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________________ ७८३ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० ८६ पञ्चदशप्राभृतम भवतीति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह-ता एगं अद्धमंडलं चरइ एकतीसाए भागेहि अणं णवहिं पण्णरसेहिं सएहिं अद्धमंडलं छेत्ता' नाव देकमर्द्धमण्डलं चरति, एकत्रिंशताभागै न्युनमेकमर्द्धमण्डलं चरति (१-५) तथा च पञ्चदशोत्तरै नैवभिः शतैर मण्डलं छित्वा । अत्रानुपातो यथा-यदि त्रिंशदधिकैरष्टादशभिः शतैः रात्रिन्दिवानां अष्टपष्टयधिकानि सप्तदशशतानि अर्द्ध मण्डलानां चन्द्रस्य लभ्यन्ते तदैकेन रात्रिन्दिधेन किं स्यादिति राशित्रयस्थापना-06-15 अान्त्येन राशिना एकक लक्षणेन मध्यमो राशि गुणितोऽपि तथैव तिष्ठति, आधेन राशिना भागहरणं, किन्तु भाज्य राशेस्तोसत्वाद् भागफलं नायाति । ततो भाज्यहारौ द्वाभ्यामपवर्तितौ १०६० : २६ (१-६५) उपरितनो राशि श्चतुराशीत्यधिकान्यष्टौ शतानि, अधस्तनश्च पञ्चदशोतराणि नवशतानि अस्यैव रूपान्तरकरणेन (१-६८) प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता एगं अद्धमंडलं चरइ एकतीसाए भागेहिं ऊणं णवहिं पण्णरसेहि सएहिं अद्धमंडलं छेत्ता) एक अहोरात्र में चंद्र नव सो पंद्रह से अर्द्धमंडल को विभक्त करके इकतीस भागन्यून एक अर्द्धमंडल में गमन करता है (१-५) यहां पर इस प्रकार अनुपात होता है-यदि अठारहसो तीस अहोरात्र से सत्रहसो अडसठ चंद्र का अर्द्धमंडल लभ्य होते हैं, तो एक अहोरात्र से कितने मंडल लब्ध हो सकते हैंइसको समझने के लिए यहां पर तीन राशि की स्थापना की जाती है जैसे की-१७६८+१८६. यहां पर अंतिम एक रूपराशि से मध्य की राशि का गुणा करे तो भी उसी प्रकार रहता है अतः गुणा करके प्रथम राशि से भाग करना चाहिये परंतु भाज्य राशि अल्प होने से भागफल आता नहीं है अतः भाज्य हार राशि को दो से अपवर्तित करे-१७६० - २६६=(१-७५) इस प्रकार ऊपर की राशि आठ सो चौरासी तथा नीचे वाली राशि नव सो पंद्रह होते हैं । ચંદ્ર કેટલા મંડળ માં ગમન કરે છે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને उत्तरमा श्रीभगवान् ४७ छ-(ता एग अद्धमतुल चरइ पकतीसार भागेहि ऊण णवहिं पण्णरसेहि सएहिं अद्धमंडल छेत्ता) से मात्रमा य नसो ५४२थी 24 भने વિભક્ત કરીને એકત્રીસ ભાગ ન્યૂન એક અર્ધમંડળમાં ગમન કરે છે. (૧=૫) અહીંયાં આ રીતે અનુપાત થાય છે--જે અઢારસોત્રીસ અહોરાત્રથી સત્તર અડસઠ ચંદ્રના અર્ધ મંડળ લભ્ય થાય તે એક અરાત્રથી કેટલા મંડળ લભ્ય થઈ શકે? આને સમજવા भाटे डी ए राशिनी स्थापना ४२वी. भले १४+१=१४३४ी मतिम मे४३५ રાશિથી મધ્યની શશિનો ગુણાકાર કરે તે પણ એજ રીતે રહે છે. તેથી ગુણાકાર કરીને પ્રથમ રાશિથી ભાગ કરે જોઈએ પણ ભાજ્ય રાશિ ઓછી હોવાથી ભાગ ફળ આવતું नथी तथा माय २ २.शिने थी पतित ४२१॥ १४४२४८५=(१- २३प) मा પ્રમાણે ઉપરની સંખ્યા આઠસોર્યાશી તથા નીચેની સંખ્યા નવસો પંદર થાય છે. આનું શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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