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________________ सूर्यप्रशप्तिस्त्र सहस्रैरभ्यधिकम् । जघन्येन पल्योपम-, उत्कर्षेण-पल्योपम-+५०००० वर्ष । इयन्तं कालं यावत् । अथ सूर्यविमानसम्बन्धी प्रश्नः-'ता सूरविमाणेणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?, ।।' तावत् सूर्यविमाने खलु देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ताः, तावदिति प्राग्वत् त्याख्या च सुगमा, भगवानाह-'ता जहण्णेणं चउब्भागपलियोवमं उक्कोसेणं पलियोवमं वाससहस्समभहियं तावत् जघन्येन चतुर्भागपल्योपमं उत्कर्षेण पल्योपमं वर्षसहस्रमभ्यधिकं ॥ तावत् इति प्रागवत् सल्पितया स्थिति-पल्योपम-१, सर्वाधिकतया स्थितिः -पल्योपम+१००० सहस्रवर्षाधिकं । अथ देवीनां स्थितिविषयकः प्रश्न:-'ता सूरविमाणेणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !,' तावत सूर्यविमाने खलु देवीनां कियन्तं कालं यावत् तत्र स्थिति भवतीति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता जहण्णेणं चउब्भागपलियोवमं उक्कोसेणं अद्धपलियोवमं पंचहिं वाससएहि अब्भहिये तावत् जघन्येन चतुर्भागपल्योपमं चोथा भाग एवं उत्कर्ष से आधा पल्योपम (५००००) से पचास हजार वर्ष अधिक इतने काल से कुछ अधिक काल पर्यन्त की स्थिति कही है। अब सूर्य विमान विषयक प्रश्न पूछते हैं-(ता सूरविमाणे णं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) सूर्य विमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(ता जहण्णे णं चउभागपलिओवमं उक्कोसे णं पलिओवमं वाससहस्समभहियं) जघन्य से पल्योपम का चौथा भाग एवं सर्वाधिकता से एक पल्योपम-एवं एक हजार वर्ष से कुछ अधिक स्थिति होती है। अब देवियों की स्थिति के विषय में श्री गौतमस्वानी प्रश्न पूछते हैं-(ता सूरविमाणे णं देवी णं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) सूर्य विमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता जहण्णे णं चउभागपलिओवमं (૫૦૦૦૦૦ જેટલા કાળથી કંઈક અધિકકાળ પર્યનતની સ્થિતિ કહી છે. सूर्य विमानना विषयमा प्रश्न पूछे छे.-(ता सूर विमाणेण देवाण केवइय काल ठिई पण्णत्ता) सूर्य विभानमा हेवानी स्थिति सा नी ही छ ? उत्तरमा श्रीमान् हे छ. (ता जहण्णेण च उभागपलि ओवम उक्कोसेण पलिओवमवास सहस्सममहिय) જઘન્યથી પાપમને ચે ભાગ અને સર્વાધિકપણાથી એક પોપમ અર્થાત્ એકહજાર વર્ષથી કંઈક વધારે સ્થિતિ હોય છે. वियोनी स्थितिना समयमा श्रीगौतमसपाभी प्रश्न पूछे छे.-(ता सूरविमाणे न देवीण केवइय काल ठिई पण्णत्ता) सूर्य विमानमा वियोनी स्थिति सानी ही છે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને ઉત્તરમાં શ્રી ભગવાન કહે છે.-( जहण्णेण च उठभागपलिओवम उकोसेण अद्धपलिओवम पंचहि वाससएहि अब्भहिय) શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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