________________
प्रकाशिकाटीका सू. १ नमस्कारनिक्षेपाः 'रिद्धस्थिमिय समिद्धा' इति, ऋद्धस्तिमितसमृद्धा तत्र ऋद्धा-विभव-भवनादिभिः पौरजनैश्च वृद्धिं प्राप्ता, स्तिमिता-स्वचक्रपरचक्रभयरहिता स्थिरेत्यर्थः, समृद्धा-धनधान्यादि समृद्धियुक्ता अदाचासौ स्तिमिता चासौ सगृद्धा चेति पदत्रयकर्मधारयः । 'वण्णओ' अस्याः वर्णकःवर्णनकारकः पदसमूह औपपातिकसूत्रे प्रथमसूत्रगत चम्पानगरी वर्णनवबोध्यः । 'तीसेणं मिहिलाए णयरीए बहिया' तस्याः-ऋद्धत्वादि सम्पन्नायाः खलु मिथिलाया नगर्याः बहिः-बहिः प्रदेशे, 'उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए' उत्तरपौरस्त्ये उत्तरपूर्वान्तरालरूपे दिग्भागे ईशानकोणे, 'एत्थणं' अत्र खलु 'माणिभद्दे णाम चेइए होत्था'माणिभद्रं-मणिभद्रनामकं
चैत्यं व्यन्तरायतनम् आसीत् । 'बण्णओ' वर्णकः अस्यापि वर्णनपदसमूह औपपातिकसूत्रे द्वितीयसूत्रगतपूर्णभद्रचैत्यवर्णनवद् बिज्ञेयः, 'जियसत्तूराया जितशत्रुनामा राजा आसीत् । 'धारिणी देवी' तस्य जितशत्रुराजस्य धारिणी-धारिणी नाम्नी देवी पट्टराज्ञी आसीत् । 'वण्णओ' वर्णकः-राज राज्ञीवर्णनपदसमूह औपपातिकसूत्र एकादश द्वादश सूत्रगत कूणिकराजधारिणीदेवी वर्णनवद्वोध्यः । रही-इसलिये इसके निरूपण में भूतकाल का निर्देश दोषावह नहीं है । “रिद्धत्थिामयसमिद्धा" उस समय यह नगरी ऋद्ध-विभव, भवन एवं पौर-जनों से वृद्धि को प्राप्त थी, स्तिमित-स्वचक और परचक्र के भय से रहित थी, समृद्ध धन धान्यादि रूप समृद्धि से परिपूर्ण थी “वण्णओ” इसका वर्णन कारक पदसमूह औपपातिक सूत्र में प्रथमसूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन में जैसा कहा गया है वैसा ही है "तीसेणं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीमाए एत्थ णं माणिभद्दे णाम चेइए होत्था" इस मिथिला नगरी के बाहर ईशान कोण में माणिभद्र नाम का एक व्यन्तरायतन था “वण्णओ' इसका वर्णन औपपातिक सूत्र के द्वितीयसूत्र में वर्णित पूर्णभद्र चैत्य के जैसा ही है "जियसत्तू राया धारिणी देवी वण्णओ" इस नगरी का राजा जितशत्रु था और इसकी पट्टरानी का नाम धारिणी था, इन दोनों का वर्णन औपपातिक सूत्र के ११वें और १२ वें सूत्र में वर्णित कूणिक राजा और उसकी देवी धारिणी के जैसा ही है 'तेणं कालेण तेणं समएणं सामी 'रिद्धस्थिमियसमिद्धा त समये मनरी -वि, सपन भने पनि थी वृद्धिગત હતી. સ્તિમિત-સ્વચક અને પરચકના ભયથી મુક્ત હતી. સમૃદ્ધ-ધન-ધાન્ય ३५ समृद्धिथी परि५॥ ता. "वण्णओ” मा नगरीनु न मीपाति सूत्र ना प्रथम सूत्रमा पर्शित यानगरानावन नी म ४ छे. तीसेण मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए एत्थणं माणिभद्दे णाम चेइए होत्था मा मिथिला नगरीनी महार
शान मां मधुमद्रनामनुं ४ ०य-तरायतन तु “वण्णओ" भानुं १एन मौ५. पातिक सूत्र ना मीत सूत्रमा पति पूर्णभद्र थैत्य ॥ छ “जियसत्तराया धारिणी ટેવ arશ આ નગરીનો રાજા જિતશત્રુ હતો અને તેની પટ્ટરાણી નું નામ ધારિણી હતું આ બન્નેનું વર્ણન ઔપપાતિક સૂત્રના ૧૧ અને ૧૨ સૂત્રોમાં વર્ણિત કુણિક નરેશ અને तमना हेवी धारिणी र १ छे. "तेणं कालेणं तेणं समएण सामी समोसढे" ते से
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા