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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३६ दशमप्राभृतस्य चतुर्थ प्राभृतप्राभृतम् ७३१ योगमनुपरिवर्तयति, योगमनुपरिवर्त्य सायं चन्द्रं पुष्यस्य समर्पयति । अत्रोक्तान्यपि सर्वाणि पदानि पूर्वमनेकधा व्याख्यातान्येव । इदं च पुष्यनक्षत्रं सायं समये दिवसावसानरूपे चन्द्रेण सह योगमधिगच्छति तेन पश्चाद्भागमवसेयं, तथा चाह-'पुस्सो जहा धणिहा' पुष्पो यथा धनिष्ठा ॥ पुष्पः-पुष्पनक्षत्रं यथा-येन प्रकारेण पूर्व धनिष्ठा नक्षत्रमभिभावितं तथैव इदमपि पुष्पनक्षत्रमभिभावनीयम् । तद्यथा-'ता पुस्से खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइ मुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सदि जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता तो पच्छा अवरं दिवसं, एवं खलु पुस्से णक्खत्ते एग राई एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं असिलेसाए समप्पेइ' तावत् पुष्पं खलु नक्षत्रं पश्चाद्भागं समक्षेत्रं त्रिंशन्मुहूर्त तत् प्रथमतया सायं सुनक्षत्र दो दिवस एवं एकरात्री चंद्र के साथ योग करता है, योग करके योग को अनुपरिवर्तित करता है योग का अनुपरिवर्तन करके सायं काल चन्द्र को पुष्यनक्षत्र को समर्पित करता है । यहां पर सूत्रोक्त सभी पदों की व्याख्या पहले करही दी है। यह पुष्यनक्षत्र दिवसावसानरूप सायंकाल चन्द्र के साथ योग प्राप्त करता है अतः यह नक्षत्र पश्चात्भाग कहा है। तथा कहा भी है-(पुस्सो जहा धणिट्ठा) पुष्यनक्षत्र जिस प्रकार धनिष्ठा नक्षत्रका कथन किया है उसी प्रकार से इस को भी भावित करलेवें । जो इस प्रकार से है (ता पुस्से खलु णक्खत्ते पच्छाभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता तो पच्छा अवरं दिवसं, एवं खलु पुस्से णक्खत्ते एगं राइं एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरिदृइ, जोयं अणुपरियटित्ता सायं चंदं असिलेसाए समप्पेइ) पुष्यनक्षत्र पश्चाभाग संमक्षेत्र तीसमुहूर्तकालव्यापी सायं काल से प्रथम चन्द्र તે પછી એક રાત અને બીજો એક દિવસ આ રીતે પુનર્વસુ નક્ષત્ર બે દિવસ અને એક રાત ચંદ્રની સાથે વેગ કરે છે. એગ કરીને વેગનું અનુપરિવર્તન કરે છે, યુગનું અનુ પરિવર્તન કરીને સાંજના સમયે ચંદ્રને પુષ્ય નક્ષત્રને સમર્પિત કરે છે. અહીંયાં સૂત્રમાં કહેલ બધા પદોની વ્યાખ્યા પહેલાં કહી જ દીધેલ છે. આ પુષ્ય નક્ષત્ર દિવસના અન્તમાં એટલે કે સાંજના સમયે ચંદ્રની સાથે રોગ પ્રાપ્ત કરે છે. તેથી આ નક્ષત્ર પશ્ચાત્માગ डेस छ. तथा ४थु ५४ छ, (पुस्सो जहा धणिद्वा) पु०५ नक्षत्र शत पनिष्ठा नक्षत्रनु ४थन ४२ , ते४ प्रमाणे या सम देने 21 प्रमाणे छ,-(पुस्से खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्तें तीसईमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोय जोएइ, जोय जोइता तओ पच्छा अवर दिवसं, एवं खलु पुस्से णक्खत्ते एग राई एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोय जोएइ, जोय जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, जोय अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं असिलेसाए समप्पेइ) पुष्य नक्षत्र पश्चाइमा समक्षेत्र त्रीस मुडूत प्रमाण यापी airt समये શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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