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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३६ दशमप्राभृतस्य चतुर्थ प्राभृतप्राभृतम् ७२७ -एवं खलु रोहिणी नक्षत्रं प्राग्यथोत्तरभाद्रपदा उक्ता वर्तते तथैव वक्तव्या सा चैवम्-'ता रोहिणी खलु णक्खत्ते उभयभागे दिवङ्कखेत्ते पणतालीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पादो चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, अवरं च राई तओ पच्छा अवरं दिवसं, एवं खलु रोहिणी णक्खत्ते दो दिवसे एगं च राइं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियट्टित्ता सायं चंद मिगसिरस्स, समप्पेइ' तावत् रोहिणी खलु नक्षत्रम् उभयभागं द्वयर्द्ध क्षेत्रं पञ्चचत्वारिंशन्मुहूर्त तत् प्रथमतया प्रातश्चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, अपरां च रात्रिं, ततः पश्चाद् अपरं च दिवसम् , एवं खलु रोहिणी नक्षत्रं द्वौ दिवसौ एकां च रात्रि चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, योगं युक्त्वा योगमनुपरिवर्त्तयति, योगमनुपरिवर्त्य सायं चन्द्र मृगशिरसः समपयति, सर्वमिदं व्याख्यातमेव किमत्र लेखबाहुल्येनेति ।। 'मगसिरं जहा जहा उत्तराभवया) इस प्रकार रोहिणी नक्षत्र के विषयमें प्रथम जिस प्रकार उत्तराभद्रपदानक्षत्र के विषयमें कथन किया है उसी प्रकार कहना चाहिये (ता रोहिणी खलु णक्खत्ते उभयभागे दिवड्डक्खेत्ते पणतालीसइमुहुत्ते तप्पढमाए पाओ चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, अवरंच राई तओ पच्छ। अवरं दिवस एवं खलु रोहिणी णक्खत्ते दो दिवसे एगं राइंच चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता, जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियहित्ता सायं चंदं मिगसिरस्स समप्पेइ) रोहिणी नक्षत्र उभयभाग व्यर्ध क्षेत्र एवं पैंतालीस मुहर्तात्मक होने से तत्प्रथम अर्थात् उसी समय चन्द्र के साथ योग काल का आरम्भ होनेसे प्रातः काल में चन्द्र के साथ योग करता है तथा दसरी रात्रि एवं दूसरा दिवस पर्यन्त रहता है इस प्रकार रोहिणी नक्षत्र दो दिवस तथा एक रात्रि पर्यन्त चन्द्र के साथ योग करता है, इस प्रकार योग कर के योग का अनुपरिवर्तन करता है अनुपरिवर्तन कर के सांज के समय में चन्द्र को मृगशिरनक्षत्र को समर्पित करता है । यह सप व्याख्यात पूर्व है अतः (रोहिणी जहाँ उत्तराभवया) २॥ शते शहिणी नक्षत्रना विषयमा परेमा शत उत्त। भाद्रपह। नक्षत्रना समयमा ४थन ४२६ छे, प्रमाणे समन्यु. (ता रोहिणी खल णक्खत्ते उभयभागे दिवड्ढक्खेत्त पणतालीसइमुहुत्ते तापढमयाए पायो च देण सद्धिं जोयं जोएइ अवर च राइं तओ पच्छा अवर दिवसं एवं खलु रोहिणी णक्खत्त दो दिवसे एगं च राई च देण सद्धिं जोय जोएइ, जोय जोइत्ता, जोय अणुपरियट्टइ, जोय अणुपरियट्टित्ता सायं चंद मिगसिरस्स समप्पेइ) डि नक्षत्र Gauan क्षेत्र भने पिस्ता. લીસ મુહૂર્ત પ્રમાણવાળું હોવાથી તથમ અર્થાત્ એ સમયે પ્રથમ ચંદ્રની સાથે રોગ કાળને આરંભ થવાથી પ્રભાતકાળમાં ચંદ્રની સાથે વેગ કરે છે. તથા તે પછીની એક રાત અને બીજા દિવસ પર્યન્ત ચંદ્રની સાથે એગ કરે છે. આ પ્રમાણે રોહિણી નક્ષત્ર બે દિવસ તથા એક રાત પર્યત ચંદ્રની સાથે વેગ કરે છે. આ રીતે યોગ કરીને વેગનું અનુપરિવર્તન કરે છે, અનુપરિવર્તન કરીને સાંજના સમયે ચંદ્રને મૃગશીર્ષ નક્ષત્રને સમ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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