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________________ ६०६ सूर्यप्रप्तिसूत्रे बद्धास्सन्तश्चरन्ति, तत्रोदयविधि दिनरात्रिविभागश्च क्षेत्रविभागेन पूर्ववदेव परिभावनीयः, न्यूनाधिको नास्ति, केवलमत्र जम्बूद्वीपे द्वीपे इति स्थाने अभ्यन्तरपुष्कराधैं इति योजनीयः ॥ लवणसमुद्रस्य भावनावसरे 'लवणसमुद्दे' इति वक्तव्यम् । धातकीखण्डस्य भावनायां 'धातकीखण्डे' इति वक्तव्यम् ॥ किन्तु धातकीखण्डे द्वादश सूर्यास्सन्ति, 'धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य' इति प्रमाणदर्शनात् । तत्र पद सूर्याः दक्षिणदिक-चारिभिः सूर्यैः जम्बूद्वीपगतलवणसमुद्रगतैः सह समश्रेण्या प्रतिबद्धास्सन्तश्चरन्ति, षट् च सूर्याः उत्तरदिक चारिभिः सूर्यैः सह जम्बूद्वीपगतलवणसमुद्रगतः सहश्रेण्या प्रतिबद्धाः सन्तश्चरन्तिः । तत्रापि क्षेत्रविभागेनैव दिवसरात्रि विभागो भवति, सचोक्तः प्राक ॥ सर्वत्रापि भावना विषयस्तु जम्बूद्वीपगतभावनाविषयवदेव भावनीयो भवति, तच्च तावत् यावत् उत्समें संचरण करने वाले सूर्य के साथ समत्रेणी से प्रतिबद्ध होकर संचार करते हैं। वहां पर उदय विधि एवं दिवसरात्रि का विभाग क्षेत्रविभाग के कथनानुसार पूर्व के कथनानुसार भाक्ति करलेवें। उन से न्यूनाधिक नहीं है। केवल जम्बूद्वीप के स्थान में आभ्यंतरपुष्कराध इस प्रकार योजना कर कह लेवें। ___ लवणसमुद्र की भावना करते समय (लवणसमुद्दे) इस प्रकार कहें तथा धातकी खंड के कथनावसर में (धातकी खंडे) इस प्रकार से कहें। परंतु धातकी खंड में बारह सूर्य होते हैं कारण की (धायइसंडे दीवे बारसचंदा य सूरा य) इस प्रकार से आगमप्रमाण कहा है । उन बारह सूर्य में छह सूर्य दक्षिण दिशा में संचार करने वाले जम्बूद्वीप में रहे हवे एवं लवणसमुद्र में रहे हुवे सूर्यो के साथ समश्रेणी से प्रतिबद्ध होकर संचार करते हैं, तथा छह सूर्य उत्तर दिशा में संचार करनेवाले जम्बूद्वीपगत एवं लवण समुद्र गत सूर्य के साथ समत्रेणी से प्रतिबद्ध होकर संचार करते हैं। वहां पर भी क्षेत्र विभाग से रात्रिदिवस का विभाग होता है। वह विभाग का कथन पहले निर्दिष्ट कर कह दिया है। एवं सर्वत्र जम्बूद्वीप में कथित भावना के समान भावना સાથે સમશ્રેણીથી પ્રતિબદ્ધ થઈને સંચરણ કરે છે, ત્યાં ઉદયવિધિ અને દિવસ રાત્રિના વિભાગ, ક્ષેત્ર વિભાગના કથન પ્રમાણે પહેલાના કથન પ્રમાણે સમજી લેવું. તેનાથી ન્યૂનાધિક કંઈ જ નથી, કેવળ જબુદ્ધીપના સ્થળે અત્યંતરપુષ્કરાઈ એ રીતે પેજના કરી લેવી. सणसमुद्रनी भावना ४२ती मते (लवणसमुद्दे) मा प्रमाणे पु. तथा घाती मना ४थन समये (धातकीखंडे) से प्रमाणे ४३, पतु धात्री उमा भा२ सू हाय छ, अरण (धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरिया) २मा प्रमाणे यामनु प्रमाण छे ये બાર સૂર્યોમાં છે સૂર્ય દક્ષિણ દિશામાં સંચાર કરીને જંબુદ્વીપમાં રહેલા અને લવણ સમુદ્રમાં રહેલા સૂર્યોની સાથે સમશ્રેણીથી પ્રતિબદ્ધ થઈને સંચાર કરે છે, ત્યાં પણ ક્ષેત્ર વિભાગથી રાત દિવસને વિભાગ થાય છે, તે વિભાગનું કથન પહેલાં કહેવામાં આવી શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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