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________________ ६३३ 3 सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३१ नवमं प्राभृतम् किंचि पोरिसिच्छायं णिवत्तेइ २' एके पुनरेवाहु-स्तावत् अस्ति खलु स दिवसो यस्मिन् दिवसे सूर्यो न किञ्चित् पौरुषी छायां निवर्त्तयति ।।-एके पुन द्वितीया एवमाहुर्यत् तावदिति पूर्ववत्-अस्ति स दिवसो यस्मिन् दिवसे चरन् सूर्यः उद्गमनमुहर्ते अस्तमनमुहर्ने च द्विपौरुषी-पुरुषद्वयप्रमाणां छायां निवर्तयति-समुत्पादयति, अत्रापि पुरुषग्रहणस्योपलक्षणत्वात् सर्वस्यापि प्रकाश्यस्य वस्तुनो द्विगुणां छायां निवर्तयतीत्यर्थः। तथा चास्ति स दिवसो यस्मिन दिवसे भ्रमन् सूर्य उद्गमनमुहर्ते अस्तमनमुहत्तं च न काश्चिदपि पौरुषी छायां निवर्तयति ॥ सम्प्रत्येते एव मते भावयति-तत्थ जे ते एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि दिवसंसि सूरिए चउपोरिसीय छायं णिवत्तेइ, अत्थि णं से दिवसे जंसि दिवसंसि सूरिए दो पोरिसीयं छायं णिवत्तेइ, ते एवमासु तत्र येते एवमाहु-स्तावत् अस्ति खल स दिवसो यस्मिन् दिवसे सूर्यश्चतुः पौरुषी छायां निवर्तयति, अस्ति खलु स दिवसो यस्मिन् दिवसे (एगे पुण एवमासु-ता अत्थि णं से दिवसे सिणं दिवसंसि सूरिए दपोरिसिच्छायं णिवत्तेई, अस्थि णं से दिवसे जसिणं दिवसंसि सरिए णो किंचि पोरिसिच्छायं णिवत्तेइ) ऐसा दिवस होता है की जिस दिन में संचार करता हुवा सूर्य उदय के समय में एवं अस्तमन समय में दो पुरुष प्रमाण वाली छाया को उत्पन्न करते हैं। तथा ऐसा भी दिवस होता है की जिस दिवस में भ्रमण करता हुवा सूर्य उदय के समय में एवं अस्त के समय में कोई भी प्रकार की पौरुषी छाया को उत्पादित नहीं करते हैं। अब इसी मत की भावना दिखलाते हैं (तत्थ जे ते एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि दिवसंसि मूरिए चउ पोरिसियं छायं निवत्तेइ, अस्थि णं से दिवसे जंसि दिवसंसि सूरिए दो पोरिसीयं छायं णिवत्तेइ, ते एचमाहंसु) उन दो तीर्थान्तरीयों में जो तीर्थान्तरीय इस प्रकार से कहता है कि ऐसा दिवस होता है कि जिस दिन में सूर्य चार पुरुष प्रमाण वाली छाया उत्पादित करता है, तथा (एगे पुण एवमाहंसु-ता अस्थि ां से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसिच्छायं णिवत्तेइ, अस्थि णं से दिवसे जंसि गं दिवसंसि सूरिए णो किचि पोरिसिच्छायं णिवत्तेइ) मेवा દિવસ હોય છે કે જે દિવસે સંચાર કરતો સૂર્ય ઉદયના સમયમાં અને અસ્તમન સમયમાં બે પુરૂષ પ્રમાણવાળી છાયાને ઉત્પન્ન કરે છે, તથા એ પણ દિવસ હોય છે કે-જે દિવસે ભ્રમણ કરતે સૂર્ય ઉદયના સમયમાં અને અસ્ત થવાના સમયમાં કોઈ પણ પ્રમાણની પિૌરૂષી છાયાને ઉત્પન્ન કરતો નથી. हवे - भत विषेनी भावना तावामा माये .-(तत्य जे ते एबमासु-ता अस्थि णं से दिवसे सि दिवसंसि सूरिए चउ पोरिसीय छायं निवत्ते३, अस्थि णं से दिवसे जंसि दिवसंसि सूरिए दो पारिसीयं छायं णिवत्तेइ, ते एवमासु) से ये तीर्थान्तीयामा જે તીર્થાન્તરીય આ પ્રમાણે કહે છે કે-એ દિવસ હોય છે કે જે દિવસમાં સૂર્ય ચાર શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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