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________________ ५८७ सूर्यतिप्रकाशिका टीका सू० २९ अष्टमं प्राभृतम् परिसमाप्तिं यावदिति || मूलसूत्राणि यथा - 'सत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहुत्ता राइ' यदा सप्तदशमुहूर्त्ती दिवसस्तदा त्रयोदशमुहूर्त्ता रात्रिः ॥ 'सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं सातिरेगतेरसमुहुत्ता राई भवइ' यदा सप्तदशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेकत्रयोदशमुहूर्त्ता रात्रि भवति || 'सोलसमुहुत्ते दिवसे भवs चोदसमुहुत्ता राई भवइ, सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं सातिरेग चोदसमुहुत्ता राई भवइ' यदा पोडशमुहूर्त्तो दिवसो भवति तदा चतुर्दशमुहूर्त्ता रात्रि भवति यदा पोडशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेक चतुर्दशमुहूर्त्ता रात्रि भवति || ' जया पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तथा पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ' यदा पञ्चदशमुहूर्ती दिवसो भवति तदा पञ्चदशमुहूर्त्ता रात्रि भवति ॥ 'जया पण्णरसमुहूत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया सातिरेगपण्णरसमुहूत्ता राई भवइ' यदा पश्चबारहमुहूर्त की परिसमाप्ति पर्यन्त भावित करलेवें, मूल सूत्रपाठ इस प्रकार से है - ( सत्तरसमुह दिवसे तेरसमुहुत्ता राई) जब सत्रह मुहूर्त का दिवस होता है तब तेरह मुहूर्त की रात्री होती है । ( सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं सातिरेगतेरसमुहुत्ताणं राई भवइ) जब सत्रह मुहूर्तानंतर का दिवस होता है तब सातिरेक कुछ अधिक तेरह मुहूर्त को रात्री होती है । (सोलसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चोहसमुहुत्ता राई भवइ, सोलसमुत्ताणंतरे दिवसे भवइ; तया णं सातिरेगचोद्दसमुहुत्ता राई भवर) जब सोलह मुहूर्त का दिवस होता है तब चौदह मुहूर्त की रात्री होती है तथा जब सोलह मुहूर्तानंतर का दिवस होता है तब सातिरेक माने कुछ अधिक चौदह मुहूर्त की रात्री होती है । (जया णं पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ) जब पंद्रह मुहूर्त का दिवस होता है तब पंद्रह मुहूर्त की रात्री होती है । (जया पंदरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया પ્રમાણના દિવસ વગેરે · પ્રતિપાદક સૂત્રના આલાપક પણ ખાર મુહૂર્તીની સમાપ્તિ પર્યંન્ત लाषित उरी समक सेवा. भूण सूत्रपाठ आ प्रमाणे अडेस छे - ( सत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरस मुहुत्ता राई) न्यारे सत्तर भुङ्क्तने। हिवस होय छेत्यारे तेर मुहूर्तनी रात्री होय छे. (सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे तेरसमुहुत्ता राई ) न्यारे सत्तर मुहूर्त थी ॐ न्यून प्रभाणुना हिवस होय, त्यारे तेर भुहूर्त'नी रात्री होय छे. ( सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं सातिरेग तेरस मुहुत्ता राई भवइ) न्यारे सत्तर भुहूर्तानंतरनो दिवस होय छे. त्यारे सातिरेऽ अर्थात् ॐ िवधारे तेर भुहूर्तनी रात्री होय छे, (सोलस मुहुत्ते दिवसे भवइ, चोदसमुहुत्ता राई भवइ, सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे चोदसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे सोज मुहूर्त नो हिवस હાય છે ત્યારે ચૌદ મુહૂત ની રાત્રી હોય છે, તથા જ્યારે સાળ મુહૂર્તાનતરના દિવસ होय छे, त्यारे सातिरे भेटले ४६६ वधारे यौह मुहूर्तनी रात्री होय छे. (जया णं पन्नरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे पंढर भुहूर्त ना हिवस શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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