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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १४ प्रथमप्राभृते तृतीयं प्राभृतप्राभृतम् ७५ भारहे चैव सूरिए एए चैव सूरिए' तत्र खल इमौ द्वौ सूर्यो प्रज्ञप्ती, तद्यथा - भारते चैव सूर्यः ऐते चैव सूर्यः अस्मिन् मन्यजम्बूद्वीपे खलु निश्वयेन द्वौं सूर्यो प्रज्ञप्तौ -कथितौ, तद्यथा - भारतीयश्चैव सूर्यः ऐवतीयश्चैव सूर्यः भारतक्षेत्रस्य प्रकाशकत्वात् भारतीय सूर्यो निर्धारित तथा ऐarक्षेत्रस्य प्रकाशकत्वात् ऐवतीय सूर्यो द्वितीयः, इत्थं द्वौ सूर्यो प्रज्ञप्तौ । 'ता एवं दुवे सूरिए पत्तेयं पत्तेयं तीसाए तीमाए मुहुत्तेहिं एगमेगं अद्धमंडलं चरंति' तत्र खलु तौ द्वौ सू प्रत्येकं प्रत्येकं त्रिंशता त्रिंशता मुहूर्तेरेकैकमर्द्धमण्डलं चरतः । तत्रसूर्यद्वयमध्ये खलु इति निश्रयेन एतौ द्वौ सूर्यो- भारतीयैरवतीयाँ सूर्यो प्रत्येकं प्रत्येकं-पृथक पृथक स्वस्वात्मना स्वतन्त्रेण त्रिंशता त्रिंशता मुहूर्त्ते रेकैकमर्द्धमण्डलं चरत:चारं कुरुतः | अर्थात् एष्टिघटिकात्मकं नाक्षत्रमहोरात्रं भवति, तत्र घटीद्वयात्मकस्य कालस्य मुहूर्त्तसज्ञा कृता वर्त्तते, चतुरशीत्यधिकानि शतसंख्यकानि सूर्यस्य मण्डलानि सन्ति, तेषु मण्डलेषु चरन्तौ सूर्यो, एकैकः सूर्यः नक्षत्रषष्टिघटिकात्मकेन कालेनैकैकम इस प्रकार से भगवान् श्री गौतमस्वामी के प्रश्न करने पर भगवान् इस प्रश्न के प्रत्युत्तर देते हुवे कहते हैं (तत्थ खलु इमे दुवे सरिया पन्नता, तं जहा भारहेचैव सूरिए एरवए चैव सूरिए) इस मध्य जम्बूद्वीप में निश्चित रूप से दो सूर्य कहे हैं जो इस प्रकार से हैं भारतीय सूर्य एवं ऐरवतीय सूर्य भातक्षेत्र को प्रकाश करने वाला होने से भारतीय सूर्य कहा जाता है तथा ऐरवत क्षेत्र को प्रकाश करनेवाला होने से ऐरवतीय सूर्य कहा जाता है, इस प्रकार से दो सूर्य कहे हैं (ता एएणं दुबे सरिए पत्तेयं पत्तेयं तीसाए तोसाए मुहुत्ते हिं एगमेगं अद्भूमंडलं चरंति) उन दो सूर्य माने भारतीय तथा ऐरवतीय उन दो सूर्य प्रत्येक अलग अलग अपने अपने स्वातंत्र्य रूप से तीस तीस मुहूर्त प्रमाण से एक एक अर्द्ध मंडल में संचरण करता है । अर्थात् साठ घटिका का एक नाक्षत्र अहोरात्र होता है। दो घटिका संबंधी काल की मुहूर्त संज्ञा की है । एकसो चौरासी संख्यक सूर्य के मंडल होते हैं । उन मंडलों में संचरण भगवान् गौतमस्वाभीना या प्रश्ननो उत्तर आयतां उडे छे - (तत्थ खलु इमे दुवे सूरिया पन्नत्ता तं जहा भारहे चेत्र सूरिए एवए चैव सूरिए) मा मध्यन द्वीपसां निश्चित પણાથી ભારતીય સૂ અને અરવતીય સૂર્ય એમ એ સૂર્યાં કહ્યા છે, ભારતક્ષેત્રને પ્રકાશ આપનાર ભારતીય સૂ અને અરવત ક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે તે અરવતીય એ રીતના એ सूर्यो होय छे, (ता पुणं दुवे सूरिए पत्तेनं पत्तेयं तीसाए मुहुत्तेहिं एगमेगं अद्धमंडलं चरंति) એ એ સૂર્પી દરેક સૂર્ય અલગ અલગ પાતપેાતાના સ્વતંત્ર પણાથી ત્રીસ ત્રીસ મુહૂત પ્રમાણથી એક એક અદ્ભુ મડળમાં સારણ કરે છે. અર્થાત્ સાઈઠ ઘડિને એક નાક્ષત્ર અહોરાત્ર થાય છે. એ ઘડિ જેટલા કાળની મુહૂત સંજ્ઞા છે. એકસા ચાર્યાશી સૂના મડળ હાય છે, એ મ`ડળામાં સંચરણ કરતા એ સૂ` પૈકી એક એક સૂર્ય નક્ષત્ર સ ંબંધી શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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