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________________ ७८४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे अत उपपद्यते यत् एकत्रिंशता भागै न्युन मेकम मण्डलं नवभिः शतैः पञ्चदशोतरैः प्रविभक्तमिति । अथ सूर्य विषयं प्रश्नसूत्रमाह-'ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं सूरे कइ मंडलाई चरइ ?' तावत् एकैकेनाहोरात्रेण सूर्यः कति मण्डलानि चरतीति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह-'ता एगं अद्धमंडलं चरइ' तावत् एकमर्द्धमण्डलं चरति । अत्रैकस्मिन् युगे त्रिंशदधिकान्यष्टादशशतान्यर्द्धमण्डलानां भवन्ति, तावन्त एवाहोरात्राश्च भवन्ति, तेनात्र हरांशयोस्तुल्यत्वाल्लब्धमेकमर्द्धमण्डल १० मिति । __अथ नक्षत्रविषयं प्रश्नसूत्रमाह-'ता एगमेगेणं अहोरत्तणं णक्खत्ते कइ मंडलाइं चरइ ?' तावत एकैकेनाहोरात्रेणं नक्षत्रं कति मण्डलानि चातीति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह'ता एगं अद्धमंडलं चरइ दोहिं भागेहिं अहियं सतहिं बत्तीसेहि सरहिं अद्धमंडलं छेत्ता' इसका रूपान्तर करने से इस प्रकार (१-३५) होते हैं। इस से यह फलित होता है कि इकतीस भागन्यून एक अर्द्ध मंडल नव सो पंद्रह से विभक्त किया हवा होता है। ____अब सूर्य विषयक प्रश्न सूत्र कहते हैं-(ता एगमेगेणं अहोरत्तणं सूरे कइ मंडलाई चरइ) एक एक अहोरात्र में सूर्य कितने मंडलों में गमन करता है? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता एगं अद्धमंडलं चरइ) एक अर्द्धमंडल में जाता है। यहां पर एक युग में अठारह सो तीस अर्द्धमंडल होते हैं, अहोरात्र भी उतने ही होते हैं अतः यहां हरांश तुल्य होने से एक अर्द्धमंडल लब्ध होता है । अब नक्षत्र विषयक प्रश्न सूत्र कहते हैं-(ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं णखत्ते कह मंडलाइं चरइ) एक एक अहोरात्र में नक्षत्र कितने मंडल में गमन करता है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् રૂપાન્તર કરવાથી આ રીતે થાય છે. (૧-૨) આનાથી એ ફલિત થાય છે કે એકત્રીસ ભાગ ન્યૂન એક અર્ધમંડળ નવપંદરથી વિભક્ત કરેલ હોય છે. वे सुय सधी प्रश्नसूत्र ४ामा मावे छ.-(ता एगमेगेण अहोरत्तेण सूरे कइ मडलाई चरइ) मे २रामा सूर्य 32॥ भोमा गमन ४२ छ ? २॥ प्रमाणे श्रीगौतमस्वामीना प्रश्नने सामान उत्तरमा श्रीमान् ४ छे.-(ता एग अद्धमंडल चरइ) से अभ37भा Mय छे. सही या मे युगमा मासात्रीस म भणे! થાય છે અહોરાત્ર પણ એટલા જ હોય છે. તેથી અહી હરાંશ સરખાજ હોવાથી એક अभय थाय छे. १८३) वे नक्षत्र समधी प्रश्नसूत्र ४पामा मावे छ.-(ता एगमेगेण अहोरत्तेण णक्खत्ते कह मंडलाई चरइ) मे थे पारामा नक्षत्र डेटा भी मन ४२ छ ? २॥ प्रभारी श्रीगीतभस्वाभीना प्रश्नने समाजाने उत्तरमा श्रीमान् ४३ छ,-(ता एग अद्व. श्री सुर्यप्रति सूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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