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________________ - - सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ८३ पञ्चदशप्राभृतम् ग्रहनक्षत्रतारकाणां पञ्चानां मध्ये गतिक्रमविचारे चन्द्रेभ्यः-चन्द्रगतिक्षेत्रप्रमाणेभ्यः सर्याः शीघ्रगतयः-सूर्यगतिक्षेत्राण्यधिकानि सर्वत्राप्येवमेव क्रमेणोहनीयाः, कालगणनाक्रमे गतीनां प्रयोजकत्वात् कालस्य निरवधिकत्वाच्च सर्वत्र चन्द्रादिषु बहुवचनप्रयोग इत्यपि भावनीयः। सूर्येभ्यो ग्रहगणाः शीघ्रगतयः ग्रहगणेभ्योऽपि नक्षत्राणि शीघ्रगतीनि, नक्षत्रेभ्योऽपि तारा: शीघ्रगतयः प्रतिपादितः । अथैतान् संग्राहयति-'सव्वप्पगई चंदा सव्वसिग्धगई तारा' सर्वाल्पगतयश्चन्द्राः सर्वशीघ्रतयस्ताराः ॥ एवमे तेषां पूर्वोदितगतिकमाणां पञ्चानां चन्द्र-सूर्यग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपाणां मध्ये सर्वाल्पगतयश्चन्द्राः सन्ति-सर्वापेक्षया अल्पगतय श्चन्द्रमसः सन्ति, (समीपगतत्वात) तथा च सर्वेभ्यः शीघ्रगतयः-अधिकक्षेत्रचारिण्यस्तारास्सन्ति । (दूरस्थितत्वात् )। अथैतस्यैवार्थस्य सविशेषपरिज्ञानार्थ पुनः प्रश्नयति गौतमः-'ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं चंदे केवतियाई भागसताई गच्छइ ?,' तावत् एकैकेन मुहूर्तेण चन्द्रः कियन्ति के विचार में चंद्र की गतिक्षेत्र प्रमाण से सूर्य का गतिक्षेत्र अधिक होते हैं । सर्वत्र इसी प्रकार के कम से विचार कर लेवें । काल के गणना क्रम में गति प्रयोजक होने से तथा काल निरवधि होने से चंद्रादि सब में बहुवचन का प्रयोग होता है ऐसा भावित कर लेवें । सूर्य से ग्रहगण शीघ्र गतिवाले होते हैं। ग्रहगण से भी नक्षत्र शीघ्र गतिवाले होते हैं, नक्षत्रों से भी ताराएं शीघ्र गतिवाले होते हैं ऐसा प्रतिपादित किया गया है। अब इस विषय को संग्रह करके कहते हैं-(सब्वप्पगई चंदा, सव्वसिग्घगई तारा) इस प्रकार पूर्व कथित गति क्रमवाले चंद्र-सूर्य-ग्रह, नक्षत्र, एवं तारा ये पांचों में सर्व से समीप होने से सब से अल्प गतिवाला चंद्र है । तथा सब से दूर होने से सब से शीघ्र गतिवाले अर्थात् अधिक क्षेत्र चारि तारा गण होते हैं । अब इसी विषय को सविशेष जानने के लिये श्री गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-(ता एगमेगेणं સૂર્યના ગતિ ક્ષેત્ર અધિક હોય છે. બધેજ આ પ્રકારના ક્રમથી વિચાર કરી લે. ગણના કાળની કમથી ગતિ પ્રાજક હેવાથી તથા કાલ નિરવધિ હોવાથી ચંદ્રાદિ બધામાં બહુવચનને પ્રવેગ થાય છે તેમ સમજી લેવું સૂર્ય કરતાં રહે શીઘગતિવાળા હોય છે. ગ્રહોથી નક્ષત્રે શીધ્ર ગતિવાળા હોય છે. નક્ષત્રોથી પણ તારાઓ શીધ્રગતિવાળા હોય છે. तम प्रतिपादित ४२८ छे. हवे 20 विषयी संघड ४ीने वामां आवे छे-(सव्वप्पगई चंदा, सव्वसिग्धगई तारा) मा शत पडेट ४९ गात भाणा यद्र-सूर्य-अड, नक्षत्र અને તારા એ પચેમાં સૌથી નજીક હોવાથી સૌથી અલપગતિવાળે ચંદ્ર છે તથા સૌથી દૂર હોવાથી બધાથી શીઘ્રગતિવાળા અર્થાત્ અધિકક્ષેત્ર ચારી તારાગણ હોય છે. હવે આ विषयने विशेष प्राथी ला भाटे श्रीगौतमस्वामी पुन: प्रश्न ४२ छ-(ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं चंदे केवतियाई भागसताई गच्छइ) गमन रत। यद्र मे मे मुतभा भ3 શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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