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________________ ७४३ ८० सर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ८३ पञ्चदशप्राभृतम् =५९ । अत स्तत्स्वरूपमीह-(५९+32)=143329। अत्र (छेदघ्नरूपेषु लवाधनर्ण) मित्यादिना सप्तषष्टयधिकानि त्रीणिशतानि, एकोनषष्टया संगुण्य सप्तोत्तररात्रि त्रीणिशतानि तत्र संयोज्य जातानि एकविंशतिः सहस्त्राणि नवशतानि षष्टयधिकानि, सप्तषष्टयधिकशतत्रयभागानां-१४६० अतोऽनुपातो यथा-यद्येभिः मुहूर्तगत सप्तपष्टयधिकशतत्रयभागानां एकविंशत्या सहस्रैर्नवभिः शतैः षष्टयधिकैयदि एकं शतसहस्रं अष्टानवतिः शतानि मण्डलभागानां लभ्यन्ते तदैकेन मुहूर्तेन किं स्यादिति राशित्रयस्थापना - १९६० =१०५८००x१४it +३६७-०२१६६० = १८३५ अत्रापि (छेदघ्नरूपेषु लवाधनर्ण) मित्यादिना छेदराशेश्छेदं परिवर्त्य तेन च मध्यमोराशि गुणितः तदा जाता श्चतस्रः कोटयो द्वेलक्षे पण्णवतिः सहस्राणि पटू शतानि च-४०२९६६०० एतेषामाद्येन राशिना एकविंशतिः सहस्राणि नवमुहूर्त का प्रक्षेप करने से उनसठ मुहूर्त का होते हैं-१+३०=३०३०+२९=५९ । इस प्रकार यहां (५९ +)PE +३०७=15) यहां (छेदघ्नरूपेषु लवाधनर्ण) इत्यादि प्रकार से तीन सो सडसठ को उनसठ से गुणा करके उसमें तीन सो सात को मिलावे तो तान सो साठ भाग वाले इक्कीस हजार नव सो साठ भाग होते हैं-१७, अतः इस प्रकार अनुपात होता है-यदि मुहर्तगत तीन सो सडसठ भागों का इक्कीस हजार नव सो साठ भागों से जो एक लाख नव हजार आठ सो मंडल भाग लभ्य होते हैं तो एक मुहर्त से कितना मंडल भाग लभ्य हो सकते हैं ? इसको समझने के लिये तीन राशि की स्थापना करें-२०१८००१०२८००+३६७-४२१९६:०१८३५ यहां पर भी (छेदघ्नरूपेषु लवाधनर्णः) इत्यादि से छेद्रराशि से छेद को परिवर्तित करके उससे मध्य की राशि को गुणित करे तो चार करोड दो लाख छियाणवे हजार छह सो होते हैं ४०२९६६००। इनको आद्यराशि जो इक्कीस हजार नव सो साठ है उससे भाग १+30=30130+२८:५८ ॥ शत मी (५८+३१७)=२३६५३+3०७=२F° मही (छेदन्ध रूपेषु लवाधनर्ण) त्या २थी से ससइन। म साथी शु।२ ४शन તેમાં ત્રણસો સાત મેળવે તે ત્રણસેસડસઠ ભાગવાળા એકવીસ હજાર નવસોસાઈઠ ભાગ થાય છે. ૧૯૬૦ તેથી આ પ્રમાણે અનુપાત થાય છે કે-જે મુહૂર્તગત ત્રણસેસડસઠ ભાગના એકવીસ હજાર નવસે સાઈઠ ભાગથી જે એક લાખ નવ હજાર આઠસે મંડળ ભાગ લભ્ય થાય તે એક મુહૂર્તથી કેટલા ભાગ લભ્ય થઈ શકે ? આ સમજવા માટે त्रण शशिनी स्थापना ४२वी. १३१४+१=३१८:०४१ +3९७-४१३४६०° 0=1८3५ सही पा (छेदन्ध रूपेषु लबाधनण) त्या प्राथी छेशिथी छेड्ने परिवति त शन તેનાથી મધ્યની રાશિને ગુણાકાર કરે તે ચારકરોડ બે લાખ છનનુહજાર છસો થાય છે, उE७ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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