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________________ ५८८ सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्रे दशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेक पञ्चदशमुहर्त्ता रात्रि र्भवति || ' जया चउदसदिवसे भवतया सोलसमुहुत्ता राई भवइ' यदा चतुर्दशमुहूर्ती दिवसो भवति तदा षोडशमुहूर्त्ता रात्रि भवति 'जया चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तथा सातिरेग सोलसमुहुत्ता राई भव' यदा चतुर्दशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेक पोडशमुहूर्त्ता रात्रि भवति || ' जया तेरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया सत्तरसमुत्ता राई भवइ' यदा त्रयोदशमुहूर्ती दिवसो भवति तदा सप्तदशमुहूर्त्ता रात्रि भवति || ' जया तेरसमुहूर्त्ताणंतरे दिवसे भवइ तया सातिरेग सत्तरसमुहूत्ता राई भवइ' यदा त्रयोदशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेक सप्तदशमुहूर्त्ता राति भवति || ' जहण्णए दुबालसमुहुत्ते दिवसे भवइ उक्कोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवइ' जघन्यो द्वादशमुहूर्त्ती दिवसो भवति उत्कर्षिका अष्टादशमुहूर्त्ता सातिरेग पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ' जब पंद्रह मुहर्त्तानंतर का दिवस होता है तब कुछ अधिक पंद्रह मुहूर्त की रात्रि होती है। (जया चउद्दसमुहुत्ते दिवसे भव, तया सोलसमुहत्ता राई भवइ) जब चौदह मुहूर्त का दिवस होता है तब सोलह मुहूर्त की रात्रि होती है । (जया चउद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया सातिरेग सोलसमुहुत्ता राई भवइ) जब चौदह मुहूर्तानंतर दिवस होता है तब कुछ अधिक सोलह मुहूर्त की रात्री होती है (जया तेरस मुहुत्ते दिवसे भवइ तथा सत्तरस मुहुत्ता राई भवइ) जब तेरह मुहूर्त का दिवस होता है तब सत्रह मुहूर्त की रात्री होती है, (जया तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया सातिरेगसत्तर समुहुत्ता राई भवइ) जब तेरह मुहूर्तानंतर का दिवस होता है तब सातिरेक सत्रह मुहूर्त की रात्री होती है । (जहण्णए दुबालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ) जघन्य बारहमुहूर्तका दिवस होता है तब उत्कृष्टा अठारह मुहूर्त की रात्री होती है ( एवं होय हे त्यारे पंढर भुहूर्तनी रात्री होय छे. ( जया पंण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तथा सातिरेग पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे पं४२ मुहूर्तानांतरनो दिवस होय ત્યારે ४६४४ वधारे पंढर भुहूर्तनी रात्री होया छे. (जया चरद्दसमुहुत्ते दिवसे तथा सोलसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे यह मुहूर्त नो दिवस होय हे त्यारे सोण मुहूर्तनी रात्री डोय छे. तथा (जया चउदस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तथा सातिरेग सोलसमुहुत्ता राई भवइ) જ્યારે ચૌદ મુહૂર્તાન તરના દિવસ હાય છે ત્યારે કઈંક અધિક સેાળ મુહૂત'ની રાત્રી હાય छे. (जया तेरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया सत्तरसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे तेर मुहूर्त ना द्विवस होय छे त्यारे सत्तर भुहूर्तनी रात्री होय छ ( जया तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तथा सातिरेग सत्तरसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे तेर मुहूर्तानंतरनो द्विवस होय छे त्यारे सातिरे! अर्थात् ४६६ वधारे सत्तर मुहूर्तनी रात्री होय . ( जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ ) धन्य मार मुहूर्त नो हिवस होय छे શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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