SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २९ अष्टमं प्राभृतम् ५६३ आख्याता-कथिता इति वदेत्-विस्तृतरूपेण मां बोधयेत् , एवमुक्ते गौतमे भगववान् महावीरस्वामी एतद्विषये यावत्यः प्रतिपत्तयः तावतीः उपदर्शयति-तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमास्तिस्रः प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः॥-तत्रतस्या मुदयसंस्थितिविषये तिस्रः प्रतिपत्तयः मतान्तररूपा:-परतीथिकाभ्युपगमरूपाः प्रज्ञप्ता:-प्रतिपादिताः सन्ति । तद्यथा-'तत्थ एगे एवमासु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड़े वि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ' तत्र एके एवमाहु-स्तावद् यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणाः अष्टादशमुहूत्तों दिवसो भवति तदा खलु उत्तरार्द्धऽपि अष्टादशमुहत्तों दिवसो भवति ॥ तत्र-तेषां त्रयाणां मतान्तरवादीनां परतीथिकानां मध्ये एके-प्रथमाः तीर्थान्तरीया एवं-वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमाहुः-कथकरते हुवे कहते है की हे भगवन् किस प्रकार से या किस प्रकार की युक्ति से सूर्य की उदयसंस्थिति माने सूर्य के प्रकाश की क्षेत्रसंस्थिति आपने कही है ? सो कहिये माने विस्तारपूर्वक मुझे बोधित करें इस प्रकार से श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न करने पर भगवान् महावीरस्वामी इस विषय में जितनी परमतवादियों की प्रतिपत्तियां माने अन्यमतावलम्बीयों की मान्यताएं हैं वे दिखलाते हुवे कहते हैं-(तत्थ खलु इमाओ तिषिण पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ) इस विषय में ये तीन प्रतिपत्तियां कही गई हैं-अर्थात् सूर्य की उदकसंस्थिति के विषय में अन्यमतान्तररूप तीन प्रतिपत्तियां प्रतिपादित की गई है जो इस प्रकार है-(तत्थ एगे एवमाहंसु ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्डे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्डे वि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) उन मतान्तरवादीयों में कोई एक इस प्रकार से कहता है कि-जब जम्बूद्वीप नाम के द्वीप के दक्षिणार्द्ध में अठारहमुहूर्त का दिवस होता है, तब उत्तरार्द्ध में भी હે ભગવાન કયા પ્રકારથી અથવા કેવા પ્રકારની યુક્તિથી સૂર્યની ઉદયસંસ્થિતિ એટલે કે સૂર્યના પ્રકાશન ક્ષેત્રસંરિથતિ આપે કહેલ છે? તે આપ કહો, એટલે કે વિસ્તારપૂર્વક આ વિષય આપ સમજાવે. આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીએ પ્રશ્ન પૂછવાથી ભગવાન્ મહાવીરસ્વામી આ વિષયમાં પરમતવાદિયેની જેટલી પ્રતિપત્તિ એટલે કે अन्य भतावसम्मायनी मान्यतामा छे ते मतपतi छ (तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) २विषयमा त्रशु प्रतिपत्तियो वामां आवे छे. अर्थात् સૂર્યની ઉદયસંસ્થિતિના વિષયમાં અન્ય મતાન્તર રૂપ ત્રણ પ્રતિપત્તી પ્રતિપાદિત કરેલ છે २ . प्रमाणे छे-(तत्थ एगे एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) से भतान्तवाहियामा है એક એવી રીતે કહે છે કે-જ્યારે જંબુદ્વીપને દક્ષિણાર્ધમાં અઢાર મુહૂર્તને દિવસ થાય છે. ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ અઢાર મુહૂર્તને દિવસ થાય છે. અર્થાત્ એ ત્રણ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy