SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे प्रतिच्छन्नास्तिष्ठन्ति । अत्र यावत्पदेन्-'जहा से चन्दप्पभामणिसिलाग वरसीधुवर वारुणि सुजाय पत्तपुप्फफल चोयणिज्जा ससार बहुदव्वजुत्ति संभार काल संधि आसवा महुमेरगरिट्ठाभदुद्धजाति पसन्नतल्लगसताउर खज्जूरिमुद्दियासारका विसायण सुपक्क खोयरसवर सुरा वण्णगंधरस फरिसजुत्ता बलवीरियपरिणामा मज्जविही बहुप्पगारा तहेव ते म. तंगा वि दुमगणा अणेग बहु विविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फले हिं पुण्णा वीसंदंति कुसविकुस विसुद्धरुक्खमूला जाव पत्तेहिं च पुप्फे हिं च फलेहिं च ओच्छन्नपडिच्छन्ना चिति' इति संग्राह्यम् । एतेषां छाया यथा ते चन्द्रप्रभा मणिशिलिकावरसीधुवरवारुणी सुजात पत्र पुष्पफलचोय निर्यास सार वहुद्रव्य युक्ति सम्भा' सन्धि आसवा मधुमेरकरिष्टाभा दुग्ध जाति प्रसन्ना तल्लकशतायुः खजूरी मृद्वीकासार कापिशायन सुपकक्षोदरसवरसुराः वर्णगन्धरसस्पर्शयुक्ताः बलवीर्यपरिणामाः मधविधयो बहुप्रकाराः तथैव ते मत्तङ्गा अपि दुमगणाः अनेकवहुविविधविस्रसापरिणतेन मद्यविधिना उपपेताः फलेषु पूर्णाः विष्यन्दन्ते. कुशवि कुशविशुद्ध वृक्षमूला: यावत् पत्रैश्च पुष्पैश्च फलैश्च अवच्छन्न प्रतिच्छन्नाः तिष्ठन्ति । ण्णा चिट्ठति''इस पाठ को स्पष्ट रूप से समझने के लिये यावत् पद द्वारा जो पाठ गृहीत हुआ है पहिले उसे प्रकट किया जाता है वह पाठ इस प्रकार से है-"जहा से चंदप्पभा मणि सिलाग वर सीधुवरवारुणि सुजाय पत्तपुप्फ फलचोयणिज्जा ससार बहुदव्वजुत्तिसंभार काल संधि आसवा महुमेरगरिट्ठाभदुद्धजाति पसन्न तल्लग सताउ खजुरिय मुद्दियासारका विसायण सुपक्कखोयरस वर सुरा वण्णगंधरसफरिसजुत्ता बलबोरियपरिणामा, मज्जविही बहुप्पगारा तहेव ते मत्तंगा वि दुमगणा अणेग बहु विविहवीससा पविणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा वीस दंति, कुसविकुस विसुद्ध रुक्खमूला जाय पत्तेहिं च पुप्फेहिं च फलेहिं च ओच्छन्नपडिच्छन्ना चिठंति" चन्द्रप्रभा, मणिशिलिका, उत्तममद्य एवं वरवारूणी ये सब मादक रस विशेष हैं ये सब सुपरिपाकगत पुष्पों के फलों के एवं चोय इस नामके गन्धद्रव्य विशेष के रस से बनाये जाते हैं तथा इनमें शरीर को पोषण करने बाले द्रव्यों का मेल रहता है, इसी प्रकार से अनेक प्रकार के आसव (नशा करने वाला) भी बनाये जाते हैं जो अपने अपने समय में आसवोत्पादक सीधु वरवारुणि सुजाय पत्त पुप्फफल चोयणिज्जा ससार बहुदव्वजुत्ति संभारकाल संधि आसवामहुमेरगा रिट्ठाभदुद्धजातिपसन्न तल्लग सताउखज्जुरिय मुद्दिया सारका विसायण सुपरस्त्रीय रसवर सुरा वणगंधरसफरिसजुत्ता बलवीरिय परिणापा मज्जविही बहुप्प गारा तहेव ते मत्तंगा वि दुमगणा अणेग बहुविविह वीससा परिणयाए मज्जबिहीए उववेया फलेहिं पुण्णा वीसंदंति, कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव पत्तेहिं च पुप्फेहिं च फलेहि च ओच्छन्नपडिच्छन्ना चिटुंति" यन्द्रमा भए शिक्षि उत्तमम तथा १२१२ से સર્વે માદક રસ વિશેષ છે. આ સર્વે સુપરિપાકશત પુષ્પો ફળે તેમજ ચોય નામક ગન્ધ દ્રવ્ય વિશેષના રસમાંથી બનાવવામાં આવે છે, તથા એમના માં શરીરને પુષ્ટ કરનાર દ્રવ્યોનું સમ્મિશ્રણ રહે છે. આ પ્રમાણે અનેક જાતના આસ પણ તૈયાર કરવામાં આવે છે. જે જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy