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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु १८' एके पुनरेवमाहुः, तावद् अनुपलिओपमशतमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः १८ ॥-एके-पुनरष्टादशस्थानीयाः कथयन्ति तावत् अनुपल्योपमशतमेव, पल्यमनु-अनुपल्यं-किश्चिन्यूनपल्योपमसंख्यातुल्यं, पद्माधिकसंख्यासु पल्योपममित्येका संख्या भवति तस्याः किश्चिन्न्यूना संख्या अनुपल्योपमा कथ्यते तस्याः पुनः शतमिति अनुपल्योपमशतमित्यर्थः । तास्वेव संख्यासु सूर्यस्यौजोऽन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापैति, एके एवमाहुरित्युपसंहरति १८ ॥ 'एगे पुण एवमासु-ता-अणुपलिओवमसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु १९' एके पुनरेवमाहुस्तावद् अनुपल्योपमसहस्रमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यमाहंसु-ता अणुपलिओवमसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु) १८ कोइ एक इस प्रकार से कहता है कि अनुपल्योपमशत समय में सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है, एवं अन्य ही विनष्ट होता है कोइ एक इस प्रकार से कहता है। अर्थात् कोई अठारहवां तीर्थान्तरीय अपने मत को प्रदर्शित करता हुवा कहता है कि अनुपल्योपमशत माने कुछ न्यून पल्योपम संख्या तुल्यकाल में अर्थात् पद्माधिक संख्या में एक पल्योपम संख्या होती है उससे कुछ न्यून संख्या को अनुपल्योपम कहते है अनुपल्योपम का जो सो वह अनुपल्योपमशत कहा जाता है उतनी संख्यावाले काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है इस प्रकार कोई एक अन्य मतवादी कहता है ।१८। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपलिओवमसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्प जइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु)।१९। कोई एक इस प्रकार से कहता है कि अनुपल्योपम सहस्र काल में सूर्य का प्रकाश भिन्न उत्पन्न होता है एवं विनष्ट होता है कोई अणुपलिओवमसयमेव सूरियस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १८ કોઈ એક એ પ્રમાણે કહે છે કે અનુપલ્યોપમશત સમયમાં સૂર્યનો પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને વિનાશ થાય છે, કેઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ કઈ અઢારમે તીર્થોત્તરીય પોતાના મતને જણાવતે કહે છે કે–અનુપલ્યોપમશત એટલે કેકંઇક ઓછા પલ્યોપમ સંખ્યા સમાન કાળમાં અર્થાત્ પવથી વધારે સંખ્યાની એક પલ્યોપમ સંખ્યા થાય છે. તેનાથી કંઈક ઓછી સંખ્યાને અનુપલ્યોપમ કહે છે, અનુપલ્યોપમના જે છે તે અનુપલ્યોપમશત કહેવાય છે, આટલી સંખ્યા સમાનકાળમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય વિનાશ થાય છે. આ પ્રમાણે કે એક અન્ય મતવાદી કહે છે. ૧૮ (एगे पुण एवमाइंसु ता अणुपलिओवमसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १९ औ प्रमाणे ४३ छ -मनुपक्ष्यो५म सहरमा શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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