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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २९ अष्टमं प्राभृतम् ५६५ मुहुत्ते दिवसे भव' तावत् यदा खल जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणा सप्तदशमुहूर्त्ता दिवसो भवति तदा खल उत्तरार्द्धेऽपि सप्तदशमुहूर्ती दिवसो भवति || - तावदिति प्राग्वत् यदाखलु इति निश्चितं जम्बूद्वीपस्य दक्षिणार्थे सप्तदशमुहूर्त्त प्रमाणो दिवसो भवति तस्मिन्नेव समये उत्तरार्द्धेऽपि सप्तदशमुहूर्त्त प्रमाणो दिवसो भवति । एवं दक्षिणार्द्धनियमेनोक्त्वा पुनरुत्तरार्द्धनियमेनाह - 'ता- जया णं उत्तरडे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तथा णं दाहिणड्ढे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ' तावद् यदा खलु उत्तरार्द्ध सप्तदशमुहूर्त्ती दिवसो भवति तदा खलु दक्षिणार्द्धेऽपि सप्तदशमुहूर्त्ती दिवसो भवति । तावदिति प्राग्वत् यदा खलु उत्तरार्द्धेजम्बूद्वीपस्योत्तर विभागादें सप्तदशमुहूर्त्त प्रमाणो दिवसो भवति, तदैव दक्षिणविभागार्डेSपि मुहूर्त्त प्रमाणात्मको दिवसो भवति || ' एवं परिहावेयव्वं' एवं परिहातव्यम् ॥ एवं पूर्वोक्तप्रकारेण एकैकमुहूर्तहान्या परिहातव्यं क्रमेण हानि विधेया । परिहानिमेव क्रमेण दर्शयति- 'सोलसमुहुते दिवसे भवइ, पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चउदसमुहुत्ते दिवसे मुहुत्ते दिवसे भवइ तथा णं उत्तरडेवि सत्तर समुहुत्ते दिवसे भवइ) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में सतरह मुहूर्त प्रमाणवाला दिवस होता है, उसी समय उत्तरार्द्ध में भी सत्रह मुहूर्त प्रमाण वाला दिवस होता है, इस प्रकार । दक्षिगाई का नियमानुसार कथन कहकर के उत्तरार्द्ध के नियमानुसार कहते हैं(ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तथा णं दाहिणड्डे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवह) जब उत्तरार्द्ध में माने जम्बूद्वीप के उत्तर दिशा के अर्द्ध भाग में सत्रह मुहूर्त प्रमाण का दिवस होता है, उस समय दक्षिण दिशा के अर्द्ध भाग में भी सत्रह मुहूर्त प्रमाण वाला दिवस होता है । ( एवं परिहाdesi) इस पूर्वोक्त प्रकार से एक एक मुहूर्त की न्यूनता के क्रम से ह्रास माने न्यूनता जान लेवें । अब उस न्यूनता को क्रमानुसार प्रगट करते हैं - (सोलसमुहुत्ते दिवसे पाहन श्यामां आवे छे. - ( ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ) न्यारे मंजूदीपना दक्षिणार्धभां सत्तर મુહૂત પ્રમાણના દિવસ હાય છે, તે વખતે ઉત્તરામાં પણ સત્તર મુર્હુત પ્રમાણના દિવસ હાય છે, આ પ્રમાણે દક્ષિણાના નિયમ પ્રમાણે કથન કરીને હવે ઉત્તરાધના નિયમાનુसा२ ४थन ४२ छे, - (ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया दाहिणड्ढे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ) न्यारे उत्तरार्धभां भेटले डे मंजूदीपनी उत्तर दिशाना अर्धा ભાગમાં સત્તર મુહૂત પ્રમાણના દિવસ હાય છે, ત્યારે દક્ષિણદિશાના અધ ભાગમાં પણ सत्तर मुहूर्त प्रभाणुना दिवस होय छे. ( एवं परिहावेय) मा पूर्वोत अथनानुसार श्रेष्ठ श्रे મુહૂર્તની ન્યૂનતાના ક્રમથી હાસ એટલે કે ન્યૂનતા સમજી લેવી. हवे थे न्यूनताना उभ प्रमाणे प्रगट उरतां उडे छे.- ( सोलसमुहुत्ते दिवसे भवइ, पण्ण શ્રી સુર્યપ્રાપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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