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________________ ___५१५ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् षोडशस्थानीयाः प्रतिवादिनो त्रुवते तावद् अनुपूर्वशतसहस्रमेव-पूर्वपूर्वक्रमेण लक्षमुहूर्तान्तरमेव सूर्यस्य ओजोऽन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापैति, एके एवमाहु रित्युपसंहरतिः १६ ॥-'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणुपलिओवममेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु १७' एके पुनरेवमाहु-स्तावद् अनुपल्योपममेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः १७ ॥-एके पुनः सप्तदशस्थानीयाः प्रतिवादिनः कथयन्ति तावद् अनुपल्योपममेव-किश्चिन्यूनपल्योपमसंख्यातुल्यमेव सूर्यस्य ओजोऽन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापैति, प्रतिपल्योपमसंख्यासु सूर्यस्य प्रकाशे वैलक्षण्यमुत्पद्यते इति सप्तदशस्थानीयस्य मतमित्युपसंहरति-एके एवमाहुरिति १७ ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणुपल्योपमसयमेव सूरियस्स प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है अर्थात् सोलहवें मतावलम्बी का कहना है कि अनुपूर्व शतसहस्र अर्थात् पूर्व पूर्व के क्रमानुसार एक लाख मुहर्त के पश्चात् सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है तथा उत्पन्न हुवे का विनाश होता है कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है ।१६। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपलिओवममेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु) १७ कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है कि अनुपल्योपम में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है कोइ एक इस प्रकार से अपना मत कहता है। अर्थात् सत्रहवां तीर्थान्तरीय कहता है कि अनुपल्गोपम माने कुछ न्यून पल्योपम संख्या तुल्य काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है अर्थात् प्रति पल्योपम संख्या में सूर्य का प्रकाश में विलक्षणता उत्पन्न होती है इस प्रकार सत्रहवें मतान्तरवादी का कथन है कोइ एक इस प्रकार से कहता है ।१७। (एगे पुण एवછે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પિતાને મત પ્રદર્શિત કરે છે, અર્થાત્ કોઈ એક પંદરમો મતા નરવાદી પિતાનો મત પ્રદર્શિત કરતે થકો એવી રીતે કહે છે કે અનુપૂર્વ હજાર એટલે કે પૂર્વની અપેક્ષાથી હાર મુહૂર્તની પછી સૂર્યનો પ્રકાશ અને ઉત્પન્ન થાય છે. અને मन्यनो नाश थाय छ, ४ मे २१ प्रमाणे २३ छ. १ (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपलिओवममेव सूरियस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १७ એક એવી રીતે પિતાને મત જણાવે છે કે અનુપમમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને વિનાશ થાય છે, કેઈ એક આ પ્રમાણે પિતાને મત કહે છે. અર્થાત્ સત્તરમો મતાન્તરવાદી કહે છે કે અનુપમ એટલે કે કંઈક ઓછા પલ્યોપમ સમાન કાળમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને નાશ થાય છે, અર્થાત્ પલ્યોપમ સંખ્યકકાળમાં સૂર્યના પ્રકાશમાં વિલક્ષણતા ઉત્પન્ન થાય છે આ પ્રમાણે સત્તરમાં भतान्तवाहीन ४थन छ. ४ २॥ प्रमाणे ४ छ ।१७। (एगे पुण एवमाहंसु ता શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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