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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टोका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् अन्धकारसंस्थितेः खलु-इति निश्चितं, सर्ववाद्या बाहा लवणसमुद्रान्ते-लवणसमुद्रसमीपे जम्बूद्वीपपर्यन्ते तिष्ठति, साच परिक्षेपेण-जम्बूद्वीपपरिग्यपरिक्षेपेण न आख्याता वर्तते, साचैव-त्रिषष्टि योजनसहस्राणि द्वे द्वे शते, किं विशिष्टे पञ्चचत्वारिंशे-पञ्चचत्वारिंशदधिके द्वे योजनशते, षट्चदशभागान् योजनस्य ६३२४५ इति यावत् । पुनरेतदेव स्वशिष्यानवयोधयितुं स्पष्टं पृच्छति गौतमः-'ता से णं परिक्खेवविसेसे कत्तो आहितेति वएजा' तावत् स खलु परिक्षेपविशेषः कुत आख्यात इति वदेत् ॥ तावदितिग्राग्वत् तस्याः-अन्धकारसंस्थितेः, सः-पूर्वोक्तस्तावान् परिक्षेपविशेषः-जम्बूद्वीपपरिक्षेपणविशेषः, कुतः कस्माद्धेतोः-कस्मात् कारणात्-कस्याः वोपपत्तेराधारतः आख्यातः, अत्यधिकः स्वल्पो वा कथं नोक्त इति भगवान वदेत् इति गौतमेन प्रश्ने कृते भगवान् महावीरस्वामी पुनः कथयति-ता जेणं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे तं परिक्खेवं दोहिं गुणित्ता दसहि का परिक्षेप कहा है अर्थात् उस अन्धकारसंस्थिति की सर्वबाह्य वाहा लवण समुद्र के समीप जम्बूद्वीप पर्यन्त होती है वह वाहा परिक्षेप से अर्थात् जम्बूद्वीप परिरयपरिक्षेप से नहीं कहा है वह इस प्रकार तिरसठ हजार दो सो एवं कुछ अधिक पैंतालीस अधिक अर्थात् तिरसठ हजार दो सो पैतालीस योजन एवं एक योजन का छ दस भाग ६३२४५. कहा गया है । इसको ही स्वशिष्यों को स्पष्टता से बोध हो इस हेतु से फिर से गौतमस्वामी पूछते हैं(ता से णं परिक्खेवविसेसे कत्तो अहितेति वएजा) वह परिक्षेप विशेष इसी प्रमाण का क्यों कहा है सो हे भगवन् आप कहिये अर्थात् उस अन्धकार संस्थिति का वह पूर्वोक्त परिक्षेपविशेष माने जम्बूद्वीपपरिक्षेप से विशेष किस कारण से वा किस प्रमाण का आधार से कहा है ? इस से अल्प वा अत्यधिक क्यों कहा नहीं है ? हे भगवन् सो आप कहिये इस प्रकार गौतमस्वामी के प्रश्न करने पर उत्तर में भगवान महावीरस्वामी पुनः कहते हैं (ता जे णं जंबुકહેલ છે, અર્થાત્ એ અંધકાર સંસ્થિતિની સર્વબાહ્ય વાહ લવણસમુદ્રની નજીક જંબદ્વીપ સુધી હોય છે, તે વાહા પરિક્ષેપથી અર્થાત્ જંબુદ્વીપના પરિરયપરિક્ષેપથી કહેલ નથી, તે ત્રેસઠ હજાર બસો પિસ્તાલીસથી કંઈક વધારે એટલે કે ત્રેસઠ હજાર બસે પિસ્તાલીસ જન અને એક એજનના છ દસ ભાગ ૬૩૨૪૫ જેટલે કહેલ છે. આ કથનને ભાવ पोताना शिष्यो स्पष्ट रीते सभ७ २ स्तुथी शिथी गौतमस्वाभी पूछे छे ।-(से णं परिक्खेव विसेसे कओ अहितेति वएज्जा) से परिक्ष५ विशेष मा प्रभावामा उभ કહેલ છે? તે હે ભગવાન આપ કહો અર્થાત્ એ અંધકાર સંસ્થિતિને તે પૂર્વોક્ત પરિક્ષેપવિશેષ એટલે કે બુદ્વીપના પરિક્ષેપથી વિશેષ શા કારણથી અગર કયા પ્રમાણુથી કે આધારથી કહેલ છે? તેનાથી વધારે કે એ છે કેમ કહેલ નથી ? હે ભગવન તે આપ મને કહો. આ પ્રમાણે ગૌતમસ્વામીએ પ્રશ્ન કરવાથી તેના ઉત્તરમાં ભગવાન મહાવીરસ્વાથી ફરીથી શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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