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________________ प्रकाशिका टीका सु. २० कालस्वरूपम् च सप्तदश साधिकानि उच्छ्वास निःश्वासकालः इति । अथ यादृशैरुच्छ्वास निश्वासादिभिर्मुहूर्त्तमानं भवति तदाह - 'हेट्ठस्स' इयादि 'हेवस्स' हृष्टस्य-तारुण्येन समर्थस्य 'अणवगल्लस्स' अनवग्लानस्य - ग्लानिवर्जितस्य 'णिरूव किट्ठस्स' निरूपक्लिष्टस्य-सर्वदा व्याधिरहितस्य नोरोगस्य 'जंतुणो' जन्तोः मनुष्यस्य च 'एगे उसा नीसासे' एक उच्छ्वासनिःश्वासः उच्छ्वास युक्तो निश्वासः 'एस पाणुत्ति' स एष प्राण इति प्राण इति संज्ञया 'बुच्चई' उच्यते व्यवहियते इति । १५७ तथा 'सत्त पाई से थोवे' सप्त प्राणाः स स्तोकः 'सत्त थोवाई से लवे' सप्त स्तोका सलवः 'लवानां सत्तहत्तरीए' लवानां सप्त सप्तत्या मितो यः स 'एस मुहुत्तेत्ति' एष मुहूर्त्त इति 'आहिए' आख्यातः कथितः २ । का एक उच्छवास निःश्वासरूप काल होता है । अब जिस प्रकार के उच्छ्वासनिःश्वास आदिकों से एक मुहूर्त का प्रमाण होता है वह प्रकट किया जाता है - "हेट्ठस्स अणवगल्लस्स निरुवकि स जंतुणो । एगे उसासनीसासे एस पाणुति बुच्चई " ||१|| सत्त पाई से थोवे सत्त थोवाईं से लवे, लवानां सत्तहत्तरीए एए मुहुत्तेत्ति आहिए ||२|| तिणि सहस्सा सत्त य सयाइ ं तेवत्तरिं च ऊसासा, एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहिं अनंतनाणोहिं ॥ ३ ॥ – ऐसे पुरुष का कि जो युवा होने से समर्थ हो, ग्लानि वर्जित हो, सर्वदा व्याधि से रहित हो ऐसे उस नीरोग मनुष्य का जो एक उच्छ्वासयुक्त निःश्वास है उसका नाम प्राण कहा गया है। ऐसे सात प्राणों का एक स्तोक होता है सात स्तोकों का एक लव होता है ७७ लवों का एक मुहूर्त होता हैं ३७७३ उच्छवासनिःश्वासों का एक मुहूर्त होता है । ऐसा अनन्त ज्ञान सम्पन्न श्रोजिनेन्द्र भगवानों ने कहा है “एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तासं मुहुत्ता अहोरतो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्स्खा मासो, दो मासा उऊ, तिष्णि उऊ अयणे, दो अयणा संवच्छरे " કંઈક વધારે ૧૭ ક્ષુલ્લકલવાના એક ઉચ્છ્વવાસ નિઃશ્વાસ રૂપ કાળ હોય છે. હવે જેમ ઉશ્ વાસ નિ:શ્વાસ આદિકાથી એક મુહૂત નું પ્રમાણુ હાય છે, તે પ્રકટ કરવામાં આવે છે, 'हेटुस्स अणवगल्लस्स णिरूव किट्टस्स जन्तुणे ! एगे उसासनो सासे एस पाणुत्ति वुच्चई ॥१॥ तपाई से थोवे' सत्त थोवाइ से लवे लवानां सत्तहत्तरीए एस मुहुत्तेत्ति आहिए |||२|| तिणि सहस्सा सत्त य सयाई तेंवतरि च ऊसाला एस मुहुत्तो भणिओ सब्वेहिं अणतनाणीहि ||३|| मेव। पुरुष होय लेने युवावस्था प्राप्त होय भने समर्थ होय ગ્લાનિ વર્જિત હાય, સદા વ્યાધિ વિડીન હૈાય એવા તે નિરંગ મનુષ્યને જે એક ફૂવાસ યુક્ત નિ:શ્વાસ છે તેનું નામ પ્રાણ કહેવામાં આવેલ છે. એવા સાત પ્રાણાના એક સ્તાક હાય છે. સાત સ્તાકના એક લવ હોય છે. ૭૭ લવાનુ એક મુહૂત્ત હોય છે. ૩૭૭૩ ઉચ્છ્વવાસ-નિઃશ્વાસેાનું એક મુહૂર્તો હોય છે. એવુ અનન્તજ્ઞાન सम्पन्न सर्वश्री मिनेन्द्र भगवन्ताम् छे 'एए मुहुत्तप्पमाणे णं तीस मुहुत्ता अहोरतो पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो दो मासा उऊ तिष्णि उऊ, अयणे, दो अयणा संवच्छ रे, येषा मुहूर्त्त प्रमाथी 30 मुहूर्त्तनेो मे महोरा જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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