SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् मतान्तरवादिनोऽभिप्रायः, एके एवमाहुरित्युपसंहरति ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुपुव्वमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु १३' एके पुनरेवमाहु स्तावत् अनुपूर्वमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः १३ ॥-एके पुनस्त्रयोदशस्थानीयाः कथयन्ति तावद् अनुपूर्वमेव पूर्वमनु अनुपूर्व-पूर्वक्षणभिन्नस्वरूपं सूर्यस्यौजोऽन्यदेव उपपद्यते अन्य देवापतीति त्रयोदशस्थानीयस्य मतमिति एके एवमाहुः ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुपुव्वसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु १४' एके पुनरेवमाहु स्तावत् अनुपूर्वशतमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते, अन्यदपैति एके एवमाहुः १४ ॥-एके-पुनश्चतुर्दशस्थानीयाः प्रजल्पन्ति तावद् अनुपूर्वशतमेव-शतमुहूर्तपूर्वपूर्वान्तरं-शतमुहूर्तान्तरे सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यच्चापैति-विनश्यति, प्रतिशतहै इसप्रकार थारहवें तीर्थान्तरीय का मत है कोइ एक इस प्रकार से कहता है ।१२। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपुत्वमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजह अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु)।१३। कोइ एक इस प्रकार से कहता है कि अनुपूर्व ही सूर्य का ओजस अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से कहता है । अर्थात् तेरहवां मतवादो कहता है कि अनुपूर्व माने पूर्व के अनु माने पश्चात् जो हो सो अनुपूर्व अर्थात् पूर्व से भिन्न स्वरूप सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है इस प्रकार तेरहवें मतवादी का कथन है कोई एक इस प्रकार से कहता है ।१३। (एगे पुण एवमासु ता अणुपुत्वसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जा अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) १४ कोई एक इस प्रकार से कहता है कि अनुपूर्वशतमुहर्त में सूर्य का ओजस उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से कहता है । अर्थात् कोई एक चउदहवां तीर्थान्तरीय मे 21 प्रमाणे ४ छ. ११२१ (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपुव्वमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवहंसु)13 05 वी शत ४ छ -मनुपूर्व भाग सूर्यन ઓજસ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અને અન્ય વિનાશ પામે છે, કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ તેરમો મતવાદી કહે છે કે-અનુપૂર્વ એટલે કે પૂર્વની અનુ એટલે પાછળ જે હોય તે અનુપૂર્વ અર્થાત પૂર્વેક્ષણથી ભિન્ન સ્વરૂપવાળ સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ વિનાશ પામે છે. આ પ્રમાણે તેરમાં મતपाहीन 3थन छ. ४ मे मा प्रमाणे हे छे. १ (एगे पुण एवमासु ता अणुपुत्वसयमेव सूरियस्सो अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु) १४ કોઈ એક એવી રીતે કહે છે કે-અનુપૂર્વ સે મુહૂર્તમાં સૂર્યનું ઓજસ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અને અન્યને વિનાશ થાય છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ કઈ એક ચૌદમો તીર્થાન્તરીય કહે છે-અનુપૂર્વશત અર્થાત સો મુહૂર્તો પછી શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy