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________________ ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दृष्ट्वा अवधि प्रयुनक्ति, 'पउंजित्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ' प्रयुज्य भगवन्तं तीर्थकरम अवधिना आभोगयति निरीक्षते, 'आमोइत्ता' आभोग्य निरीक्ष्य शकेन्द्रवत् सकलपरिवारसमन्वितोऽष्टापदपर्वते समागत्य चन्दन नमस्कारपूर्वकं भगवन्तं पर्युपास्ते एतदेव सूचयितुमाह-मूले 'जहा सक्के नियगपरिवारेण भाणेयव्यो जाव पज्जुवासई' इति ‘एवं' एवम्-अनेन प्रकारेण 'सव्वे' सर्वे वैमानिका 'देविंदा' देवेन्द्राः' 'जाव अच्चुए' यावदच्युतः-अच्युतपर्यन्ता 'णियगपरिवारेण' निजकपरिवारेण-स्व स्व परिवारेण सहिता 'भाणेयव्वा' भणितव्याः । 'एवं' एवम्-अनेन प्रकारेण-वैमानिकेन्द्रप्रकारेण 'जाव' यावत्-सर्वे यावच्छब्दोऽत्र सर्वार्थे न तु संग्रहार्थे, संग्राह्यपदाभावात्, 'भवणवासीणं इंदा' भवनवासिनाम् इन्द्राः-विंशतिरपि भवनवासीन्द्राः निज निज परिवारेण सहिता वक्तव्याः, तथा 'वाणमंतराणं' वानव्यन्तराणां-व्यन्तरजातीयानां देवानामपि 'सोलस' षोडश-षोडश संख्यका इन्द्रा कालादयो 'जोइसियाणं दोण्णि' ज्योतिष्कदेवानां चंद्रसूर्य द्वौ इन्द्रौ नियगपरिवारेण णेयव्या' निर्जानजपरिवारेण सहिता वक्तव्याः, ननु को देखा "पसित्ता ओहिं पउंजए' देखकर उसने अपने अवधिज्ञान को उपयुक्त किया "पउंजित्ता" उपयुक्त करके उसने "भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ" तीर्थकर भगवान् को उस अवधिज्ञान द्वारा देखा "आभोइत्ता” देखकर 'जहासक्के नियगपरिवारेणं भाणेयव्यो जाव पज्जुवासइ" वह शकेन्द्र की तरह सकल परिवार सहित अष्टापद पर्वत पर आ गया और वहां आकर के उसने वन्दन नमस्कार पूर्वक भगवानकी पर्युपासना की "एवं सव्वे विंदेविंदा जाव अच्चुए णियगपरिवारेणं भाणेयव्वा" इसी प्रकार से अच्युत देवलोक सक के समस्त इन्द्र अपने २ परिवार सहित अष्टापद पर्वत पर आये ऐसा कहना चाहिए, यहां यावत् शब्द सवोर्थ में प्र हुआ है. संग्रहार्थ में नहीं क्योंकि यहां पर संग्राह्य पदों का अभाव है, "एवं जाव भवणवासीणं इंदा याणमंतराणं सोलस" इसी तरह भवनवासियों के २० इन्द्र, व्यन्तरों के १६ कालादिक इन्द्र, और "जोइसियाणं दोषिण" ज्योतिष्कों के चन्द्र और सूर्य ये दो इन्द्र, “णियग परिवारा णेयव्या" अपने २ परिवार सहित इस अष्टापद पर्वत पर ऐसा कहना चाहिये. यहाँ शंका 'पंउजित्ता' उपयुत धरीने तो 'भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ' तीर्थ२ सपानना ते भवधिज्ञान पडेशन र्या 'आभोइत्ता' ६शन शने त 'जहा सक्के नियगपरिवारण भाणेयच्चो जाव पज्जुवासइ' शहेन्द्रनी म स परिवार सहित मष्टा ५६ ५५त ५२ भावी गया. अने त्यां मावीन तो वाहन नम२४१२ पू समयाननी पयुपासना ४२१. 'एवं सव्वे देविदा जाच अच्चुए णियगपरिवारेणं भाणेयव्वा' मा प्रमाणे सयुत हे सोप-तना સઘળા ઈન્દ્રો પિતા પોતાના પરિવાર સહિત અષ્ટા પદ પર્વત પર આવ્યા એમ કહેવું જોઈએ અહીં યાવત્ શબ્દ સર્વાર્થમાં પ્રયુક્ત થયેલ છે. સંગ્રહાથંમાં નહીં કેમકે અહીં સંગ્રહ ४३८॥ पनि। मलाप छे. 'एवं जाव भवणवासीण इंदा वाणमंतराणं सोलस' मे प्रमाणे भवनवासीयाना पीस छन्द्र, व्यत२ वे। ना१६ साण वगेरेन्द्र भने 'जोइसियाणं दोषिण' यतिनाय भने सूर्य से मेन्द्र 'णियगपरिवारा णेयव्वा' पात पाताना પરિવાર સાથે આ અષ્ટાપદ પર્વત પર આવ્યા, એમ કહેવું જોઈએ. અહીંયા એ જાતની गत જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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