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________________ ७७६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे 1 विंशतिः षट्षष्टिश्च चूर्णिकाभागा एकस्य द्वाषष्टिभागस्य सप्तषष्टिभागाः शोधनीयाः । 'एयाई सोहइत्ता' एतानि - अनन्तरोदितानि शोधनकानि यथायोगं शोधयित्वा यच्छेषमवतिष्ठते तदेव भवति नक्षत्रम्, एतस्मिथ खलु नक्षत्रे करोति सूर्येण सममुपपत्तिरमावास्यामिति । तदेवममावास्याविषयचन्द्रयोगपरिज्ञानार्थं क्रियाकरणमुक्कं सम्प्रति पौर्णमासी विषयकचन्द्रयोगपरिज्ञानार्थं करणमाह-' इच्छा पुनिमगुणिओ' इत्यादि यः पूर्वममावास्या चन्द्रनक्षेत्रपरिज्ञानार्थं निर्धारितराशिरुक्तः सएवात्रापि पौर्णमासी नक्षत्रचन्द्रयोग नक्षत्र परिज्ञानविधौ ईप्सितपौर्णमासी गुणिते अर्थात् यां पौर्णमासीं ज्ञातुमिच्छति तत्संख्यया गुणनप्रक्रिया विधेयेति, गुणिते च सति यद् भवति तदेव पूर्वीकं शोधनकं कर्त्तव्यं केवलमभिजिदादिकं तु पुनर्वसुप्रभृतिकं नक्षत्रमिति, शुद्धे च शोधनके यच्छेषमवतिष्ठते तद् भवेशोधन में अभिजित् नक्षत्र संबंधी मुहूर्त का बासठिया चोवीस भाग तथा छियासठ चूर्णिका भाग तथा एक बासठिया भाग का सडसठिया भाग शोधित करें । (एयाई सोहइत्ता) पूर्व कथित शोधनक नक्षत्रों का यथायोग शोधन कर के जो शेष रहते हैं वही नक्षत्र होता है। इन नक्षत्रों में सूर्य के साथ अमावास्या की उपपत्ति करते हैं । इस प्रकार अमावास्या विषयक चन्द्र के योग का ज्ञान होने के लिये क्रिया करण का कथन किया, अब पूर्णमासी विषयक चन्द्र योग का ज्ञान के लिये करण का कथन करते हैं- (इच्छा पुन्निम गुणिओ) इत्यादि पहले जो अमावास्या में चन्द्रनक्षत्र को जानने के लिये निश्चित गणितराशि कही, वहीं यहां पर पौर्णमासी में नक्षत्र एवं चन्द्र योग नक्षत्रों के जानने के लिये इच्छित पूर्णिमा को गुणित करे अर्थात् जो पूर्णिमा को जानना चाहे उतनी संख्या से गुणन प्रक्रिया करे गुणा करने से जो फल आता है वही पूर्वोक्त अभिजिदादि का शोधनक कह लेवें । पुनर्वसु आदि नक्षत्र का नहीं । शोधनक शुद्ध होने पर जो शेष रहे वह नक्षत्र पूर्णिमा युक्त બધા શેાધનક અભિજીતૂ નક્ષત્ર સંબંધી મુહૂતના ખાસિયા ચાવીસ ભાગના સઠિયા लागने शोधित श्वो (एयाई सोहइत्ता) पूर्वउथित शोधनः नक्षत्रोनुं यथायोग शोधन કરીને જે શેષ રહે છે. એજ નક્ષત્ર होय छे. આ નક્ષત્રામાં સૂ ની સાથે અમાસની ઉપપત્તિ કરે છે. એ રીતે અમાસ સબંધી ચંદ્રના યાગનુ સાન થવા માટે ક્રિયા કરણનું કથન કર્યું. હવે પુનમના સબંધમાં ચદ્રના યાગના ज्ञान भटेना डरनु अथन ९रे छे- (इच्छा पुन्निमगुणिओ) हत्याहि परेशां ने अभावाસ્યામાં ચંદ્રનક્ષત્રને જાણવા માટે નિશ્ચિત્ ગણિત પ્રકાર કહ્યો એજ અહીંયાં પૂર્ણિમામાં નક્ષત્ર અને ચ ંદ્રયાગના નક્ષત્રને જાણવા માટે ઇચ્છિત પૂર્ણિમાના ગુણાકાર કરવા અર્થાત્ જે પૂર્ણિમાને જાણવી હાય એટલી સંખ્યાથી ગુણુન પ્રક્રિયા કરવી ગુણાકાર કરવાથી જે ફળ આવે એજ પૂર્વોક્ત અભિજીત વિગેરેનુ શાધનક જાણવુ. પુન`સુ વિગેરે નક્ષત્રાનુ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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