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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ९८ अष्टादशप्राभृतम् उत्कर्षेण अर्द्धपल्योपम पञ्चभिर्वर्षशतैरभ्यधिकम् । तावदिति पूर्ववत् सूर्यविमानाधिष्ठातृणां देवीनां तत्रस्थिर्जघन्येन चतुर्भागपल्योपमं भवति उत्कर्षेण चार्द्धपल्योपमं पञ्चभिर्वर्षशतैरभ्यधिकं चेति । अथ ग्रहविमानसम्बन्धी प्रश्न:-'ता गहविमाणे णं देवाणं केवइयं कालं ठिई पपणत्ता ?,' तावत् ग्रहविमाने खलु कियन्तं कालं यावतदधिष्टातणां देवानां तत्र ग्रहविमाने किल स्थितिर्भवतीति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता जहण्णेणं चउब्भागपलियोवमं उकोसेणं पलिओम' तावत् जघन्येन-सर्वाल्पतया चतुर्भागपल्योमं है, उत्कर्षणाधिकतया चैकपल्योपमं कालं यावत् तत्र ग्रहविमाने तधिष्ठातृदेवानां स्थितिः प्रज्ञप्तेति । ततो देवीनां स्थिति विषयकः प्रश्नः 'ता गहविमाणे णं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' तावत ग्रहविमाने खलु देवीनां कियन्तं कालं याक्त ग्रहविमाने स्थितिः प्रज्ञप्तेति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता जहणणे णं चउब्भागपलियोवमं उक्कोसेणं अद्ध पलियोवमं तावत् उकोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं) सूर्य विमानाधिष्ठात्री देवियों की स्थिति जघन्य से पल्योपम का चतुर्थ भाग की होती है एवं उत्कर्ष से अर्ध पल्योपम तथा पांचसो वर्ष से कुछ अधिक काल की होती है। अब ग्रहविमान के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न पूछते हैं (ता गहविमाणे णं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) ग्रहविमन में देवों की कितने काल की स्थिति उनके अधिष्ठाता देवकी कही है ? इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी का प्रश्न सुनकर उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता जहण्णेणं चउभागपलिओवमं उक्कोसेणं पलिओवम) जघन्य से पल्योपम का चौथा भाग तथा उत्कर्ष से पल्योपम काल से कुछ अधिक काल की स्थिति उसके अधिष्ठाता देवकी कही गई है। अब देवियों की स्थिति विषयक श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछते हैं(ता गहविमाणेणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) ग्रहविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता जहण्णेणं च उभागपलिओवमं સૂર્ય વિમાનની અધિષ્ઠાત્રી દેવિયેની સ્થિતિ જઘન્યથી પલ્યોપમના ચોથા ભાગ જેટલી હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી અધ પત્યે પમ તથા પાંચ વર્ષથી કંઈ ધારે કાળની હોય છે वे विमानना समयमा श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे.-(ता गहविमाणेण देवाण केवइय काल ठिई पण्णत्ता) विमानमा हेवोनी सा नी स्थिति ही छ ? । प्रभारी श्रीगौतमस्वाभाना प्रश्नने सामान उत्तरमा श्रीभगवान् डे छ.-(ता जहण्णेणं चउभागपलिओवम उक्कोसेणे अद्धपलिओवम) धन्यथी ५८ये ५मना याथा माटी સ્થિતિ હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી અર્ધા પલ્યોપમ કાળ જેટલી સ્થિતિ કહેલ છે. હવે દેવિયેની स्थितिना समयमा श्रीगौतभस्वामी प्रश्न पूछे छे -(ता गहविमाणेण देवीण केवइय काल ठिई पण्णत्ता) अविभानमा हेवियोनी स्थिति सा अणनी ४डयामा भावी छ ? भ! શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર:
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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