SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् भागे च कियत्प्रमाणं क्षेत्र तापयत इत्यर्थः ॥ ततो भगवानाह-'ता जंबूहीवेणं दीवे सूरिया एगं जोयणसयं उड़ तवंति, अट्ठारसजोयणसयाई अहे तवंति, सीतालीसं जोयणसहस्साई दुन्नि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सद्विभागे जोयणस्स तिरियं तवंति' तावद् जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे सूयौँ एकं योजनशतम् ऊर्ध्व तापयतः, अष्टादशयोजनशतानि अधस्तापयतः, सप्तचत्वारिंशद् योजनसहस्राणि द्वे च त्रिषष्टे योजनशते एकविंशतिं च षष्टिभागान् योजनस्य-४७२६३ तिर्यक् तापयतः ॥-तावत्-अस्योत्तरं श्रयतां तावत्-जम्बूद्वीपे द्वीपे सर्वद्वीपसमुद्राणां परिधियत स्थिते खलु-इति निश्चितम् इमौ सूौं प्रत्येकं स्वविमानार्ध्वम् एकं योजनशतं तापयतः-स्वविमानादूर्ध्व शतयोजनानि प्रकाशयतः, एतावद् योजनप्रमाणमूर्ध्व तयोः प्रकाशो गच्छतीत्यर्थः। अधः-स्वाधिष्ठितस्थानादधः, अष्टादशयोजनशतानि तापयतः-प्रकाशयतः-जम्बूद्वीपस्थभूमेरूमष्टादशशतयोजनान्तरे सूयौं पश्चात् भाग में एवं पार्श्वभाग में कितने प्रमाण वाले क्षेत्र को सूर्य प्रकाशित करता है। श्रीगौतमस्वामी के इस प्रश्न को सुनकर के इसके उत्तर में भगवान कहते है-(ता जंबुद्दीवेणं दीवे सूरिया एग जोयणसयं उडू तवंति, अट्ठारसजोयणसयाई, अहे तवंति, सीतालीसं जोयणसहस्साई दुनिय तेवढे जोयणसए एगवीसं च सहिभागे जोयणस्स तिरियं तवंति) जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में दो सूर्य एकसो योजन ऊपर की ओर प्रकाशित करता है तथा अठारहसो योजन नीचे की तरफ प्रकाशित करता है एवं ४७२६३१ सेंतालीस हजार दोसो तिरसठ योजन एवं एक योजन का साठिका इक्कीस भाग तिर्यक् क्षेत्र को प्रकाशित करता है। भगवान् कहते हैं कि हे गौतम तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से है सर्व द्वीपों में श्रेष्ठ परिधि रूप जम्बूद्वीप में दोनों सूर्य अपने विमानों के ऊपर एकसो योजन क्षेत्र को ऊपर की ओर प्रकाशित करते हैं, माने इतना योजन प्रमाण ऊपर में उनका प्रकाश जाता है। तथा उनके विमानों के नीचे की ओर अठारहसो योजन प्रमाण क्षेत्र को प्रकाशित करता है अर्थात उत्तरमा पान हे छ -(ता जंबुद्दीवेणं दीवे सूरिया एणं जोयणसय उड्ढ तवंति अद्वारसजोयणसयाई, अहे तवंति, सीतालीस जोयणसहस्साई दुन्नि य तेवढे जोयणसए एगवीस च सट्ठिभागे जोयणस्स तिरिय तवंति) यूबी५ नामना द्वीपभा में सूर्य मेसो જન ઉપરની બાજુને પ્રકાશિત કરે છે. તથા અઢારસે જન નીચેની તરફ પ્રકાશિત કરે છે. તથા ૪૭૨૬૩૨ સુડતાલીસ હજાર બસે ત્રેસઠ જન અને એક એજનના સાયિા એકવીસ ભાગ તિછક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે છે. ભગવાન કહે છે કે હે ગૌતમ! તમારા પ્રશ્નનો ઉત્તર આ પ્રમાણે છે. બધા દ્વીપમાં ઉત્તમ અને બધા દ્વીપના પરિધિરૂપ જંબુદ્વીપમાં બને સૂર્યો પિતતાના વિમાની ઉપર એકસો જન ક્ષેત્રને ઉપરની તરફ પ્રકાશિત કરે છે, અર્થાત્ આટલા જન પ્રમાણુ ઉપરની તરફ તેમને પ્રકાશ જાય છે, તથા તેમના શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy