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________________ सूर्यप्रप्तिसूत्र यन्ति, तद्यथा-तावदिति पूर्ववत यदा-यस्मिन् समये खलु इति निश्चितम् अस्मिन् जम्बू द्वीपे द्वीपे दक्षिणार्द्ध-दक्षिणदिगविभागार्दै अष्टादशमुहूर्त्तप्रमाणो दिवसो भवति, तदातस्मिन्नेव समये उत्तरार्द्धऽपि-उत्तरदिगविभागार्दैऽपि अष्टादशमुहर्तप्रमाणो दिवसो भवति, एवमत्र दक्षिणार्द्धनियमेनोत्तरार्द्धनियमः प्रतिपादितः, सम्प्रति उत्तरार्द्धनियमेन दक्षिणाद्धनियममाह-'ता जया णं उत्तरड़े अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड़े पि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ' तावद् यदा खलु उत्तरार्द्ध अष्टादशमुहूत्तों दिवसो भवति तदा खलु दक्षिणाऽपि अष्टादशमुहत्तौ दिवसो भवति ।।-तावदिति प्रागवत् यदा खलु उत्तरार्दु-जम्बूद्वीपस्योत्तरविभागाः अष्टादशमुहूर्तप्रमाणो दिवसो भवति, तदैव जम्बूद्वीपस्य दक्षिणविभागार्द्धऽपि अष्टादशमुहूत्तौ दिवसो भवति । पुनस्तदेव ह्रासक्रमेण प्रतिपादयति'ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्डे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरडेवि सत्तरसअठारह मुहूर्त का दिवस होता है। अर्थात् उन तीन मतवादीयों में पहला तीर्थान्तरीय वक्ष्यमाण प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता हुवा कहता है कि-जिस समय इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध माने दक्षिण दिग्विभाग के अर्द्ध भाग में अठारह मुहर्त प्रमाण वाला दिवस होता है, उसी समय उत्तरार्द्ध माने उत्तर दिशा के अर्द्ध भाग में भी अठारह मुहर्त प्रमाण वाला दिवस होता है। इस प्रकार यहां पर दक्षिणार्द्ध के नियम से उत्तरार्द्ध का नियम प्रतिपादित किया है। अब उत्तरार्द्ध के नियम से दक्षिणाई का नियम कहते हैं-(ता जया णं उत्तरड़े अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणडे वि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) जिस समय उत्तरार्द्ध में माने जम्बूद्वीप के उत्तर विभाग के अर्द्ध भाग में अठारहमुहते प्रमाण का दिवस होता है, उसी समय जम्बूद्वीप के दक्षिणविभाग के अद्ध भाग में भी अठारह मुहूर्त प्रमाण वाला दिवस होता है । अब उनका ह्रास माने न्यूनता के क्रम से प्रतिपादन करते हुवे कहते हैं-(ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड़े सत्तरसમતાન્તરવાદીમાં પહેલે તીર્થાન્તરીય આ કથ્યમાન પ્રકારથી પિતાનો મત પ્રગટ કરતાં કહે છે કે જ્યારે આ જંબૂદ્વીપમાંના દક્ષિણાર્ધમાં એટલે કે દક્ષિણ દિગ્વિભાગના અધ ભાગમાં અઢાર મુહૂર્ત પ્રમાણનો દિવસ હોય છે ત્યારે ઉત્તરાર્ધ એટલે કે ઉત્તર દિશાના અર્ધા ભાગમાં પણ અઢાર મુહૂર્ત પ્રમાણને દિવસ હોય છે. આ રીતે અહીંયાં દક્ષિણાર્ધના નિયમથી ઉત્તરાર્ધનો નિયમ પ્રતિપાદિત કરેલ છે. હવે ઉત્તરાર્ધના નિયમથી દક્ષિણાર્ધના नियमनु ४थन ४२ छ, (ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे वि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) न्यारे उत्तराध भी मेट दीपना उत्तर भागना અર્ધભાગમાં અઢાર મુહૂર્ત પ્રમાણને દિવસ હોય છે ત્યારે જે બૂદ્વીપના દક્ષિણ અર્ધભાગમાં પણ અઢાર મુહૂર્તને દિવસ હોય છે. હવે તેને હાસ એટલે કે ન્યૂનતાના કમથી પ્રતિ. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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