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________________ ५२४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे वर्द्धयति । एतेनैवोक्तं यत् सर्वाभ्यन्तरे मण्डले परिपूर्णतया त्रिंशतं मुहूर्त्तान् यावदवस्थितं सूर्यस्यौज स्ततः परमनवस्थितं भवति सूर्यस्य ओज इति । पुन रेतदेव वैतत्येन विभावयिषुः प्रश्नसूत्रमुपन्यस्यन्नाह - 'तत्थ को हेऊत्ति वएज्जा' तत्र को हेतुरिति वदेत् ॥ तत्र - प्रवेशे निष्क्रमणे च अर्थात् निष्क्रामन् सूर्यो यथोक्तरूपं देशं निर्वेष्टयति, प्रविशन्नभिवर्द्धयतीत्येतस्मिन् विषये को हेतु : ? - किं कारणम् ? - कोपपत्ति रितिवदेद, ततो भगवानाह - 'ता अयण्णं igerd दीवे सorataदीवसमुद्दाणं जाव परिक्खेवेणं' तावदयं जम्बूद्वीपो द्वीपद्वीपः समुद्राणां यावत् परिक्षेपेण ॥ - वाक्यमिदं जम्बूद्वीपपरं तद्वर्णनं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रादवसेयम्, सर्वद्वीपसमुद्राः यस्य परिधिवत् प्रदक्षिणां कुर्वन्त इव वर्त्तन्ते, सोऽयं सर्वद्वीपअठारहसो तीस भागसंबंधी प्रति अहोरात्र का एक एक भाग रूप प्रदेश को बढ़ाता है । इस कारण से कहा है कि सर्वाभ्यन्तर मंडल में परिपूर्ण तीस मुहूर्त सूर्य का प्रकाश अवस्थित रहता है तत्पश्चात् सूर्य का प्रकाश अनवस्थित होता है माने अस्थिर होता है यही विषयको सरलता से समझाने के उद्देशसे प्रश्न सूत्र कहते हुवे कहते हैं- 'तत्थ को ऊत्ति वएजा' इसमें कया कारण है। सो कहिये अर्थात् प्रवेश करने में एवं निकलने में यथोक्त प्रकार से न्यूनाधिक करता है अर्थात् निकलने में देशको न्यून करता है एवं प्रवेश करते हुवे बढाता है इस विषय में क्या कारण है ? क्या प्रमाण है ? सो कहिये इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के पूछने पर भगवान् उत्तर देते हुवे कहते हैं- 'ता अयणं जंबुद्दीवे दोघे सव्वद्दीवद्दीवसमुद्दाणं जाव परिक्खेवेणं' यह जंबूद्वीप नामका द्वीप द्वीप सभी द्वीप समुद्रों में यावत् परिक्षेप से कहा है, यह वाक्य - जम्बूद्वीपविषयक है उसका वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र से जानलेवें, सभी द्वीपसमुद्र जिस को परिधि के समान प्रदक्षिणा करते ગમન કરતા સૂર્ય દેશ એટલે અઢારસે ત્રીસ ભાગ સબંધી પ્રતિ અહેારાત્રના એક એક ભાગ રૂપ પ્રદેશને વધારે છે. આ કારણથી કહ્યું છે કે સર્વાભ્યંતરમંડળમાં પૂરેપૂરા ત્રીસ મુહૂત સૂર્યના પ્રકાશ :અવસ્થિત રહે છે, તે પછી સૂર્યને પ્રકાશ અનવસ્થિત થાય છે, એટલે કે અસ્થિર થાય છે. या विषयने सरणताथी समन्लववाना उद्देशथी अनसूत्र उडेता था उसे छे - (तत्थ को हेऊन्ति बएज्जा) तेभां शु ं शु छे ? ते हो अर्थात् प्रवेश श्वामां ने निश्णवामां यथोक्त પ્રકારના દેશને ન્યૂનાધિક કરે છે. અર્થાત્ નિકળવામાં ન્યૂન કરે છે, અને પ્રવેશ કરતાં વધારે છે, આમ થવામાં શું કારણ છે? શું પ્રમાણ છે ? તે કહેા. આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીએ पूछ्वाथी श्रीभगवान् उत्तर भापता छे - (ता अयणं जंबूदीवे दीघे सव्वदीव दीवसमुद्दाणं जाव परिक्खेवेणं) या मंजूदीय नामनो द्वीप मधा द्वीप समुद्रोभां यावत् परिक्षेपथी आहेस છે, આ વાકય જ બુદ્વીપ સબંધી છે, તેનુ વર્ણન જમૂદ્દીપપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રથી જાણી લેવું બધા દ્વીપ સમુદ્ર જૈને પરિધિની જેમ પ્રદક્ષિણા કરતા હેાય તે પ્રમાણે રહે છે, એવા શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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