यस्थि 'गेण्ड' गृह्णाति तथा 'ईसाणे' ईशानः 'देविंदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'उवरिल्लं' उपरितनं 'वाम' वामं 'सकहं' सक्थि - उरुम् वामभागस्थोरुसम्बन्ध्यस्थि 'गेहइ' गृह्णाति तथा 'चमरे' चमर: 'असुरिंदे' असुरेन्द्र: 'असुरराया' असुरराज: 'हिद्विल्लं' अधस्तनं 'दाहिणं' दक्षिण 'सक' सक्थि - ऊरु दक्षिणभागस्थोरुसम्बन्ध्यस्थि 'गेण्हइ' गृह्णाति 'बली' बली 'वइरो दे' वैरोचनेन्द्रः 'वइरोयणराया' वैरोचनराजः 'हिद्विल्लं' अधस्तनं 'सक'हे' सक्थिऊरुम् अधस्तनभागस्थोरुसम्बन्ध्यस्थि 'गेहइ' गृह्णाति - चिनोति ' अव सेसा 'अवशेष अवशिष्टाः शक्राद्यतिरिक्ताः 'भवणवइ जाय वेमाणिया' भवनपति यावद्वैमानिका:भवनपतिज्योतिष्कव्यन्तरवैमानिकाः 'देवा' देवाः 'जहारिहं' यथार्ह = यथायोग्यम् यथा स्यात्तथा 'अवसेसाई' अवशेषाणि - अतिरिक्तानि शक्रादि गृहीतातिरिक्तानि 'अंगमंगाई' हुए जल से बुझा दिया "तरण' से देविंदे देवराया भगवओ तित्थगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकह गेहइ" जब क्षीरसागर के जल से वे तीर्थकर आदि की चिताएँ अच्छी तरह बुझ गई तो फिर उस देवेन्द्र देवराज ने भगवान् तीर्थकर की उपरितन दक्षिण हड्डो को - दक्षिण भागस्थ उरु सम्बन्धि हड्डी को उठाया 'ईसाणे देविंदे देवराया उवरिल्लं वामं सकहं गेहइ' देवेन्द्र देवराज ईशान इन्द्र ने उपरितन वामभाग के उरु की हड्डी को उठाया तथा “ चमरे - असुरिंदे असुरराया हिल्लिं दाहिणं सकहं गेहइ' असुरेन्द्र असुरराज चमर ने अघस्तन दक्षिण हड्डी को - दक्षिणभागस्थ उरु संबन्धी अस्थि को उठाया 'बली वइरोयणिदे वइरोवणराया हिल्लि' सकहं गेors' वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि ने अधस्तन हड्डी को - अधस्तन भागस्थ उरु सम्बन्धी अस्थि को उठाया " अवसेसा' बाकीके - शक्रादिकों से अतिरिक्त भवनपति से लेकर वैमानिक तक के देवों ने "जहारिहं अवसेसाई अगमंगाई' यथायोग्य अवशिष्ट अंगो की हड्डियों को उठा . "तरण से देविंदे देवराया भगवओ तित्थगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकहं गेण्हइ" જ્યારે ક્ષીરસાગરના પાણીથી તે તીથ કર વગેરેની ચિતાએ સપૂર્ણ રીતે એલવાઈ ગઈ ત્યાર બાદ તે દેવેન્દ્ર દેવરાજે ભગવાન્ તીથંકરની ઉપરિતાન દક્ષિણ અસ્થિને-દક્ષિણ ભાગ स्थ ते संधि अस्थिने सीधी "ईसाणे देविंदे देवराया उवरिल्लं वामं सकहं गेव्हइ" हेवेन्द्र देवराम ईशान ईन्द्रे उपस्तिन वासलागनी अस्थिने सीधी ते "चमरे असु. रिंदे असुरराया हिडिल्लं दाहिणं सकहं गेहइ" असुरेन्द्र असुररान थमरे अधस्तन दक्षिण -स्थिने- दक्षिण लागस्थ तत् संबंधी अस्थिने - सीधी. "बली वइरोअणिदे - रोअणराया हिट्ठिल्लं सकहं गेण्हह” वैरोयनेन्द्र वैरोयन राथ मसिमे अधस्तन अस्थिने-अधस्तनं लागस्य तत् संबंधी अस्थिने सीधी " अवसेसा" शेष - शाहि सिवायना-भवनयतिथी भांडीने वैमानि सुधीना हेवेोये "जहारिर्ह अवसेसाई अंगभंग । ई" યથાયાગ્ય અવશિષ્ટ અગેાના અસ્થિએને ઉઠાવ્યા . શક્રાદિકા દ્વારા ગૃહીત અસ્થિયા સિવા ५५ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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