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________________ २७२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दन्त अस्ति खलु तस्यां समायां भरते वर्षे आवाह इति वा ? आवाहः विवाहात पूर्व क्रिय माणो वाग्दानरूप 'उत्सविशेषः, वीवाहाइ वा विवाह इति वा ? विवाहः-प्रसिद्धः, 'जण्णाइ वा' यज्ञ इति वा ! यज्ञवह्नौ घृतादिहवनलक्षणः, 'सद्धाइ वा श्राद्धमिति वा ? श्राद्धं मृतक क्रिया। 'थालीपागाइ वा' स्थालीपाक इति वा ? स्थालीपाक:-लोकगम्यो मृतकक्रियाविशेष एव, 'मियपिंड निवेयणाइ वा' मृतपिण्ड निवेदनमिति वा ?, मृतपिंडनिवेदनम् मृतमुदिश्य पिण्ड प्रदानम् ? भगवानाह-'णो इण सम२' नो अयमर्थः समर्थः यतो 'समणा उसो , हे आयुष्मन् श्रमण! 'तेणं मणुया' ते मनुजाः खलु 'ववगय आवाहवीवाह जण्ण सद्ध थालीपागमियपिंडणिवेयणा' व्यपगताऽऽवाहविवाहयज्ञश्राद्धस्थालीपाकमृतपिंडनि वेदन:-व्यपगतानि आवाह विवाह यज्ञश्राद्ध स्थालीपाकमृतपिंडनिवेदनानि येभ्यस्ते तथा भूताः ‘पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः । न तत्रावाह विवाहादिकं वर्तते इति भावः । पुनीतमस्वामी पृच्छति -'अस्थिणं भते !तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाइ वा' हे भदन्त अस्ति खलु तस्यां समायां भरते वर्षे इन्द्रमह इति वा इन्द्रमहः इन्द्रनिमित्तक उत्सवः, 'खंदमहाइ' वा स्क __ "अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा वीवाहाइ" इत्यादि टीकार्थ-गौतम स्वामी ने पुनः प्रभु से ऐसा पूछा है हे भदन्त!उस सुषम सुषमा काल के समय इस भरत क्षेत्र में आवाह विवाह होने के पहिले होनेवाला वाद्गान रूप उत्सव विशेष होता है क्या ? विवाह परिणयन रूप उत्सव विशेष होता है क्या ! यज्ञ अग्नि में घृतादि के हवन करने रूप उत्सव विशेष होता है क्या ? श्राद्ध मरण के बाद पंक्तिभोजन आदि रूप क्रिया होती है क्या? स्थालीपाक लोक गम्य मृतक क्रिया विशेष होता है क्या ? मृतपिण्डनिवेदन मृतक को लक्ष्य करके पिण्डदान करना होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि “णो इणट्रे समझे" हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि "ववगया आवाह विवाह जण्ण सद्ध थाली पाग मिय पिण्ड णिवेयणा ण ते मणुया पण्णत्ता" वे उस काल के मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक और मृत पिण्ड निवेदन इन सब से रहित होते है अर्थात् उस काल में आवाह आदि कियाएँ नहीं होती है। "अस्थि ण भंते ! तीसे समाए, भरहे वासे इंदमहाइ वा खंदमहाइ वा णागमहाइ वा जक्ख अस्थि ण भंते तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ बा वीवाहाइ वा-इत्यादि ટીકાર્ચ–ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને ફરીથી આમ પ્રશ્ન કર્યો કે હે ભદન્તાતે સુષમ સુષમા કાળના સમય માં આ ભરત ક્ષેત્રમાં આવાહ-વિવાહ પહેલાને વાગુદાન રૂપ ઉત્સવ વિશેષ હોય છે ? વિવાહ પરિણયન રૂપ ઉતસવ વિશેષ હોય છે ? યજ્ઞ–અગ્નિમાં ધૃતાદિકથી હવન કરવા રૂપ ઉત્સવ વિશેષ હોય છે? શ્રાદ્ધ-મૃત્યુ પછી પંકિતભેજન આદિ રૂપ ક્રિયા–હોય છે? સ્થાલીપાક-લોકગમ્ય મૃતક ક્રિયા વિશેષ હોય છે ? મૃતપિડનિવેદન–મૃતકને અનુલક્ષીને પિડદ ४२वामां आवेत या विशेष डाय छ १ सेनामा प्रभु ४९ छ: “णो इणढे समढे" गौतम ! म अथ समय नथी. भले 'ववगय आवाह विवाह जससा सद्धथालीपाग मिय पिंड णिवेयणा ण ते मणुया पण्णत्ता' ते ना मनुष्या मावा, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध સ્થાલીપાક અને મૃતપિંડ નિવેદન એ સર્વ ક્રિયાઓથી રહિત હોય છે. એટલે કે તે કાળમાં मापार सब जिया यता नथी. ? “अस्थि ण भंते तीसे समाए भरहे वासे इंद જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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