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________________ प्रकाशिका टोका द्वि वक्षस्कार सू. २४ सुषमसुषमाभाविमनुष्य स्वरूपनिरूपणम् २३७ गवादि शृङ्गवत् कुटिला नासा - नासिका यासां तास्तथा, तथा - 'सारयणव कमल कुमुय कुवविमलदलणियर सरिसलक्खणपसत्थ अजिह्मकंतनयना' शारद नवकमल कुमुदकुवलय विमलदलनिकर सदृशलक्षण प्रशस्ताजिह्मकान्तनयनाः- शारदानि शरदृतु भवानि यानि नवानि-नूतनानि यानि कमलकुमुदकुवलयानि कमलं च पद्मं सूर्य विकासि, कुमुदं च उत्पलं चन्द्रविकास, कुवलयं च नीलोत्पलम्, एतेषां द्वन्द्वस्तानि तथा एतेषां यानि विमलानिनिर्मलानि दलानि पत्राणि तेषां यो निकरः समूहः, तत्सदृशे - रक्तश्वेतनीलवर्णयुक्ते लक्षणप्रशस्ते लक्षणतः - शोभनलक्षणयोगात् सुशोभने अजिह्मे अमन्दे भद्रभावयुक्ततया निर्वि कारचपले कान्ते सुन्दरे नयने नेत्रे यासां ता स्तथा, तथा 'पत्तलधवलायत आतंबलोयणाओ' पत्रलधवलायताताम्रलोचनाः पत्रले पक्ष्मले शोभनपक्ष्मयुक्तं धवले - शुभ्रे आयते कर्णान्तगते आता - ईषदरुणे लोचने नेत्रे यासां तास्तथा, नारीणां नयनसुभगत्वकंतणयणा" इनका तालु और जिह्वा रक्तोत्पल के पत्र के समान रक्त होते हैं तथा मृदु और सुकुमार होते है इनकी नासिका वनेर की कलिका जैसी अकुटिल होती हुई भ्रूद्रय के मध्य से निकलकर अत्यन्त सरल एवं ऊँची रहती है, गाय आदि की नाक की तरह वह कुटिल नहीं होती है, इनके दोनों नेत्र शरद ऋतु सम्बन्धी नवीन सूर्य-विकासी पद्म, कुमुद चन्द्रविकाशी उत्पल, एवं कुवलय- नीलोत्पल के विमल पत्रों के समूह के जैसे होते हैं, - अर्थात रक्त, श्वेत एवं नील वर्ण से युक्त रहते है, तथा वे शोभन लक्षण के योग से प्रशस्त होते हैं, अजिह्म होते हैं भद्रभावयुक्त होने से विकारभाव रहित होकर चपल होते हैं, और कान्त होते हैं बडे सुन्दर होते हैं, "पत्तलधवलायत आंतब लोयणाओ, आणामियचावरुइलकिण्हब्भराइसंगय सुजाय भूमयाओ" तथा वे . उनके लोचन पत्रल-पक्ष्मल शोभन पक्ष्म से युक्त होते हैं, धवल शुभ्र होते हैं, आयत होते है, कर्णान्तगत होते हैं एवं ईषद् अरुणहोते हैं नारियों की नयनसुभगता ही उनका उत्कृष्ट शृङ्गार है इस बात को सूचित करने के लिये ही शोभनपक्ष्मयुक्तता और कर्णान्तगतत्व विशेषणों को लेपत्थ अजिह्मकंतणयणा' खेमनां तालु भने बिहान पत्रनी प्रेम रत होय छे. અને સુકુમાર હાય ને. એમની નાસિકા કણેરની કલિકા જેવી અકુટિલ હોય છે અને તે બ્રયના મધ્યમાંથી નીકળીને અતીવ સરળ તેમજ ઊંચી રહે છે. ગાય વગેરેના નાકની જેમ તે કુટિલ હાતી નથી. એમના બન્ને નેત્રો શરદ ઋતુ સંબંધી નવીન કમળ-સૂર્યં વિકાસી પદ્મ કુમુદ ચન્દ્ર વિકાસી ઉત્પલ તેમજ કુવલય નીલેાત્પલના વિમલ પત્રોના સમૂહના જેવાં હાય છે. એટલે કે રક્ત શ્વેત અને નીલ વર્ણોથી યુકત રહે છે તથા તે શે।ભન લક્ષણના ચાગથી પ્રશસ્ત હાય છે. અદ્ઘ હાય છે, ભદ્ર ભાવયુકત હાવા થી વિકાર ભાવ રહિત હોવા छतां यपण होय छे भने अन्त होय छे अतीव सुंदर होय "पत्तलधवलायत आतंब लोयणाओ, आणामिचावरुइलकण्हन्भराइ संगयसुजायभूभयाओ, तेभन ते तेमनां नेत्रो પત્રલપમલ–શે।ભન પમથી યુકત હાય છે, ધવલ શુભ્ર હોય છે. આયત હોય છે કર્ણાન્તગત હાય છે અને ઈષર્ અરુણ હેય છે. સ્ત્રીએની નયન સુભગતા જ તેમને ઉત્કૃષ્ટ શુંગાર છે. એ વાતને સૂચિત કરવામાટે શેાભન પદ્દમ યુકતતા અને કોન્તગતત્વ વિશેષણાને જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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