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________________ ६६४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे यस्य आवलिकानिपात:-पक्तिभूतक्रमेण सम्पातो यः स त्वया आख्यातः-प्रतिपादितः, इति वदेत्-स्वशिष्येभ्य इत्थमेव कथयेदिति भगवता उपदिष्टोऽहमिति गौतमः कथयति । ततो भगवानाह-'तत्थ खलु इमाओ पंचपडिवत्तिओ पष्णताओ' तत्र खल इमाः पञ्च प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः ॥-तत्र-तस्मिन् नक्षत्रसमुदायस्यावलिकानिपातविषये-नक्षत्रगणनाक्रमे खलु इति निश्चितम् इमा:-वक्ष्यमाणप्रकाराः पश्चप्रतिपत्तय-परमतप्रतिपादक भूताः-परतीथिकाभ्युपगमस्वरूपाः प्रज्ञप्ता:-ग्रन्थान्तरेषु प्रतिपादितास्सन्ति । तद्यथा-'तत्थेगे एवमाहंसु-ता सव्वेसिणं णक्खत्ता कत्तियादिया भरणिपज्जवसाणा पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु से जो निपात वह आवलिका निपात कहा जाता है-वह आवलिका निपात आपके मत से किस प्रकार से होता है सो कहिए इसके उत्तर भगवान कहते हैं कि चन्द्र सूर्यादि ग्रहों के साथ नक्षत्र समुदाय का पंक्तिरूप से निपात होता मैंने कहा है ऐसा शिष्यों को कहे । इस प्रकार से महावीर प्रभु श्री के कहने से श्री गीतमस्वामी फिर से प्रभु से पूछते हैं (ता कहं ते जोगेति वत्थुस्स आवलिया णिवाते आहितेति वएज्जा) हे भगवन् किस प्रकार से आपने योग के विषय में आपके मत से नक्षत्रसमुदाय का आवलिकानिपात पंक्तिरूप से संपात कहा है ? माने प्रतिपादित किया है ऐसा आपने कहा है सो किस प्रकार से कहा है सो कहिये इस प्रकार श्री गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् कहते हैं-(तत्थ खलु इमाओ पंचपडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) नक्षत्र समुदाय की आवलिका निपात के विषय में माने नक्षत्र गणना क्रम में ये वक्ष्यमाण प्रकार की पांच प्रतिपत्तियां माने परमतप्रतिपादक मान्यताएं कही गई है अर्थात् ग्रन्थान्तरों में प्रतिपादित की है जो इस प्रकार से है-(तत्थेगे एवमासु-ता सव्वेवि ण णक्खत्ता कत्तियादिया भरणी पन्जबપ્રશ્નના ઉત્તરમાં ભગવાન કહે છે કે-ચંદ્ર સૂર્ય વિગેરે ગ્રહોની સાથે નક્ષત્ર સમુદાયને પંક્તિરૂપે નિપાત થતો મેં કહ્યું છે તેમ પોતાના શિષ્યોને કહેવું. આ રીતે મહાવીર प्रभुश्रीन उपाधी श्रीगोतमस्वामी शथी प्रभुश्रीन पछे छे-(ता कहते जोगेति वत्थुस्स आवलिया णिपाते आहितेति वएज्जा) हे भगवन याचे योगना विषयमा नक्षत्र समुदायको આવલિકાનિપાત અર્થાત્ પંક્તિરૂપથી સંપાત આ૫ના મતથી કંઈ રીતે કહેલ છે? અર્થાત્ આવલિકાનિપાત કેવી રીતે પ્રતિપાદિત કરેલ છે? તે આપ મને કહે આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમ स्वामीना पूछवाथी भगवान उत्तरमा ४ छ -'तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) नक्षत्र समुदायनी मावलि नियातना समयमा सटसे नक्षत्र मना ક્રમથી આ વયમાણ પ્રકારની પાંચ પ્રતિપત્તી એટલે કે પરમત પ્રતિપાદક માન્યતાઓ पामा माहा छ, अर्थात् मन्य अथामा प्रतिपाहित ४२ छ ते 21 प्रमाणे छ (तत्थेगे एवमाहंसु-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता कत्तियादिया भरणी पज्जवसाणा पण्णत्ता एगे एवमासु) શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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