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________________ सूर्यशतिप्रकाशिका टीका सू० २९ अष्टमं प्राभृतम् दिवसो वक्तव्यः । न परिपूर्णाष्टादशमुहूतौ दिवसो न च परिपूर्ण सप्तदशमुहूर्तों न च परिपूर्ण षोडशमुहत्तों दिवसो भवति इति द्वादशमुहत्तैपरिमाणं यावन्नेतव्यमिति, एतेषां मतेन हि कदाचिदपि परिपूर्णमुहर्त्तप्रमाणो दिवसो न भवति,। यतो हि सर्वत्रानन्तरशब्दप्रयोगो दृश्यते । अथ द्वादशमुहूर्तानन्तर सूत्रमुपदर्शयति-'ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड़े वारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड़े वि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड़े बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड़े वि बारसमुहुत्तागंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपञ्चत्थिमेणं णो सदा पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, णो सदा पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ' तावद् यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणाः द्वादशमुहूर्तानन्तरो दिवसो भवति, तदा खलु उत्तराऽपि द्वादशमुहूर्त्तानन्तरो दिवसो भवति, यदा खलु उत्तरार्द्ध द्वादशमुहूर्तानन्तरो दिवसो का दिवस कहलेवें, परिपूर्ण अठारह मुहर्तका दिवस नहीं होता है अथवा परिपूर्ण सत्रह मुहर्तका दिवस भी नहीं होता है, एवं परिपूर्ण सोलहमुहूर्त का भी दिवस नहीं होता इस प्रकार बारह मुहूर्त प्रमाण वाला दिवस पर्यन्त कथन करलेवें, इस मतान्तरवादी के मत से कभी भी परिपूर्ण मुहर्त्तात्मक दिवस नहीं होता है, कारण की सर्वत्र अनन्तर शब्द का प्रयोग होने से कुछ न्यून ऐसा ही उल्लेख होता है। अब बारहमुहूर्तानन्तर सूत्र का कथन करते हैं (ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड़े बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरढे वि बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ जया णं उत्तरडूढे बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड़े वि बारसमुहत्ताणंतरे दिवस भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं णो सदा पन्नरसमुहुत्ते दिवसे भयइ, णो सदा पण्णरसमुहत्ता राई भवइ) जम्बूद्वीप नाम के द्वीप के दक्षिणार्द्ध में जब बारह मुहूर्तानन्तर का दिवस होता है तब उत्तरार्ध में भी बारह मुहूर्तानन्तरका હેત નથી. અથવા પૂરેપૂરા સોળ મુહૂર્તને પણ દિવસ હોતું નથી. આ રીતે બાર મુહૂર્ત પ્રમાણવાળા દિવસના કથન સુધી કથન કરી લેવું. આ મતાન્તરવાદીના મતથી કયારેય પરિપૂર્ણ મુહૂર્તવાળો દિવસ હોતો નથી, કારણ કે સર્વત્ર અનંતર શબ્દ પ્રયોગ કરેલ છે. તેથી કંઈક ન્યુન એ પ્રમાણે જ સમજવાનું છે. वे मार भुतान त२ सूत्रनु थन ४२वामां आवे छे.-(ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरेड्ढे वि बारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ दाहिणड्ढे वि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं णो सदा पण्णरसमुहुने दिवसे भवइ, णो सदा पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ) दी५ नामना दीपना क्षियममा न्यारे બાર મુહૂર્તાનંતરને દિવસ હોય છે, ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ બાર મુહૂર્તાનંતરને શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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