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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३६ दशमप्राभृतस्य चतुर्थ प्राभृतप्राभृतम् अत्र सायमिति प्रायः परिस्फुटनक्षत्रमण्डलालोकसमये अतएवेदं नक्षत्रं नक्तंभागं भवतीत्यवसेयमिति ॥ 'अदा जहा सयभिसया' आर्द्रा यथा शतभिषा ॥-आर्द्रा खलु नक्षत्रं तथैवानुभावनीयं यथा प्रागशतभिषा नक्षत्रमनुभावितं वर्तते, तद्यथा 'ता अदा खलु णक्खत्ते णत्तं भागे अबक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, णो लभेइ अवरं दिवस, एवं खलु अद्दा णक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं पुणव्वसूर्ण समप्पेइ' तावत् आर्द्रा खलु नक्षत्रं नक्तं भागम् अपार्द्धक्षेत्रं पञ्चदशमुहूर्त तत्प्रथमतया सायं चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति न लभते, अपरं दिवसम् , एवं खलु आर्द्रानक्षत्रं एकां रात्रिं चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, योगं युक्त्वा योगम् अनुपरिवर्तयति, योगमनुपरिवयं प्रातश्चन्द्रं पुनर्वसोः की व्याख्या पहले करदी गई है अतः पुनः इस को व्याख्यात नहीं करते, यहां पर सायं कहने से प्रायः स्पष्टरूप से नक्षत्रमंडलके अवलोकन समय में ऐसा समजें, अतः यह नक्षत्र नक्तंभाग माने रात्री में भोग कालका आरंभ करनेवाला होता है ऐसा समजें (अहा जहा सयभिसया) आर्द्रा नक्षत्र, का कथन जिस प्रकार पहले शतभिषक नक्षत्र का कथन किया है उसी प्रकार समजलेवें। जो इस प्रकार से हैं-(ता अद्दा खलु णवत्ते णतंभागे अवड़क्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, णो लभेइ अवरं दिवसं एवं खलु अद्दाणक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोएत्ता जोयं अणुपरियइ, जोयं अणुपरियहत्ता पाओचंदं पुणव्वसूर्ण समप्पेइ) आानक्षत्र नक्तं भाग अपार्धक्षेत्र पंद्रहमुहर्त प्रमाणवाला सायंकाल में प्रथम योग का आरंभ करके चन्द्र के साथ योग करता है, इसको दूसरा दिवस का योग नहीं होता है। इस प्रकार आानक्षत्र एकरात्रिचन्द्र के साथ योग करता है इस प्रकार योग करके योगका अनुपरिवर्तन करता है, योग का अनुपरिवर्तन करके प्रातः વાઈ ગઈ છે. તેથી ફરીથી અહીંયાં વ્યાખ્યાત કરતા નથી, અહીંયાં સાંજ કહેવાથી પ્રાય स्पष्ट पाथी नक्षत्रमना मन समयमा तेम सभा (अदा जहा सयभिसंया) આદ્ર નક્ષત્રનું કથન જે પ્રમાણે પહેલાં શતભિષકુ નક્ષત્રનું કથન કરેલ છે, એ જ પ્રમાણે समन्यु.२प्रमाणे छे.-(ता अदा खलु णक्ख ते णत्तंभागे अड्ढक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ णो लभेइ अवरं दिवसं एवं खलु अदाणक्खत्ते एगं राइं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ जोयं जोएत्ता, जोयं अणुररियट्टइ, जोय अगुपरियट्टित्ता पाओ चंद पुणव्वसूणं समप्पेइ) 0 नक्षत्र नतम सपा क्षेत्र ५४२ भुत प्रमाण युत सiral સમયે પ્રથમ યેગનો આરંભ કરીને ચંદ્રની સાથે ભેગ કરે છે, અને બીજા દિવસને યોગ થતું નથી. આ પ્રમાણે આદ્રા નક્ષત્ર એક રાત ચંદ્રની સાથે એગ કરે છે. આ રીતે ગ કરીને ભેગનું અનુપરિવર્તન કરે છે. વેગનું અનુપરિવર્તન કરીને પ્રભાતકાળમાં શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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