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________________ ५१४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे मुहूर्तान्तरे सूर्यस्य प्रकाशे पार्थक्यं भवति नान्यथेति तस्याभिप्रायः । एके एवमाहुरित्युपसंहरति ॥ ॥१४॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुपुव्वसहस्समेव सरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु ॥ १५ एके पुनरेवमाहु स्तावत् अनुपूर्वसहस्रमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः १५ ॥ एके पुनः पञ्चदशस्थानीया एवं वदन्ति तावद् अनुपूर्वसहस्रमेव पूर्वपूर्वापेक्षया सहस्रमुहूर्तान्तरे सूर्यस्यौजोऽन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापैति, एके एवमाहुः ॥ 'एगे पुण एवमाहंमु-ता-अणुपुव्वसयसहस्सभेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमासु १६' एके पुनरेवमाहु स्तावद्-अनुपूर्वशतसहस्रमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एक्माहुः १६ ॥-एके पुनः कहता है कि अनुपूर्वशत अर्थात् सौ मुहूर्त के अनन्तर सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है। अर्थात् प्रति सौ मुहर्त के पश्चात् सूर्य के प्रकाश में भिन्नता होती है अन्य प्रकार से नहीं इस प्रकार कोई एक मतान्तरवादी का कथन है ।१४। (एगे पुण एवमासु ता अणुपुव्वसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजाइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १५ कोई एक इस प्रकार से कहता है कि अनुपूर्वसहस्र में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एक अन्य विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से कहता है । अर्थात् कोई एक पंद्रहवां मतान्तरवादी इस प्रकार से कहता है कि अनुपूर्वसहस्र माने पूर्व पूर्व की अपेक्षा सहस्र मुहर्त के पश्चात् सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है १५। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपुटवसयसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु) १६ कोइ एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है कि अनुपूर्व सो हजार मुहूर्त में सूर्य का સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને નાશ થાય છે. અર્થાત્ દરેક સો મુહ પછી સૂર્યના પ્રકાશમાં ભિન્નતા થાય છે. અન્ય રીતે નહી. આ પ્રમાણે કોઈ એક भवान्तवाहीनु ४थन छ. 1१४। (एगे पुण एवमासु ता अणुपुव्वसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेई एगे एवमाहंसु) १५ मे मेवी शत छ -मनुपूर्व હજાર મુહૂર્તમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય વિનષ્ટ થાય છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ કોઈ એક પંદરમો મતાન્તરવાદી એ રીતે કહે છે કેઅનુસહસ એટલે કે પૂર્વ પૂર્વની અપેક્ષાથી હારમુહૂર્ત પછી સૂર્યનો પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય નાશ પામે છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પિતાને મત કહે છે. ૧૫ (एगे पुण एवमासु ता अणुपुत्व सयसहस्तमेष सू रेयस्स ओया अण्णा उत्पन्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १६ औ सेवी रीत पातानी मत प्रहशत ४२ छ 3-मनु પૂર્વ સ હજાર મુહૂર્તમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને નાશ થાય શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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