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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० ९८ अष्टादशप्रामृतम् ८७७ तावत् चन्द्रविमाने खलु देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति-गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता जहण्णेणं चउभागपलियोवम उक्कोसेणं पलियोवमं वाससयसहस्समभहियं तावत् जघन्येन चतुर्भागपल्योपमं उत्कर्षेण पल्योपमं वर्षशतसहस्त्रमभ्यधिकं ॥ तावदिति प्रागवत् सर्वोल्पतया एकस्यापि पल्योपमकालस्य चतुर्भागपरिमाणकालं यावत् तत्र स्थिति भवति, तथोत्कर्षेण--सर्वाधिकतया स्थित्या एकं पल्योपमं कालं वर्षशतसहस्राधिकं-लक्षवर्याधिकं पल्योपमकालं यावत् चन्द्रविमाने चन्द्रविमानाधिष्ठातृदेवानां तत्सामनिकानामगरक्षकादीनां च स्थिति भवतीति ॥ 'ता चंदविमाणेणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' तावत् चन्द्रविमाने खलु देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ।। इति प्रश्नसूत्रं पूर्ववत् ततो भगवानुत्तरयति 'ता जहण्णेणं चउभागपलियोमं उक्कोसेणं अद्धपलियोवमं पण्णासाए वास. सहस्सेहिं अमहियं' तावत् जघन्येन चतुर्भागपल्योपमं उत्कर्षेण अर्द्धपल्योपमं पश्चाशतवर्षपण्णत्ता) चंद्र विमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता जहण्णेणं च उभागपलिओवमं उकोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्स मम्भहियं) जघन्यता से एक पल्योपम काल का चतुर्भाग परिमाण काल यावत् स्थिति होती है। तथा उत्कृष्ट से माने सर्वाधिकपने से एक पल्योपम काल की अर्थात् एक लाख वर्ष से अधिक समय पर्यन्त चन्द्रविमान में चंद्र विमानाधिष्ठाता देवों की एवं उनके सानानिक अंगरक्षकादि की स्थिति होती है । पुन: श्री गौतमस्वामी पूछते हैं-(ता चंदविमाणे णं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) चंद्र विमान में देवीयों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(ता जहण्णे च उभाग पलिओवम उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं) जघन्य से पल्योपम का सालकीन था श्रीगोतमत्वामी २ प्रश्न पूछे छे.- (ता च दविमाणेण देवाण वेवइय काल ठिई पण्णत्ता) य द्रविमानमा वानी स्थिति 20 जनी ही छ ? मा प्रमाणे श्रीगौतमवाभान प्रश्नने सामनीने उत्तरमा श्रीमान् ४ छ.-(ता जहण्णे ण चऊमागपलिओवम उकोसेण पलिओवम वाससयसहस्स नभहिय) २४५-५५४ाथी से પલ્યોપમ કાળના ચોથા ભાગ પ્રમાણ કાળની યાવત્ સ્થિતિ હોય છે. તથા ઉત્કૃષ્ટથી એટલેકે સર્વાધિકપણાથી એક પોપમ કાળની અર્થાત એક લાખ વર્ષથી કંઈક વધારે સમય ચંદ્રવિમાનમાં ચંદ્રવિમાનધિષ્ઠાતા દેવેની અને તેમના સામાનિક અંગરક્ષકે विगेरेनी स्थिति हाय छे. शथी श्रीगौतमस्वाभी पूछे छे.-(ता चंदविमाणेण देवीण फेवइय काल ठिई पण्णत्ता) यद्रविमान वानी ३८६॥ ४ानी स्थिति ४ी छ ? उत्तरमा श्रीमान् ४ छ.-(ता जहण्णेण च भागपलिऑपम उक्कोसेणं अद्वपलि भोवम पणासाप वास सहस्सेहिं अनहिय) ४धन्यथा पक्ष्या५मनाया। मा भने १४थी मा५क्ष्य५मथी શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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